छत्तीसगढ़ में वनों की अवैध कटाई से पर्यावरण पर खतरे के बादल मंडराने लगे हैं. पर्यावरण को बचाने के लिए इस गांव के लोग बीते 30 वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं. कनमोर गांव के लोग बताते हैं कि वर्ष 2013 से गांव में पुलिस नहीं आई है. यहां के लोगों का कहना है कि 2013 से इस गांव में कभी किसी के बीच झगड़ा नहीं हुआ है.
दावा है कि बीते डेढ़ साल से गांव में किसी ने शराब को हाथ तक नहीं लगाया है. गांव के सरपंच इंद्रजीत भगत का कहना है 'जंगल उजड़ जाने से उन लोगों की जिंदगी पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है. खेती-बाड़ी से लेकर पानी पर इसका प्रभाव पड़ रहा है.' इंद्रजीत भगत ने बताया कि 'बीते 30 वर्षों से वो सीमित जंगलों का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे उनके गांव के आसपास हरियाली बनी हुई है.
कनमोरा गांव की रहने वाली लक्ष्मी बताती हैं कि गांव में शराब के कारण आये दिन मारपीट और झगड़े होते रहते थे. लेकिन अब उनके गांव में शराब नहीं बनाई जाती है. लक्ष्मी बताती हैं कि 'जब गांव में शराब बनाई जाती थी, तब गांव कोई आदमी काम नहीं करता था. जिससे लोगों को आर्थिक और सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ता था.
आर्थिक तंगी से जूझते गांव की महिलाओं ने मिलकर बैठक की और जन जागरूकता के लिए रैली निकाली. जिसके बाद गांव में शराब बेचना और बनाना दोनों बंद हो गया. गांव की महिलाओं ने जंगलों को बचाने के पीछे कहती हैं कि 'हमारे घर मिट्टी और लकड़ी से बने हुए हैं, अगर जंगल को आज हम काट कर खत्म कर देंगे तो आने वाले भविष्य में घर बनाने के लिए हम लकड़ी कहां से लाएंगे.'