दरभा नाम तो आपने 2013 में ही खूब सुन लिया होगा. यहां की झीरम घाटी में नक्सलियों ने मौत का तांडव किया था. ईटीवी भारत की टीम बस्तर के दरभा ब्लॉक के गांव पहुंची. ये गांव हैं कोलेंग, छिंदगुर और चांदामेटा. लोकसभा चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हों इसके लिए चुनाव आयोग ने मतदान केंद्रों को सुरक्षित स्थानों तक शिफ्ट कर चुनाव कराने के निर्देश दिए गए हैं.
बाइक से पहुंचे कलेक्टर और एसपी
ईटीवी भारत की टीम ने कोलेंग, जहां पहुंचना भी बहुत कठिन था वहां के लोगों से बात की. अब यहां तक सड़क का निर्माण किया जा रहा है और खास बात यह है कि इस सड़क के लिए कोलेंग वासियों ने एक बार मतदान का बहिष्कार भी किया था. क्षेत्र में मतदान करवाने की चुनौती इससे भी समझी जा सकती है कि यहां के 10 पोलिंग बूथों का जायजा लेने जिले के कलेक्टर और एसपी को मोटरसाइकिल से पहुंचना पड़ता है.
सुरक्षा को ध्यान में रखकर लिए जा रहे हैं फैसले
मतदान की तैयारियों का जायजा लेकर लौट रहे बस्तर एसपी ने बताया कि कोलेंग में 6 पोलिंग बूथ होंगे जिसमें दो सुरक्षा बूथों को सुरक्षा की दृष्टि से सुरक्षित स्थान पर शिफ्ट किया जाना है. वहीं लोकसभा में अतिरिक्त बल की संख्या कम मिलने की वजह से क्षेत्र में चुनाव करवाने की चुनौती और भी बढ़ जाती है. सुरक्षित मतदान करवाने के लिए जवानों ने पूरी ताकत झोंक रखी है. वहीं बस्तर कलेक्टर ने जानकारी दी कि सुरक्षा को ध्यान में रखकर ही सारे निर्णय लिए जा रहे हैं.
कई किलोमीटर पैदल चलते हैं ग्रामीण
कोलेंग ने हमें चौंकाया भी है. यहां तक पहुंचना मुश्किल था तो हालात भी बदतर थे. लेकिन अब स्थितियां बदल रही हैं. कभी यहां वोट नहीं पड़े थे लेकिन विधानसभा चुनाव में 70% मतदान हुआ. बस्तर कलेक्टर ने बताया कि जिले में 10 पुलिंग बूथों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया जाएगा और ऐसे में ग्रामीणों को मतदान करने 10 से 15 किलोमीटर तक पैदल चल कर पोलिंग बूथ तक पहुंचना होगा.
नक्सलियों ने तोड़ दिए सरकारी भवन
लगभग 40 किलोमीटर का सफर तय कर जब ईटीवी भारत की टीम कोलेंग पहुंची तो हमारा स्वागत नक्सलियों द्वारा तोड़े गए भवनों ने किया. जो आज भी नक्सली उत्पात के गवाह बने गांव के दरवाजे पर ही खड़े हैं.
डर-डरकर ग्रामीणों ने दी जानकारी
कोलेंग के ग्रामीणों से मुलाकात कर जब हमने स्थिति जानने की कोशिश की तो पहले यह कैमरे पर बोलने से डरते रहे पर जब हमने भरोसा दिलाया तब कैमरे पर उन्होंने अपना दर्द बयां करते हुए बताया कि उनके गांव तक सड़क का निर्माण तो हो रहा है पर इसके लिए भी उन्हें मतदान का बहिष्कार करना पड़ा था.
ग्रामीणों को है विकास कार्यों का इंतजार
गांव तक सड़क तो बन रही है पर अभी भी बहुत कुछ विकास कार्य हैं जिसका इंतजार यहां के ग्रामीणों को है. इस गांव में सीआरपीएफ के कैंप स्थापित किए जाने के बाद कुछ परिस्थितियां सामान्य हुई हैं. लेकिन आज भी बना हुआ है जिसकी वजह है यहां के तीन-तीन जनप्रतिनिधियों की दिनदहाड़े नक्सलियों द्वारा हत्या किया जाना.
नक्सलियों के डर से युवाओं का पलायन
आज भी गांव के कई युवा बस इस डर से यहां नहीं रहते कि कहीं नक्सली उन्हें जबरदस्ती अपने संगठन में ना शामिल कर ले जान जोखिम में डालकर आज भी ग्रामीण वोट तो करते हैं पर जीतने के बाद कोई भी जनप्रतिनिधि इनकी सुध नहीं लेता. हालांकि उन्होंने फिर भी नक्सली भय को किनारे रखकर इस बार भी वोट देने जाने की बात कही है इस उम्मीद के साथ कि उनके एक वोट से गांव का विकास होगा.
मूलभूत सुविधाओं से दूर है गांव
कोलेंग से आगे बढ़ेंगे तो छिंदगुर गांव है जो कि तुलसी डोंगरी के ठीक नीचे बसा हुआ है. तुलसी डोंगरी को नक्सलियों का सेफ जोन माना जाता है वजह है कि इसके दूसरी ओर बसा ओडिशा. नक्सली किसी भी घटना को अंजाम देकर बड़ी आसानी से दूसरे राज्य की सीमा में प्रवेश कर जाते हैं. गांव में किसी प्रकार की मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं. गांव वालों का कहना है कि नक्सली बेखौफ कभी भी गांव में आ जाते हैं, कैम्प खुलने से यह सिलसिला कम हुआ है लेकिन थमा नहीं है.
कुपोषण का शिकार हैं बच्चे
इस गांव के लोग पूरी हिम्मत जुटाकर पोलिंग बूथ तक पहुंचते हैं पर सरकार अब तक हिम्मत नहीं जुटा पाई और शायद यही वजह है कि आज भी गांव के बच्चे कुपोषण का शिकार हैं बच्चों को बीमारी हो जाए तो परिजन अस्पताल ले जाने की वजह गांव के ही सिरहा गुनिया के पास ले जाते हैं.
वीरान मिलेंगे यहां के गांव
छिंदगुर गांव के ही रहने वाले लक्ष्मण बताते हैं कि वह गोवा में मजदूरी करते हैं और उनके जैसे गांव के लगभग सभी युवा बाहर ही रहते हैं. गांव के युवक युवतियां हमेशा से ही नक्सलियों के निशाने पर होते हैं और यही वजह है कि यह गांव आपको लगभग विरान ही मिलेगा. यहां के अधिकतर घरों में ताला लटका हुआ मिलेगा.
देखने को हैं मोबाइल के टावर
गांव में मोबाइल का टॉवर तो लगा हुआ है पर नक्सलियों की चेतावनी की वजह से बंद पड़ा है. नक्सलियों ने फरमान जारी किया है कि अगर मोबाइल टावर चालू होगा तो वह पूरे गांव को ही आग लगा देंगे. चुनाव को लेकर भी नक्सलियों की स्थिति स्पष्ट है कि जिनके हाथों में स्याही का निशान मिलेंगे तो वह हाथ काट दिए जाएंगे बावजूद इसके गांव वाले वोट करते हैं और उंगली में लगे स्याही के निशान ब्लेड से खरोंच कर मिटा देते हैं.
काश गांववालों की परेशानियां समझ पाते हमारे प्रतिनिधि
मतदाताओं के एक वोट के बदले विकास और सुविधाओं के दावे करने वाले नेताजी लोगों को ये खबर जरूर देखनी चाहिए और समझना चाहिए कि आपका एक वादा इन्हें मौत से जड़कर लोकतंत्र के पर्व में शामिल होने के लिए प्रेरित कर रहा है. झूठ नहीं बल्कि इनकी उम्मीदें पूरी कर प्रजातंत्र पर उनका विश्वास और मजबूत कीजिए.