जांजगीर चांपा: महाशिवरात्रि आने वाली है. ये दिन देवों के देव महादेव की शादी का दिन है. इस दिन भगवान शिव का माता पार्वती से विवाह हुआ था. इस बार 1 मार्च को महाशिवरात्रि है. इस दिन सभी शिव मंदिरों को खास सजाया जाता है. महादेव की पूजा के लिए मंदिरो में पहले से ही खास तैयारी की जाती है. जांजगीर चांपा के खरौद में भी लक्ष्मणेश्वर मंदिर में शिव जी के पूजा की विशेष तैयारी की गई है.
हर मनोकामना होती है पूरी
मान्यता है कि रावण वध के बाद ब्रम्ह हत्या के दोष से मुक्ति के लिए खर और दूषण की नगरी खरौद में लक्ष्मण जी ने स्वयं भू शिव लिंग की पूजा की थी. इस कारण इस शिव मंदिर को लक्ष्मणेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है. कहते हैं कि यहां मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है. श्रद्धालु यहां लाख चावल चढ़ा कर मनचाहा वर मांगते हैं.
शुरू हो चुकी हैं तैयारियां
जांजगीर चांपा के टेंपल सिटी शिवरीनारायण से महज 3 किलोमीटर की दूरी पर खरौद नगर में महाशिव रात्रि की तैयारियां शुरू हो गई है. 1 मार्च को होने वाले महाशिवरात्रि में खरौद नगर के मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ देखते बनती है. शिव मंदिर में सुरक्षा के भी खासा इंतजामात किए जाते हैं. व्यापारी नारियल और फूलो के साथ धतूरा,कनेर के फूलों के साथ दुकान सजा चुके हैं. इस मंदिर में चढ़ने वाला लाख चावल भी तैयार है, जिसे चढ़ाकर श्रद्धालु अपनी मन्नतें पूरी करते हैं.
ब्रह्महत्या से मुक्ति के लिए की थी पूजा
वैसे तो खरौद को छत्तीसगढ़ का काशी कहा जाता है. खरौद के इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि लंकापति रावण का वध करने के बाद लक्ष्मण जी ने राम चंद्र जी से मंदिर की स्थापना कराई. ब्रम्ह हत्या के पाप से मुक्ति के लिए एक लाख शिव लिंग की पूजा की. जिसके कारण आज भी खरौद से स्थापित शिव लिंग में एक लाख छिद्र हैं. इन छिद्र की गहराई का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. जिसके कारण इस शिव लिंग को स्वयं भू भी कहा जाता है. खरौद का लक्ष्मणेश्वर मंदिर ऐसा मंदिर है जहां सावन महीना और महाशिव रात्रि में श्रद्धालु एक लाख चावल का दाना चढ़ाते है और अपनी मनोकामना पूरी करते हैं.
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भगवान राम ने किया था खर-दूषण का वध
शास्त्रों की मानें तो भगवान श्रीराम ने यहां पर खर- दूषण राक्षसों का वध किया था. खरौद नगर में स्थापित है यह दिव्य एवं अद्भुत एक लाख छिद्र वाला भव्य शिव मंदिर है. लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर के गर्भगृह में मौजूद शिवलिंग के बारे में मान्यता है कि इसकी स्थापना स्वयं लक्ष्मण जी ने की थी. इस शिवलिंग में एक लाख छिद्र हैं इसलिए इसे लक्षलिंग कहा जाता है. इन लाख छिद्रों में से एक छिद्र ऐसा है जो कि पाताल तक जाता है क्योंकि उसमें कितना भी जल डाला जाता है सब उसमें समा जाता है जबकि एक छिद्र अक्षय कुण्ड है जिसमें जल हमेशा भरा ही रहता है लक्षलिंग पर चढ़ाया जल मंदिर के पीछे स्थित कुण्ड में चला जाता है क्योंकि ये कुण्ड कभी सूखता नहीं. लक्षलिंग जमीन से करीब 30 फीट ऊपर है और इसे स्वयंभू भी कहा जाता है. सावन के सभी सोमवार और महाशिवरात्रि पर यहां भव्य मेला लगता है. विशेष अवसरों पर यहां शिव भक्तों की काफी भीड़ उमड़ती है. कहा जाता है कि जब भगवान श्रीराम ने लंकापित रावण का वध किया था तब श्रीराम ने ब्रह्महत्या के दोष का निवारण करने के लिए भगवान शिवजी की आराधना की थी.
श्रृद्धालुओं की भीड़ खरौद
शिवरीनारायण में माघी पूर्णिमा से प्रारंभ मेला का विस्तार महाशिवरात्रि तक होता है. मेला में आने वाले श्रृद्धालुओं की भीड़ खरौद पहुंचती है. खरौद के लक्ष्मणेश्वर शिव के दर्शन और जलाभिषेक के लिए देर रात से ही कतार में लग जाते है. भिड़ को काबू करने को पुलिस के साथ स्थानीय वेलिंटियर सेवा में उपस्थित रहते है.