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दशहरा : रोजाना 15 घंटे काम कर बनाते हैं रथ, मानदेय छोड़िए इन कारीगरों को भरपेट खाना भी नहीं मिलता

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Published : Sep 20, 2019, 10:37 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST

बस्तर दशहरे के लिए रथ निर्माण का काम शुरू हो चुका है, लेकिन यहां रथ बनाने आए कारीगर भरपेट खाने के लिए भी तरस रहे हैं.

दाल का बटवारा करते हुए रथ कारीगर

जगदलपुर : बस्तर में 75 दिनों तक मनाए जाने वाले विश्व प्रसिद्ध दशहरे की शुरुआत हो चुकी है. इस पर्व की सबसे महत्वपूर्ण रस्म रथ परिक्रमा और आकर्षण कहे जाने वाले 8 चक्कों के विशालकाय रथ का निर्माण कार्य भी शुरू हो चुका है.

रथ कारीगरों को भरपेट खाना भी नहीं मिल रहा.

20 दिनों के अंदर 30 फीट ऊंचे इस रथ का निर्माण करने वाले कारीगर भी रथ को तैयार करने में जुट गए हैं, लेकिन प्रशासन की अनदेखी के चलते इन रथ कारीगरों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. आलम ये है कि दिन में 15 घंटे से ज्यादा काम करने वाले इन रथ कारीगरों के लिए प्रशासन ने भरपेट भोजन की व्यवस्था भी नहीं की है.

  • परंपरा के अनुसार बस्तर अंचल के छाड़उमरगांव और बड़ेउमर गांव से लगभग 200 से अधिक की संख्या में रथ कारीगर विशालकाय रथ का निर्माण करने जगदलपुर पहुंचते हैं.
  • कारीगरों के लिए शहर के सिरहासार भवन में प्रशासन द्वारा ठहरने की व्यवस्था की जाती है और सिरहासार भवन के परिसर में 20 दिनों के अंदर इन ग्रामीणों द्वारा 30 फीट ऊंचे रथ का निर्माण किया जाता है.
  • लगभग 200 कारीगर सुबह से शाम तक रथ के निर्माण कार्य में जुटे रहते हैं और 15 घंटे से अधिक समय तक रथ निर्माण का कार्य करते हैं.

परेशानियों से जूझ रहे रथ बनाने वाले कारीगर
ETV भारत ने जब इन रथ कारीगरों से बात की, तो उन्होंने बताया कि, 'वे अपने परिवार को छोड़ 20 दिनों तक सिरहासार भवन में ठहरते हैं और रथ निर्माण का कार्य करते हैं, लेकिन प्रशासन खाने के नाम पर नाम मात्र का चावल और दाल देता है और तीन दिनों के लिए एक लीटर तेल दिया जाता है. वहीं चाय के लिए चाय पत्ती और शक्कर दी जाती है.

  • कारीगरों ने बताया कि, 'इतने कम राशन में 200 से अधिक लोगों को पेट भर भोजन मिलना संभव नहीं हो पाता और सिर्फ चावल और दाल से ही उन्हें काम चलाना पड़ता है. सुबह नाश्ता भी उन्हें नहीं दिया जाता और ना ही खाने में कोई भी सब्जी दी जाती है.' ऐसा नहीं है कि प्रशासन को इस बात की जानकारी नहीं है.
  • कारीगरों का कहना है कि, 'वे कई बार प्रशासन से पर्याप्त राशन, सब्जी और सुबह के लिए नाश्ते की मांग कर चुके हैं, लेकिन प्रशासन ये सब मुहैया कराने में हमेशा असमर्थता जाहिर करता है. इसके अलावा अपने परिवार से 20 दिनों तक दूर रहने वाले इन रथ कारीगरों को कोई मानदेय भी नहीं दिया जाता'.
  • कारीगरों का कहना है कि, 'हर बार प्रशासन से थोड़ी बहुत मानदेय देने की मांग की जाती है. पर्व के बाद मानदेय देने का आश्वासन तो मिलता है, लेकिन पैसे नहीं मिल पाते'.
  • कारीगरों का कहना है कि, 'चूंकि परंपरा अनुसार उनके परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी रथ निर्माण का कार्य दशहरा पर्व के दौरान करते आए हैं इसीलिए आज भी इस परंपरा का वे निर्वहन करते हैं, लेकिन शासन-प्रशासन उनकी इन परेशानियों का कोई समाधान नहीं करता और मजबूरन आधा पेट भोजन कर अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना पड़ता है'.

पढ़ें- धमतरी : 51 लाख का स्टेडियम तो बना दिया, लेकिन वहां जाने के लिए रास्ता बनाना भूल गए 'साहब'

गौरतलब है कि प्रशासन हर साल धर्मस्व एवं संस्कृति विभाग से विश्व प्रसिद्ध दशहरा पर्व के लिए लाखों रुपए बजट की मांग करता है और ये मांग पूरी भी होती है, लेकिन विश्व पटल में बस्तर दशहरा के पर्व में अपनी अहम भूमिका निभाने वाले इन रथ कारीगरों और मांझी मुखिया को पर्व के दौरान इस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. तारीफ करने वाली बात ये है कि इन सब परेशानियों के बावजूद ये कारीगर ईमानदारी से अपना काम करते हैं.

जगदलपुर : बस्तर में 75 दिनों तक मनाए जाने वाले विश्व प्रसिद्ध दशहरे की शुरुआत हो चुकी है. इस पर्व की सबसे महत्वपूर्ण रस्म रथ परिक्रमा और आकर्षण कहे जाने वाले 8 चक्कों के विशालकाय रथ का निर्माण कार्य भी शुरू हो चुका है.

रथ कारीगरों को भरपेट खाना भी नहीं मिल रहा.

20 दिनों के अंदर 30 फीट ऊंचे इस रथ का निर्माण करने वाले कारीगर भी रथ को तैयार करने में जुट गए हैं, लेकिन प्रशासन की अनदेखी के चलते इन रथ कारीगरों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. आलम ये है कि दिन में 15 घंटे से ज्यादा काम करने वाले इन रथ कारीगरों के लिए प्रशासन ने भरपेट भोजन की व्यवस्था भी नहीं की है.

  • परंपरा के अनुसार बस्तर अंचल के छाड़उमरगांव और बड़ेउमर गांव से लगभग 200 से अधिक की संख्या में रथ कारीगर विशालकाय रथ का निर्माण करने जगदलपुर पहुंचते हैं.
  • कारीगरों के लिए शहर के सिरहासार भवन में प्रशासन द्वारा ठहरने की व्यवस्था की जाती है और सिरहासार भवन के परिसर में 20 दिनों के अंदर इन ग्रामीणों द्वारा 30 फीट ऊंचे रथ का निर्माण किया जाता है.
  • लगभग 200 कारीगर सुबह से शाम तक रथ के निर्माण कार्य में जुटे रहते हैं और 15 घंटे से अधिक समय तक रथ निर्माण का कार्य करते हैं.

परेशानियों से जूझ रहे रथ बनाने वाले कारीगर
ETV भारत ने जब इन रथ कारीगरों से बात की, तो उन्होंने बताया कि, 'वे अपने परिवार को छोड़ 20 दिनों तक सिरहासार भवन में ठहरते हैं और रथ निर्माण का कार्य करते हैं, लेकिन प्रशासन खाने के नाम पर नाम मात्र का चावल और दाल देता है और तीन दिनों के लिए एक लीटर तेल दिया जाता है. वहीं चाय के लिए चाय पत्ती और शक्कर दी जाती है.

  • कारीगरों ने बताया कि, 'इतने कम राशन में 200 से अधिक लोगों को पेट भर भोजन मिलना संभव नहीं हो पाता और सिर्फ चावल और दाल से ही उन्हें काम चलाना पड़ता है. सुबह नाश्ता भी उन्हें नहीं दिया जाता और ना ही खाने में कोई भी सब्जी दी जाती है.' ऐसा नहीं है कि प्रशासन को इस बात की जानकारी नहीं है.
  • कारीगरों का कहना है कि, 'वे कई बार प्रशासन से पर्याप्त राशन, सब्जी और सुबह के लिए नाश्ते की मांग कर चुके हैं, लेकिन प्रशासन ये सब मुहैया कराने में हमेशा असमर्थता जाहिर करता है. इसके अलावा अपने परिवार से 20 दिनों तक दूर रहने वाले इन रथ कारीगरों को कोई मानदेय भी नहीं दिया जाता'.
  • कारीगरों का कहना है कि, 'हर बार प्रशासन से थोड़ी बहुत मानदेय देने की मांग की जाती है. पर्व के बाद मानदेय देने का आश्वासन तो मिलता है, लेकिन पैसे नहीं मिल पाते'.
  • कारीगरों का कहना है कि, 'चूंकि परंपरा अनुसार उनके परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी रथ निर्माण का कार्य दशहरा पर्व के दौरान करते आए हैं इसीलिए आज भी इस परंपरा का वे निर्वहन करते हैं, लेकिन शासन-प्रशासन उनकी इन परेशानियों का कोई समाधान नहीं करता और मजबूरन आधा पेट भोजन कर अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना पड़ता है'.

पढ़ें- धमतरी : 51 लाख का स्टेडियम तो बना दिया, लेकिन वहां जाने के लिए रास्ता बनाना भूल गए 'साहब'

गौरतलब है कि प्रशासन हर साल धर्मस्व एवं संस्कृति विभाग से विश्व प्रसिद्ध दशहरा पर्व के लिए लाखों रुपए बजट की मांग करता है और ये मांग पूरी भी होती है, लेकिन विश्व पटल में बस्तर दशहरा के पर्व में अपनी अहम भूमिका निभाने वाले इन रथ कारीगरों और मांझी मुखिया को पर्व के दौरान इस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. तारीफ करने वाली बात ये है कि इन सब परेशानियों के बावजूद ये कारीगर ईमानदारी से अपना काम करते हैं.

Intro:जगदलपुर । बस्तर में 75 दिनों तक मनाए जाने वाले विश्व प्रसिद्ध दशहरा पर्व की शुरुआत हो चुकी है। और इस पर्व की सबसे महत्वपूर्ण रस्म रथ परिक्रमा और आकर्षण कहे जाने वाली 8 चक्कों की विशालकाय रथ का निर्माण कार्य भी शुरू हो चुका है। 20 दिनों के भीतर 30 फीट ऊंचे इस रथ का निर्माण करने वाले ग्रामीण रथ कारीगर भी रथ को तैयार करने में जुट गए हैं। लेकिन प्रशासन की अनदेखी के चलते इन रथ कारीगरों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। आलम यह है कि दिन भर में 15 घंटों से अधिक काम करने वाले इन रथ कारीगरों के लिए प्रशासन ने भरपेट भोजन की भी व्यवस्था नहीं की है।




Body:दरअसल परंपरा अनुसार बस्तर अंचल के छाड़उमरगांव और बडेउमर गांव से लगभग 200 से अधिक की संख्या में रथ कारीगर विशालकाय रथ का निर्माण करने जगदलपुर पहुंचते हैं। और इनके लिए शहर के सिरहासार भवन में प्रशासन द्वारा ठहरने की व्यवस्था की जाती है। और सिरहासार भवन के परिसर में 20 दिनों के भीतर इन ग्रामीणों द्वारा 30 फीट ऊंचे रथ का निर्माण किया जाता है। लगभग 200 कारीगर सुबह से शाम तक रथ के निर्माण कार्य में धूप बारिश में जुट जाते हैं। और 15 घंटों से अधिक समय तक रथ निर्माण का कार्य करते हैं। लेकिन प्रशासन की बेरुखी तो देखिए इन मेहनतकश ग्रामीणों को भरपेट भोजन भी नसीब नहीं होता। ईटीवी भारत ने जब इन रथ कारीगरों से बात की तो उन्होंने बताया कि वे अपने परिवार को छोड़ 20 दिनों तक सिरहासार भवन में ठहरते हैं। और रथ निर्माण का कार्य करते हैं। प्रशासन इन्हें चावल और नाम मात्र के लिए दाल देता है और सुबह चाय के लिए चाय पत्ती और शक्कर । वही 75 रथ कारीगरों के पीछे 1 लीटर तेल और उसे भी इन्हें 3 दिन चलाना पड़ता है। कारीगरों ने बताया कि इतने कम राशन में 200 से अधिक लोगों का पेट भर भोजन मिलना संभव नहीं हो पाता। और सिर्फ चावल और दाल से ही उन्हें काम चलाना पड़ता है सुबह नाश्ता भी उन्हें नहीं दिया जाता और ना ही खाने में कोई भी सब्जी दी जाती है।


Conclusion:ऐसा नहीं है कि प्रशासन को इस बात की जानकारी नहीं है। कारीगरों का कहना है कि वे कई बार प्रशासन से पर्याप्त राशन और सब्जी और सुबह नाश्ता की मांग कर चुके हैं। लेकिन प्रशासन यह सब मुहैया कराने में हमेशा असमर्थता जाहिर करता है। इसके अलावा अपने परिवार से 20 दिनों तक दूर रहने वाले इन रथ कारीगरों को कोई मानदेय भी नहीं दिया जाता ।कारीगरों का कहना है कि हर बार प्रशासन से थोड़ी बहुत मानदेय देने की मांग की जाती है लेकिन पर्व के बाद मानदेय देने का आश्वासन तो मिलता है। लेकिन पैसा नहीं मिल पाता। कारीगरों का कहना है कि चूंकि परंपरा अनुसार उनके परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी रथ निर्माण का कार्य दशहरा पर्व के दौरान करते आए हैं इसलिए आज भी इस परंपरा का वे निर्वहन करते हैं । लेकिन शासन प्रशासन उनके इन दिक्कतों का कोई समाधान नहीं करता और मजबूरन आधा पेट भोजन कर अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना पड़ता है।
गौरतलब है कि प्रशासन हर साल धर्मस्व एवं संस्कृति विभाग से विश्व प्रसिद्ध दशहरा पर्व के लिए लाखों रुपए बजट की मांग करता है और यह मांग पूरी भी होती है लेकिन विश्व पटल में बस्तर दशहरा के पर्व में अपनी अहम भूमिका निभाने वाले इन रथ कारीगरों व माझी मुखिया को पर्व के दौरान इस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है और प्रशासन भी इनके दिक्कतों से मुंह मोड़ लेता है।

बाईट1-दलपति , रथ कारीगर ' बुजुर्ग"

बाईट2-लखन बघेल, रथ कारीगर

WT -ASHOK NAIDU
Last Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST
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