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SPECIAL: आस्था पर कोरोना का असर, मां से दूर हुए भक्त, मायूस होकर दरबार से लौट रहे श्रद्धालु

नवरात्र का पर्व चल रहा है और भक्त मां के दर्शन के लिए मंदिर पहुंच रहे हैं. लेकिन कोरोना काल के चलते श्रद्धालुओं को मां के दर्शन किए बिना ही वापस लौटना पड़ रहा है. जिले में स्थित शक्तिपीठ मां चंद्रहासिनी का दरबार भी कोरोना काल की वजह से खाली पड़ा हुआ है.

Devotees not getting darshan
सूना पड़ा मां का दरबार
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Published : Oct 23, 2020, 9:33 PM IST

जांजगीर-चांपा: जिले के चंद्रपुर में स्थित मां चंद्रहासिनी मंदिर प्रसिद्ध देवी मंदिरों में से एक है. नवरात्रि में यहां प्रदेश और दूसरे राज्यों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. लेकिन कोरोना और प्रशासन के सख्त निर्देश देवी दर्शन के आड़े आ रहा है. बड़ी संख्या में श्रद्धालु बगैर देवी के मंदिर के मुख्य द्वार पर ही पूजा अर्चना कर वापस लौट रहे हैं. पौराणिक काल से मान्यता है कि चंद्रहासिनी मंदिर में ही देवी सती का अधोदन्त (आधा दांत) गिरा था, यही कारण है कि इसे शक्तिपीठ का दर्जा हासिल है.

नवरात्री में भक्तों को नहीं हो रहे माता के दर्शन

पूरे प्रदेश में प्रमुख देवी मंदिरों में प्रशासन के सख्त निर्देश ने नवरात्रि में श्रद्धालुओं का उत्साह फीका कर दिया है. क्योंकि कोरोना संक्रमण को देखते हुए मंदिरों में भक्तों का प्रवेश वर्जित कर दिया गया है. यही कारण है कि जिले के चंद्रहासिनी मंदिर के भी द्वार भक्तों के लिए बंद कर दिए गए हैं. अभी मंदिर के अंदर विधि-विधान के साथ देवी की पूजा अर्चना की जा रही है.

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मां चंद्रहासिनी

चंद्रहासिनी मंदिर का पौराणिक इतिहास

मंदिर के मुख्य पुजारी आनंद कुमार मिश्रा ने बताया कि चंद्रहासिनी मंदिर ही वह स्थान है जहां पर रावण को तपस्या के बाद चंद्रहास खड्ग मिला था. यही कारण है कि इस मंदिर का नाम चंद्रहासिनी मंदिर पड़ गया और जगह का नाम चंद्रपुर. महानदी और मांड़ नदी के संगम में स्थित यह प्रयाग स्थान चंद्रपुर कहलाता है. छोटी सी पहाड़ी में स्थित इस मंदिर में माता का मंदिर है. जहां मां चंद्रहासिनी विराजमान हैं. मंदिर के पुजारी का कहना है कि यहां माता सती का अधोदंत गिरा था, जिसके कारण इसे शक्तिपीठ का दर्जा हासिल है. चंद्रहासिनी मंदिर में 10 हजार से ज्यादा ज्योति कलश प्रज्ज्वलित किए जाते हैं. लेकिन कोविड 19 के चलते इस बार पहले से कम ज्योति कलश प्रज्जवलित किए गए हैं.

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मंदिर में प्रज्जवलित ज्योति कलश

SPECIAL: नवरात्र में सूना है महासमुंद की मां चंडी का दरबार, कभी आरती के समय पहुंचते थे भालू

तंत्र साधना का केंद्र था ये मंदिर

मंदिर के पुजारी ने बताया कि चंद्रहासिनी मंदिर में पहले तांत्रिक विधि से पूजा की जाती थी. यहां बैगा जनजाति के लोग तंत्र साधना किया करते थे. लेकिन दशकों पहले अब यहां तांत्रिक विधि की बजाय वैदिक रीति से पूजा-अर्चना की जा रही है. जहां पंडित माता की पूजा अर्चना करते हैं.

दूर-दूर से पहुंचते हैं श्रद्धालु

प्रदेश ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु चंद्रहासिनी मंदिर पहुंच रहे हैं. लेकिन मुख्य द्वार में ताला जड़े होने के कारण उन्हें बगैर दर्शन के ही वापस लौटना पड़ा रहा है. ऐसी स्थिति में श्रद्धालु मुख्य द्वार पर ही पूजा-अर्चना कर वापस लौट रहे हैं. इस संबंध में श्रद्धालुओं का कहना है कि उन्हें यहां आकर बड़ी निराशा हुई. क्योंकि उन्हें देवी के दर्शन नहीं हुए. इनमें दूसरे राज्यों से भी बड़ी संख्या में लोग आए हुए थे. मंदिर प्रशासन का कहना है कि कोरोना काल को ध्यान में रखते हुए प्रशासन के सख्त निर्देशों का परिपालन किया जा रहा है. यही कारण है कि श्रद्धालुओं के लिए मंदिर के पट बंद कर दिए गए हैं.

जांजगीर-चांपा: जिले के चंद्रपुर में स्थित मां चंद्रहासिनी मंदिर प्रसिद्ध देवी मंदिरों में से एक है. नवरात्रि में यहां प्रदेश और दूसरे राज्यों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. लेकिन कोरोना और प्रशासन के सख्त निर्देश देवी दर्शन के आड़े आ रहा है. बड़ी संख्या में श्रद्धालु बगैर देवी के मंदिर के मुख्य द्वार पर ही पूजा अर्चना कर वापस लौट रहे हैं. पौराणिक काल से मान्यता है कि चंद्रहासिनी मंदिर में ही देवी सती का अधोदन्त (आधा दांत) गिरा था, यही कारण है कि इसे शक्तिपीठ का दर्जा हासिल है.

नवरात्री में भक्तों को नहीं हो रहे माता के दर्शन

पूरे प्रदेश में प्रमुख देवी मंदिरों में प्रशासन के सख्त निर्देश ने नवरात्रि में श्रद्धालुओं का उत्साह फीका कर दिया है. क्योंकि कोरोना संक्रमण को देखते हुए मंदिरों में भक्तों का प्रवेश वर्जित कर दिया गया है. यही कारण है कि जिले के चंद्रहासिनी मंदिर के भी द्वार भक्तों के लिए बंद कर दिए गए हैं. अभी मंदिर के अंदर विधि-विधान के साथ देवी की पूजा अर्चना की जा रही है.

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मां चंद्रहासिनी

चंद्रहासिनी मंदिर का पौराणिक इतिहास

मंदिर के मुख्य पुजारी आनंद कुमार मिश्रा ने बताया कि चंद्रहासिनी मंदिर ही वह स्थान है जहां पर रावण को तपस्या के बाद चंद्रहास खड्ग मिला था. यही कारण है कि इस मंदिर का नाम चंद्रहासिनी मंदिर पड़ गया और जगह का नाम चंद्रपुर. महानदी और मांड़ नदी के संगम में स्थित यह प्रयाग स्थान चंद्रपुर कहलाता है. छोटी सी पहाड़ी में स्थित इस मंदिर में माता का मंदिर है. जहां मां चंद्रहासिनी विराजमान हैं. मंदिर के पुजारी का कहना है कि यहां माता सती का अधोदंत गिरा था, जिसके कारण इसे शक्तिपीठ का दर्जा हासिल है. चंद्रहासिनी मंदिर में 10 हजार से ज्यादा ज्योति कलश प्रज्ज्वलित किए जाते हैं. लेकिन कोविड 19 के चलते इस बार पहले से कम ज्योति कलश प्रज्जवलित किए गए हैं.

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मंदिर में प्रज्जवलित ज्योति कलश

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तंत्र साधना का केंद्र था ये मंदिर

मंदिर के पुजारी ने बताया कि चंद्रहासिनी मंदिर में पहले तांत्रिक विधि से पूजा की जाती थी. यहां बैगा जनजाति के लोग तंत्र साधना किया करते थे. लेकिन दशकों पहले अब यहां तांत्रिक विधि की बजाय वैदिक रीति से पूजा-अर्चना की जा रही है. जहां पंडित माता की पूजा अर्चना करते हैं.

दूर-दूर से पहुंचते हैं श्रद्धालु

प्रदेश ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु चंद्रहासिनी मंदिर पहुंच रहे हैं. लेकिन मुख्य द्वार में ताला जड़े होने के कारण उन्हें बगैर दर्शन के ही वापस लौटना पड़ा रहा है. ऐसी स्थिति में श्रद्धालु मुख्य द्वार पर ही पूजा-अर्चना कर वापस लौट रहे हैं. इस संबंध में श्रद्धालुओं का कहना है कि उन्हें यहां आकर बड़ी निराशा हुई. क्योंकि उन्हें देवी के दर्शन नहीं हुए. इनमें दूसरे राज्यों से भी बड़ी संख्या में लोग आए हुए थे. मंदिर प्रशासन का कहना है कि कोरोना काल को ध्यान में रखते हुए प्रशासन के सख्त निर्देशों का परिपालन किया जा रहा है. यही कारण है कि श्रद्धालुओं के लिए मंदिर के पट बंद कर दिए गए हैं.

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