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जांजगीर-चांपा में दान के महापर्व छेरछेरा की धूम

जांजगीर-चांपा में लोक पारंपरिक छेरछेरा पर्व धूम धाम से मनाया जा रहा है. विरासत में मिली दानशीलता की परंपरा छत्तीसगढ़ के लोगों के जीवन में व्याप्त है. दान कि यह लोक परंपरा अन्नदान के रूप में गांव-गांव में प्रचलित है, जिसे छेरछेरा कहा जाता है.

Chherchera festival celebration
छेरछेरा की धूम
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Published : Jan 28, 2021, 3:40 PM IST

Updated : Jan 28, 2021, 4:47 PM IST

जांजगीर-चांपा: छत्तीसगढ़ सहित जांजगीर-चांपा के गांव-गांव में छेरछेरा महापर्व बनाया जा रहा है. दान का यह पर्व हर वर्ग के लोग बड़े उत्साह से मना रहे हैं.छत्तीसगढ़ में धान का विशेष महत्व है, इसके लिए अलग-अलग किवदंती है, जिसके आधार पर यह छेरछेरा त्योहार मनाया जाता है. दान की महत्ता से छत्तीसगढ़ का जनमानस भली-भांति परिचित है. पौराणिक पात्र राजा मोरध्वज दानी की कथा छत्तीसगढ़ से जुड़ी हुई है. जिन्होंने अपने वचन के पालन के लिए पुत्र ताम्रध्वज के अंगों को आरे से काट दिया और भूखे शेर के सामने परोस दिया था. मोरध्वज की राजधानी छत्तीसगढ़ में ही थी. विरासत में मिली दानशीलता की यह परंपरा लोगों के जीवन में व्याप्त है. दान कि यह लोक परंपरा अन्नदान के रूप में गांव-गांव में प्रचलित है, जिसे छेरछेरा कहा जाता है.

छत्तीसगढ़ में छेरछेरा की धूम

पढ़ें-सड़क पर छेरछेरा धान मांगने निकले सीएम भूपेश बघेल

अन्नदान का महापर्व छेर-छेरा पौष माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है. प्रत्येक पर्व के पीछे लोक कल्याण की भावना छिपी रहती है. लोक कल्याण की इसी भावना के कारण लोक पर्वों का स्वरूप व्यापक बन पड़ता है.छेरछेरा मनाए जाने की परंपरा छत्तीसगढ़ में ही दिखाई देती है. यह सद्भाव और सामाजिक सौहार्द का लोक पर्व है. गांव के सभी जन, बच्चे, वृद्ध, महिला पुरुष याचक के रूप में अन्न मांगते हैं और गृह स्वामी या गृह स्वामिनी उदारता के साथ अन्न का दान करते है. गांव में छेरछेरा की गूंज इस तरह सुनाई पड़ती है.

छेरी के छेरा छेर-छेरा, बरकतीन छेरछेरा
माई कोठी के धान ल हेरते हेरा

उपरोक्त पंक्तियों को गाते हुए बच्चों और युवाओं के साथ ही सयाने की अलग-अलग टोली ढोलक,मांदर, झांझ मंजीरा के साथ घर-घर भ्रमण करती है. कहती है हम छेरछेरा मांगने आए हैं. यह अन्न दान का महापर्व है.अपनी माई कोठी (बड़े अन्नागार) से धान निकाल कर दान करे और पुण्य के भागी बने हैं. बच्चों में विशेष उत्साह रहता है. छेरछेरा अन्नदान का महापर्व है, जिसमें सभी लोग बिना भेदभाव के परस्पर एक दूसरे के घर जाकर छेरछेरा मांगते हैं. इससे आदमी का अहंकार भी मिट जाता है, मनुष्य विनम्र बनता है.

पढ़ें-गुलाब कमरो ने बच्चो के साथ मनाया छेरछेरा पर्व

इस दिन मनाई जाती है शाकंभरी देवी जयंती

छत्तीसगढ़ में कृषि जीवन आधार है और धान मुख्य फसल. किसान धान को बोने से लेकर कटाई और मिजाई के बाद कोठी में धान रखते तक दान परंपरा का निर्वाह करता है. छेरछेरा के दिन शाकंभरी देवी जयंती मनाई जाती है. ऐसी लोक मान्यता है कि प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ में अकाल पड़ने पर सब तरफ हाहाकार मच गया. जिसके बाद दुखी जनों ने पूजा प्रार्थना से माता शाकंभरी को प्रसन्न किया. माता शाकंभरी ने लोगों के अन्न भंडार भर दिए. अकाल की जगह सुकाल हो गया और सभी ओर प्रसन्नता छा गई. तभी से छेरछेरा मनाया जाता है. यह भी लोक मान्यता है कि भगवान शंकर ने इसी दिन नट का रूप धारण कर पार्वती माता अन्नपूर्णा से अन्नदान प्राप्त किया था.

जांजगीर-चांपा: छत्तीसगढ़ सहित जांजगीर-चांपा के गांव-गांव में छेरछेरा महापर्व बनाया जा रहा है. दान का यह पर्व हर वर्ग के लोग बड़े उत्साह से मना रहे हैं.छत्तीसगढ़ में धान का विशेष महत्व है, इसके लिए अलग-अलग किवदंती है, जिसके आधार पर यह छेरछेरा त्योहार मनाया जाता है. दान की महत्ता से छत्तीसगढ़ का जनमानस भली-भांति परिचित है. पौराणिक पात्र राजा मोरध्वज दानी की कथा छत्तीसगढ़ से जुड़ी हुई है. जिन्होंने अपने वचन के पालन के लिए पुत्र ताम्रध्वज के अंगों को आरे से काट दिया और भूखे शेर के सामने परोस दिया था. मोरध्वज की राजधानी छत्तीसगढ़ में ही थी. विरासत में मिली दानशीलता की यह परंपरा लोगों के जीवन में व्याप्त है. दान कि यह लोक परंपरा अन्नदान के रूप में गांव-गांव में प्रचलित है, जिसे छेरछेरा कहा जाता है.

छत्तीसगढ़ में छेरछेरा की धूम

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अन्नदान का महापर्व छेर-छेरा पौष माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है. प्रत्येक पर्व के पीछे लोक कल्याण की भावना छिपी रहती है. लोक कल्याण की इसी भावना के कारण लोक पर्वों का स्वरूप व्यापक बन पड़ता है.छेरछेरा मनाए जाने की परंपरा छत्तीसगढ़ में ही दिखाई देती है. यह सद्भाव और सामाजिक सौहार्द का लोक पर्व है. गांव के सभी जन, बच्चे, वृद्ध, महिला पुरुष याचक के रूप में अन्न मांगते हैं और गृह स्वामी या गृह स्वामिनी उदारता के साथ अन्न का दान करते है. गांव में छेरछेरा की गूंज इस तरह सुनाई पड़ती है.

छेरी के छेरा छेर-छेरा, बरकतीन छेरछेरा
माई कोठी के धान ल हेरते हेरा

उपरोक्त पंक्तियों को गाते हुए बच्चों और युवाओं के साथ ही सयाने की अलग-अलग टोली ढोलक,मांदर, झांझ मंजीरा के साथ घर-घर भ्रमण करती है. कहती है हम छेरछेरा मांगने आए हैं. यह अन्न दान का महापर्व है.अपनी माई कोठी (बड़े अन्नागार) से धान निकाल कर दान करे और पुण्य के भागी बने हैं. बच्चों में विशेष उत्साह रहता है. छेरछेरा अन्नदान का महापर्व है, जिसमें सभी लोग बिना भेदभाव के परस्पर एक दूसरे के घर जाकर छेरछेरा मांगते हैं. इससे आदमी का अहंकार भी मिट जाता है, मनुष्य विनम्र बनता है.

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इस दिन मनाई जाती है शाकंभरी देवी जयंती

छत्तीसगढ़ में कृषि जीवन आधार है और धान मुख्य फसल. किसान धान को बोने से लेकर कटाई और मिजाई के बाद कोठी में धान रखते तक दान परंपरा का निर्वाह करता है. छेरछेरा के दिन शाकंभरी देवी जयंती मनाई जाती है. ऐसी लोक मान्यता है कि प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ में अकाल पड़ने पर सब तरफ हाहाकार मच गया. जिसके बाद दुखी जनों ने पूजा प्रार्थना से माता शाकंभरी को प्रसन्न किया. माता शाकंभरी ने लोगों के अन्न भंडार भर दिए. अकाल की जगह सुकाल हो गया और सभी ओर प्रसन्नता छा गई. तभी से छेरछेरा मनाया जाता है. यह भी लोक मान्यता है कि भगवान शंकर ने इसी दिन नट का रूप धारण कर पार्वती माता अन्नपूर्णा से अन्नदान प्राप्त किया था.

Last Updated : Jan 28, 2021, 4:47 PM IST
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