जगदलपुर: बस्तर संभाग वनों से घिरा हुआ है. यहां वनोपज संग्रहण करना ग्रामीणों की जीवनशैली का हिस्सा है. कोरोना संक्रमण की वजह से जब सभी कारोबार ठप पड़ गए, तब मुसीबत के समय यहीं वनोपज ग्रामीणों का सहारा बनी है.
आर्थिक स्थिति हुई मजबूत
बस्तर में कोरोना महामारी की वजह से लॉकडाउन के दौरान भी वनोपज संग्रहण पर कोई रोक नहीं लगाई गई थी. ग्रामीण सभी नियमों का पालन करते हुए वनोपज इकट्ठा कर रहे थे. फरवरी से जून तक संग्रहण का काम कर रही अंचल की महिलाओं को लाखों रुपये की आय हुई है. कोरोना संक्रमण की वजह से वन विभाग घर-घर जाकर वनोपज संग्रहण कर रहा है.
लक्ष्य से ज्यादा संग्रहण
महुआ, टोरा, चिरौंजी, काजू, इमली, हर्रा, साल बीज का लक्ष्य से भी ज्यादा संग्रहण हुआ है. खास बात यह रही कि बस्तर जिले के विभिन्न स्व-सहायता समूह और वन प्रबंधन समिति ने कोरोना की वजह से संग्राहकों से डोर-टू-डोर जाकर वनोपज खरीदी किया. इस साल तेंदूपत्ता संग्रहण भी बड़ी मात्रा में किया गया, जिससे ग्रामीण संग्राहकों को अच्छी आय हुई है.
⦁ फरवरी से जून तक बस्तर संभाग के 4 वनमंडल सुकमा, बीजापुर, जगदलपुर और दंतेवाड़ा से 1 लाख क्विंटल वनोपज की खरीदी की गई.
⦁ हितग्राहियों को 28 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि बांटी गई.
⦁ 1 लाख 39 हजार क्विंटल मानक बोरा तेंदूपत्ता संग्रहण हुआ. करीब 1 लाख 30 हजार हितग्राहियों को 56 करोड़ रुपये दिए गए.
⦁ काजू के संग्रहण और प्रसंस्करण में 6 हजार ग्रामीणों को रोजगार मिला. 4 करोड़ से ज्यादा की राशि वितरित की गई.
⦁ इस साल इमली की बंपर पैदावार हुई. करीब 32 हजार क्विंटल संग्रहण हुआ. इमली की खरीदी के साथ प्रोसेसिंग में भी लाभ हुआ है. इमली संग्राहकों को 50 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि दी गई.
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आसना गांव की कहानी
बस्तर के 4 वन मंडलों के महिला स्व-सहायता समूह को भी लघु वनोपज से काफी फायदा पहुंचा है. आसना गांव में स्थित लघु वनोपज संग्रहण केंद्र में काम कर रहे करीब 42 महिला स्व-सहायता समूह के सदस्यों को लॉकडाउन के दौरान अच्छी कमाई हुई. फिलहाल 7 महिला स्व-सहायता समूह काम कर रहे हैं. जिनमें से एक स्व-सहायता समूह चिरौंजी साफ करने का काम कर रही है. 2 समूह इमली से कैंडी बना रही है. 2 समूह कोविड को देखते हुए वन औषधि तैयार कर रही है, जिसमें गिलोय पाउडर बनाना शामिल है. अन्य 3 समिति बाजार का काम कर रहे हैं.
आसना केंद्र में 3 प्रोसेसिंग प्लांट
वन समिति प्रबंधक का कहना है कि कोविड-19 को ध्यान में रखते हुए स्व-सहायता समूह की महिलाएं वनोपज संग्रहण करने के साथ इसके पैकिंग और अन्य काम कर रही है. फिलहाल आसना केंद्र में 3 प्रोसेसिंग प्लांट है.
- इमली से कैंडी बनाने का प्लांट
- वन औषधि बनाने का प्लांट
- चिरौंजी साफ करने और बीज निकालने का प्लांट
150 से ज्यादा महिलाओं को रोजगार दिया गया है. रोजाना उन्हें 100 से 120 रुपये मिलता है. यानी एक महीने में 3000 से 3500 रुपये तक का आर्थिक लाभ होता है.
लॉकडाउन में भी मिला काम
महिला स्व-सहायता समूह के सदस्यों ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान भी वन विभाग के सहयोग से लगातार काम मिल रहा है और अच्छी आय भी हो रही है. इमली से कैंडी बनाने का काम कर रही जुनकी गोयल ने बताया कि पिछले 1 साल से वे समूह में जुड़ी हुई हैं. इमली से कैंडी बनाने के बाद उन्हें 1 महीने में 2 हजार से 3 हजार रुपये मिलते हैं.
कोविड-19 की गाइडलाइन का पालन
चिरौंजी साफ करने का काम कर रही समूह की सदस्य फूलवती ने बताया कि सभी महिलाएं सावधानी बरत रही है. सैनिटाइजेशन, सोशल डिस्टसिंग का ध्यान रखा जा रहा है. मास्क भी लगाकर रखते हैं. वहीं हरावती यादव ने बताया कि वे पिछले 30 साल से वन विभाग के लघु वनोपज संग्रहण में काम कर रही हैं. लॉकडाउन के दौरान भी उन्होंने 25 से 30 महिलाओं को रोजगार दिलाया है. महिलाएं स्व-सहायता समूह से जुड़कर आत्मनिर्भर बन रही हैं.
समूहों को करोड़ों रुपये का भुगतान
प्रबंधक ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान बस्तर जिले से ही करीब 200 से 300 महिलाओं को वनोपज के माध्यम से रोजगार मिलने के साथ अच्छी आय की प्राप्ति हुई है. बस्तर के मुख्य वन संरक्षक मोहम्मद शाहिद ने बताया कि वन विभाग लगातार कोशिश कर रहा है कि बस्तर के वनोपज से ज्यादा से ज्यादा ग्रामीणों को रोजगार मिल सके और उन्हें अच्छी आय भी प्राप्त हो सके. इसके लिए वनोपज संग्रहण के साथ इसके प्रसंस्करण के लिए पूरी टीम लगी हुई थी.