जांजगीर चांपा: जांजगीर से करीब 45 किलोमीटर दूर पंतोरा गांव है. जहां होली के पांच दिन बाद यानी धूल पंचमी पर लट्ठमार होली की परंपरा है. इस दिन मड़वा रानी देवी के जंगल से बांस की डंडी लाया जाता है. गांव की मां भवानी मंदिर में पूजा अर्चना कर बांस की छड़ी कुंवारी कन्याओं के हाथ में बैगा थमाते हैं. उसके बाद मंदिर परिसर में लगी देवताओं की मूर्तियों को प्रतीकात्मक रूप से लट्ठ मारकर परंपरा की शुरुआत की जाती है. इसके बाद गांव की महिलाएं एवं युवतियां हाथों में छड़ी लेकर लोगों पर लट्ठ बरसाने निकालती हैं. महिलाओं और युवतियों से पिटने वाले लोग परंपरा की वजह से नाराज नहीं होते, बल्कि कन्याओ पर रंग गुलाल छिड़ककर उनका सम्मान बढाती हैं.
बेटियों को दोवी मानने की परंपरा है: बेटियों को इस गांव में देवी का रूप माना जाता है. 21 कन्याओं को देवी की पूजा में शामिल कर उन्हें बांस की छड़ी दी जाता है. इस दौरान गांव की गलियों में नगाड़ा की थाप में नाचते झूमते लोग पहुंचते हैं. तो महिलाएं, युवतियां और बालिकाएं हाथ में थामी लाठियों से उन्हें पीटना शुरू कर देती हैं.
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मारने वाली और मार खाने वाले हंसते हैं: इस दौरान खास बात यह होती है कि मारना-पीटना हंसी-खुशी के वातावरण में होता है. गांव में रंग गुलाल का प्रयोग किया जाता. यहां से गुजरने वाले भी लट्ठमार होली से नहीं बच पाते. ग्रामीणों के अनुसार मड़वा रानी और माता भवानी के आशीर्वाद पाने के लिए पंतोरा क्षेत्र के ग्रामीण इस दिन का पूरे साल भर इंतजार करते है. मान्यता के अनुसार गांव में छोटी माता, हैजा और गंभीर बीमारियों से माता रानी रक्षा करती गई और गांव की यही मान्यता अब परंपरा में बदल गई है.