जगदलपुरः वैश्विक महामारी कोरोना का कहर लोगों पर आफत बनकर टूट पड़ा है, पिछले 2 सालों से कोरोना महामारी की वजह से मध्यमवर्ग और गरीब तबके के लोग आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं. रोज कमा कर खाने वाले मजदूरों और धोबियों पर मानो मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है. बस्तर में कोरोनाकाल की वजह से धोबियों की हालत और भी खराब हो चुकी है. आलम यह है कि लोग कोरोना के डर से धोबियों को अपने कपड़े धोने और प्रेस के लिए नहीं दे रहे हैं. जिससे उनकी स्थिति बद से बदतर होते जा रही है. दूसरों के कपड़ों पर आश्रित धोबियों की जिंदगी और भी दयनीय हो गई. इनकी रोजी रोटी बुरी तरह प्रभावित हो गई है.
जगदलपुर शहर में 200 से भी अधिक परिवार धोबी के काम पर आश्रित है. खानदानी परंपरा के अनुसार उनका परिवार शुरू से ही धोबी का काम करते आ रहा है, कोरोना की वजह से पिछले 2 महीनों के संपूर्ण लॉकडाउन से उनकी स्थिति और भी खराब हो गई, धोबियों के कई परिवारों ने तो इस काम से भी तौबा कर लिया और पेट पालने के लिए दूसरा काम करने लगे, जिससे कि उनका यह बुरा समय कट सके. लगातार लॉक डाउन की वजह से उनके पास लोगों के कपड़े धुलने और इस्त्री करने के लिए आना भी बंद हो गए, वहीं कोरोना ने लोगों पर ऐसा कहर बरपाया कि कई लोगों ने अपने कपड़े भ्रम की वजह से धोबियों को देना ही छोड़ दिए, जिससे धोबियों के परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा.
धोबी का काम छोड़कर मजदूरी का लिया सहारा
धोबी का काम कर रहे मोहन राव का कहना है कि, कोरोना के कहर ने कई धोबियों का रोजगार छिन गया, शहर के कई धोबियों ने कपड़े नहीं मिलते देख मजदूरी का काम शुरू कर दिया. पिछले साल भर से उनके पास आने वाले प्रेस और धुलाई के लिए कपड़े भी कम होते चले गए, लोगों के मन में यह भ्रम उत्पन्न हो गया था कि, धोबियों को कपड़े देने से संक्रमण का खतरा बढ़ जाएगा, इस भ्रम में न सिर्फ कई धोबियों का रोजगार छीना, बल्कि उनके परिवार के पालन पोषण पर भी मुसीबतों का पहाड़ टूट गया कोरोनाकाल के दौरान उनके परिवार के पालन पोषण के लिए उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, उन्हें ऐसा वक्त भी देखना पड़ा जब घर में खाने के लाले पड़ गए थे, और मदद के लिए किसी ने भी हाथ नहीं बढ़ाया. फिलहाल अभी कोरोना से स्थिति सामान्य हुई और कुछ समय सीमा के लिए लॉकडाउन भी खुला, बावजूद इसके आज भी लोग पहले की तरह धोबियों को कपड़े धोने और स्त्री के लिए नहीं देते हैं, जिस वजह से थोड़ी बहुत जो आमदनी होती है उससे ही उन्हें अपना परिवार चलाना पड़ रहा है.
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कोरोना ने धोबियों पर ढाया कहर
मोहन राव जैसे और भी शहर के धोबी हैं, जिन्हें कोरोना ने घर चलाने के लिये सोचने पर मजबूर कर दिया है. शहर के एक धोबी लालू ग्वाले बताते हैं कि वह अपनी खानदानी परंपरा के अनुसार धोबी का काम करते हैं, और उनकी छोटी सी दुकान है. परिवार में चार बेटियां हैं और पत्नी है. पिछले 2 सालों से कोरोना की वजह से उन पर इस कदर मुसीबतों का पहाड़ टूटा है, जिससे उनके सर पर भारी कर्जा होने के साथ ही बेटियों और पत्नी के पालन पोषण की चिंता सताए जा रही है.पिछले 2 सालों से उनकी दो बेटियों के स्कूल फीस भी जमा नहीं हो पाई है. हर रोज स्कूल स्टाफ उनसे फीस लेने के लिए फोन करता है. लेकिन पैसे नहीं होने की वजह से वे स्कूल फीस चुका पाने में भी पूरी तरह से असमर्थ हैं. उनका कहना है कि उनकी बेटियां आगे पढ़ाई करना तो चाहती हैं. लेकिन वे भी राह ताक रहे हैं कि, कब कोरोना से स्थिति सामान्य होगी और पहले की तरह उनके पास लोगों के कपड़े इस्त्री और धुलाई के लिए आ सकेंगे. जिससे कमाई हो सकेगी.