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नवरात्र विशेषः बस्तर की कुलदेवी हैं मां हिंगलाज, ऐसी हैं मान्यताएं - hinglaj maharani

गिरोला गांव में विराजमान मां हिंगलाजिन बस्तर की कुलदेवी मानी जाती हैं. बस्तर और ओडिशा की सीमा पर स्थित गिरोला गांव में विराजमान मां हिंगलाजिन यहां वर्षों से पूजी जा रही हैं.

विराजमान मां हिंगलाजिन
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Published : Oct 5, 2019, 12:14 AM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST

जगदलपुर: आदि शक्ति मां दंतेश्वरी बस्तर की आराध्य देवी मानी जाती हैं. कालांतर से ही मां दंतेश्वरी के प्रति बस्तरवासियों में गहरी आस्था है. इसके अलावा बस्तर में एक और देवी हैं, जिसे बस्तर की कुलदेवी कहा जाता है. मां दंतेश्वरी की तरह ही मां हिंगलाज के प्रति बस्तरवासियों के साथ पड़ोसी राज्य तेलंगाना और ओडिशा के लोगों में गहरी आस्था है. हिंगलाजिन मां को मां दंतेश्वरी का ही एक रूप माना जाता है.

बस्तर की कुलदेवी

शहर से 40 किलोमीटर दूर बस्तर ब्लॉक के गिरोला गांव में विराजमान मां हिंगलाजिन बस्तर की कुलदेवी मानी जाती हैं. बस्तर और ओडिशा की सीमा पर स्थित गिरोला गांव में विराजमान मां हिंगलाजिन यहां वर्षों से पूजी जा रही हैं. कालांतर से मां हिंगलाज का इस गांव में विशेष महत्व है. यहीं वजह है कि बस्तर के साथ पूरे छत्तीसगढ़, ओडिशा और तेलंगाना राज्य से बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां हिंगलाजिन के दर्शन के लिए गिरोला पहुंचते हैं.

बढ़ती जा रही है श्रद्धालुओं की संख्या
यहां के प्रधान पुजारी लोकनाथ कश्यप बताते हैं कि राजा महाराजा के समय से स्थापित देवी मां के मंदिर में पीढ़ी दर पीढ़ी उनका परिवार पूजा करता आ रहा है. हिंगलाजिन माता बस्तर की कुलदेवी और मां दंतेश्वरी की एक रूप है. पुजारी ने बताया कि तीनों राज्यों से पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या साल दर साल बढ़ती ही जा रही है.

गर्भगुड़ी में चांदी के छोटे बड़े छत्रियों का अंबार
ऐसी मान्यता है कि लोग अपनी मनोकामना लेकर माता के मंदिर आते हैं और मनोकामनां पूरी होने पर चांदी के छत्र चढ़ाते हैं. इसे माता का सिहासन छतरी भी कहा जाता है. मंदिर के प्रांगण में अनेक देवी देवताओं की मूर्ति स्थापित है और मां हिंगलाजिन माता के गर्भगुड़ी में चांदी के छोटे बड़े छत्रियों का अंबार लगा हुआ है.

पूजा के दौरान बजाया जाता है मोरिया बाजा
यहां के श्रद्धालुओं का कहना है कि हिंगलाजिन माता के प्रति बस्तरवासियों में गहरी आस्था है. बस्तर के साथ बाकी राज्यों के श्रद्धालु भी अपनी-अपनी मनोकामनाएं लेकर नवरात्र के समय माता के दरबार पहुंचते हैं और यहां माता से प्रार्थना के समय बस्तर का विशेष मोरिया बाजा बजाया जाता है. मान्यता है कि प्रार्थना के वक्त मोरिया बाजा से मां प्रसन्न होती हैं.

हजारों की संख्या में जलता है मनोकामनां दीप
छत्तीसगढ़ और ओडिशा की सीमा पर स्थापित मंदिर का 2016 में जीर्णोद्धार किया गया था, जिसके बाद से साल दर साल यहां श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती चली गई. नवरात्रि के समय हजारों की संख्या में यहां लोगों की भीड़ माता के दर्शन के लिए उमड़ पड़ती है और लोग हजारों की संख्या में मनोकामनां दीप जलाते हैं. बस्तर में दंतेश्वरी माई के बाद हिंगलाजिन माता और मावली माता सबसे अधिक पूजी जाती हैं.

जगदलपुर: आदि शक्ति मां दंतेश्वरी बस्तर की आराध्य देवी मानी जाती हैं. कालांतर से ही मां दंतेश्वरी के प्रति बस्तरवासियों में गहरी आस्था है. इसके अलावा बस्तर में एक और देवी हैं, जिसे बस्तर की कुलदेवी कहा जाता है. मां दंतेश्वरी की तरह ही मां हिंगलाज के प्रति बस्तरवासियों के साथ पड़ोसी राज्य तेलंगाना और ओडिशा के लोगों में गहरी आस्था है. हिंगलाजिन मां को मां दंतेश्वरी का ही एक रूप माना जाता है.

बस्तर की कुलदेवी

शहर से 40 किलोमीटर दूर बस्तर ब्लॉक के गिरोला गांव में विराजमान मां हिंगलाजिन बस्तर की कुलदेवी मानी जाती हैं. बस्तर और ओडिशा की सीमा पर स्थित गिरोला गांव में विराजमान मां हिंगलाजिन यहां वर्षों से पूजी जा रही हैं. कालांतर से मां हिंगलाज का इस गांव में विशेष महत्व है. यहीं वजह है कि बस्तर के साथ पूरे छत्तीसगढ़, ओडिशा और तेलंगाना राज्य से बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां हिंगलाजिन के दर्शन के लिए गिरोला पहुंचते हैं.

बढ़ती जा रही है श्रद्धालुओं की संख्या
यहां के प्रधान पुजारी लोकनाथ कश्यप बताते हैं कि राजा महाराजा के समय से स्थापित देवी मां के मंदिर में पीढ़ी दर पीढ़ी उनका परिवार पूजा करता आ रहा है. हिंगलाजिन माता बस्तर की कुलदेवी और मां दंतेश्वरी की एक रूप है. पुजारी ने बताया कि तीनों राज्यों से पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या साल दर साल बढ़ती ही जा रही है.

गर्भगुड़ी में चांदी के छोटे बड़े छत्रियों का अंबार
ऐसी मान्यता है कि लोग अपनी मनोकामना लेकर माता के मंदिर आते हैं और मनोकामनां पूरी होने पर चांदी के छत्र चढ़ाते हैं. इसे माता का सिहासन छतरी भी कहा जाता है. मंदिर के प्रांगण में अनेक देवी देवताओं की मूर्ति स्थापित है और मां हिंगलाजिन माता के गर्भगुड़ी में चांदी के छोटे बड़े छत्रियों का अंबार लगा हुआ है.

पूजा के दौरान बजाया जाता है मोरिया बाजा
यहां के श्रद्धालुओं का कहना है कि हिंगलाजिन माता के प्रति बस्तरवासियों में गहरी आस्था है. बस्तर के साथ बाकी राज्यों के श्रद्धालु भी अपनी-अपनी मनोकामनाएं लेकर नवरात्र के समय माता के दरबार पहुंचते हैं और यहां माता से प्रार्थना के समय बस्तर का विशेष मोरिया बाजा बजाया जाता है. मान्यता है कि प्रार्थना के वक्त मोरिया बाजा से मां प्रसन्न होती हैं.

हजारों की संख्या में जलता है मनोकामनां दीप
छत्तीसगढ़ और ओडिशा की सीमा पर स्थापित मंदिर का 2016 में जीर्णोद्धार किया गया था, जिसके बाद से साल दर साल यहां श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती चली गई. नवरात्रि के समय हजारों की संख्या में यहां लोगों की भीड़ माता के दर्शन के लिए उमड़ पड़ती है और लोग हजारों की संख्या में मनोकामनां दीप जलाते हैं. बस्तर में दंतेश्वरी माई के बाद हिंगलाजिन माता और मावली माता सबसे अधिक पूजी जाती हैं.

Intro:जगदलपुर। आदि शक्ति मां दंतेश्वरी बस्तर की आराध्य देवी मानी जाती है। कालांतर से ही मां दंतेश्वरी के प्रति बस्तर वासियों की काफी गहरी आस्था है। लेकिन बस्तर में एक और देवी है जिसे बस्तर की कुलदेवी कहा जाता है दंतेश्वरी माता की तरह मां हिंगलाज माता के प्रति बस्तर वासियों के साथ ही पड़ोसी राज्य तेलंगाना और उड़ीसा के लोगों में भी काफी गहरी आस्था है। हिंगलाजिन माता दंतेश्वरी माता का ही एक रूप है जिसकी काफी वर्षों से आराधना की जाती है।




Body:जगदलपुर शहर से 40 किलोमीटर की दूरी पर बस्तर ब्लॉक में गिरोला गांव में विराजी हिंगलाजिन माता बस्तर की कुलदेवी मानी जाती है । बस्तर और उड़ीसा के सीमा पर स्थित गिरोला गांव में विराजी मां हिंगलाजिन माता की वर्षों से पूजी जाती है। कालांतर समय से ही मां हिंगलाज माता का इस गांव में विशेष महत्व है यही वजह है कि बस्तर के साथ-साथ पूरे छत्तीसगढ़ और उड़ीसा एवं तेलंगाना राज्य से बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां हिंगलाजिन माता के दर्शन के लिए गिरोला पहुंचते हैं। नवरात्रि के समय हजारों की संख्या में भक्तों का इस मंदिर में तांता लगे रहता है ।




Conclusion:यहां के प्रधान पुजारी लोकनाथ कश्यप बताते हैं कि राजा महाराजा के समय से स्थापित देवी मां के मंदिर में पीढ़ी दर पीढ़ी उनका परिवार पूजा करते आ रहा है ।हिंगलाजिन माता बस्तर की कुलदेवी और मां दंतेश्वरी का एक रूप है। और तीनों राज्यो से पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या साल दर साल बढ़ती जा रही है। साथ ही श्रद्धालु यहां मनोकामना दीप भी प्रज्वलित करते हैं।
ऐसी मान्यता है कि लोग अपनी मनोकामना लेकर माता के मंदिर आते हैं और मनोकामना पूरी होने पर चांदी के छत्र चढ़ाते हैं।
इसे माता का सिहासन छतरी भी कहा जाता है।
मंदिर के प्रांगण में अनेक देवी देवताओं की मूर्ति स्थापित हैं। और मां हिंगलाजिन माता के गर्भगुड़ी में चांदी के छोटे बड़े छत्रियों का अंबार लगा है।
श्रद्धालुओं का कहना है कि हिंगलाजिन माता के प्रति बस्तर वासियों की काफी गहरी आस्था है । बस्तर के साथ-साथ बाकी राज्यों के श्रद्धालु भी अपनी अपनी मनोकामना लेकर नवरात्रि के समय माता के दरबार पहुंचते हैं और यहां माता से प्रार्थना के वक्त बस्तर का विशेष मोरिया बाजा बजाया जाता है। मान्यता है कि प्रार्थना के वक्त मोरिया बाजा से मां प्रसन्न होती है और यही वजह है कि नवरात्रि के अलावा हर दिन मोरिया बाजा बजाकर माता की आरती की जाती है। यही नहीं श्रद्धालुओं का कहना है कि हिंगलाजिन माता बस्तर की कुलदेवी है इस वजह से कई श्रद्धालु अपनी अपनी मनोकामना लेकर आते हैं और उनकी मनोकामना जरूर पूरी होती है।
छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के सीमा में स्थापित यह मंदिर का 2016 में जीर्णोद्धार किया गया। जिसके बाद से साल दर साल यहां श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती चली गई । नवरात्रि के समय हजारों की संख्या में यहां लोगों की भीड़ माता के दर्शन के लिए उमड़ पड़ती है। और लोग हजारों की संख्या में मनोकामना दीप जलाते हैं । बस्तर में दंतेश्वरी माई के बाद हिंगलाजिन माता और मावली माता सबसे अधिक पूजे जाते हैं। और यहां की कुलदेवी के रूप में  बस्तरवासी इन्हें पूजते हैं।

बाईट1- लोकनाथ कश्यप, प्रधान पुजारी

बाईट2-डमरूधर बघेल, स्थानीय ग्रामीण

बाईट3-दीपक साव, श्रद्धालु " चश्मा पहने हुए "

Last Updated : Jul 25, 2023, 7:56 AM IST
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