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कोरोना ने छीना रोजगार, अब ये बुनकर कैसे चलाएं परिवार ?

कोरोना वायरस के कारण देश में चल रहे लाकडाउन से संबलपुरी साड़ी बुनकरों की हालत दयनीय हो गई है. उनके सामने परिवार चलाने की चुनौती है.

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Published : Apr 30, 2020, 7:54 PM IST

Updated : May 1, 2020, 3:35 PM IST

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बुनकर कैसे चलाएं परिवार

जांजगीर-चांपा: कोरोना वायरस की मार संबलपुरी साड़ी बुनकरों पर भी पड़ी है. वर्षों से संबलपुरी साड़ी बनाने वाले कारीगरों की स्थिति दयनीय हो गई है. गोपालपुर में मेहर समाज के तकरीबन 40 से अधिक परिवार रहते हैं, जिनका जीविकोपार्जन का साधन संबलपुरी साड़ी है, लेकिन लॉकडाउन ने इनकी रोजी रोटी छीन ली है. अब बुनकर परिवार के पास पेट पालने की समस्या आ खड़ी हो गई है.

कोरोना ने छीना रोजगार

बुनकर परिवार के मुताबिक वे पीढ़ी दर पीढ़ी संबलपुरी साड़ी बनाते आए हैं, वे साड़ी बनाकर परिवार का पालन पोषण करते थे, लेकिन कोरोना वायरस की मार ने हालत खराब कर दी है. इससे उनको आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है. उनका कहना है कि वह साड़ी बनाकर ओडिशा में बरगढ़ और संबलपुर जिला में बेचते थे, लेकिन लॉकडाउन ने इनके व्यापार को लॉक कर दिया है.

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हाथ से बुन रहे साड़ी

पढ़ें: SPECIAL: दूसरे राज्यों में छग के 90 हजार मजदूर फंसे, सरकार से वापस बुलाने की गुहार

धंधा पूरी तरह से हुआ चौपट

बुनकर अरखित बताते हैं कि यह उनका पुश्तैनी धंधा है. इसी से ही इनके परिवार का गुजर-बसर चलता है. वे धागा खरीदकर अपने हाथों से साड़ी बनाते हैं, जिसमें तकरीबन 5-6 सदस्य धागा बुनते हैं. इससे इनको एक साड़ी में 15 सौ से लेकर 2 दो हजार रुपए तक मिलते हैं, जिससे इनको परिवार पालने में दिक्कत नहीं होता, लेकिन अब धंधा पूरी तरह से चौपट हो गया है.

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हाथ से बुन रहे साड़ी

पढ़ें: SPECIAL: दाने-दाने को मोहताज भीख मांगकर गुजारा करने वाले लोग, कौन ले सुध ?

गरीबी रेखा के नीचे फिर भी नहीं मिलती मदद

संबलपुरी साड़ी बनाने वालों ने बताया कि केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का भी लाभ उन्हें नहीं मिलता. आज तक न उन्हें आवास मिला, न ही किसी तरह पेंशन मिलती है. उनका कहना है कि गरीबी रेखा के नीचे आते हैं. बावजूद इसके कोई मदद नहीं मिलता.

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परिवार चलाने में दिक्कत

पढ़ें: SPECIAL: जानिए क्यों खास है बस्तर की 'चापड़ा चटनी'

लॉकडाउन ने छीन ली रोजी रोटी

बता दें कि कोरोना वायरस की वजह से हुए लॉकडाउन ने गरीबों की रोजी रोटी छीन ली है. लोग एक-एक दाने को तरस रहे हैं. अब बस कुदरत से उम्मीद है कि कोरोना जैसे महामारी को खत्म करे और फिर गरीबों की जिंदगी पटरी पर आ जाए.

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हाथ से बुन रहे धागे

जांजगीर-चांपा: कोरोना वायरस की मार संबलपुरी साड़ी बुनकरों पर भी पड़ी है. वर्षों से संबलपुरी साड़ी बनाने वाले कारीगरों की स्थिति दयनीय हो गई है. गोपालपुर में मेहर समाज के तकरीबन 40 से अधिक परिवार रहते हैं, जिनका जीविकोपार्जन का साधन संबलपुरी साड़ी है, लेकिन लॉकडाउन ने इनकी रोजी रोटी छीन ली है. अब बुनकर परिवार के पास पेट पालने की समस्या आ खड़ी हो गई है.

कोरोना ने छीना रोजगार

बुनकर परिवार के मुताबिक वे पीढ़ी दर पीढ़ी संबलपुरी साड़ी बनाते आए हैं, वे साड़ी बनाकर परिवार का पालन पोषण करते थे, लेकिन कोरोना वायरस की मार ने हालत खराब कर दी है. इससे उनको आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है. उनका कहना है कि वह साड़ी बनाकर ओडिशा में बरगढ़ और संबलपुर जिला में बेचते थे, लेकिन लॉकडाउन ने इनके व्यापार को लॉक कर दिया है.

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हाथ से बुन रहे साड़ी

पढ़ें: SPECIAL: दूसरे राज्यों में छग के 90 हजार मजदूर फंसे, सरकार से वापस बुलाने की गुहार

धंधा पूरी तरह से हुआ चौपट

बुनकर अरखित बताते हैं कि यह उनका पुश्तैनी धंधा है. इसी से ही इनके परिवार का गुजर-बसर चलता है. वे धागा खरीदकर अपने हाथों से साड़ी बनाते हैं, जिसमें तकरीबन 5-6 सदस्य धागा बुनते हैं. इससे इनको एक साड़ी में 15 सौ से लेकर 2 दो हजार रुपए तक मिलते हैं, जिससे इनको परिवार पालने में दिक्कत नहीं होता, लेकिन अब धंधा पूरी तरह से चौपट हो गया है.

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हाथ से बुन रहे साड़ी

पढ़ें: SPECIAL: दाने-दाने को मोहताज भीख मांगकर गुजारा करने वाले लोग, कौन ले सुध ?

गरीबी रेखा के नीचे फिर भी नहीं मिलती मदद

संबलपुरी साड़ी बनाने वालों ने बताया कि केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का भी लाभ उन्हें नहीं मिलता. आज तक न उन्हें आवास मिला, न ही किसी तरह पेंशन मिलती है. उनका कहना है कि गरीबी रेखा के नीचे आते हैं. बावजूद इसके कोई मदद नहीं मिलता.

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परिवार चलाने में दिक्कत

पढ़ें: SPECIAL: जानिए क्यों खास है बस्तर की 'चापड़ा चटनी'

लॉकडाउन ने छीन ली रोजी रोटी

बता दें कि कोरोना वायरस की वजह से हुए लॉकडाउन ने गरीबों की रोजी रोटी छीन ली है. लोग एक-एक दाने को तरस रहे हैं. अब बस कुदरत से उम्मीद है कि कोरोना जैसे महामारी को खत्म करे और फिर गरीबों की जिंदगी पटरी पर आ जाए.

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हाथ से बुन रहे धागे
Last Updated : May 1, 2020, 3:35 PM IST
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