जगदलपुर : छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज (Ambikapur Medical College) में शनिवार रात हुई 7 नवजात शिशु की मौत के बाद बस्तर जिले के डिमरापाल मेडिकल कॉलेज में भी अलर्ट जारी कर दिया गया है. 7 नवजात बच्चों की मौत के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय (Ministry of Health) इस मामले को लेकर पूरी तरह से गंभीर है. वहीं सभी मेडिकल कॉलेज अस्पताल (Medical College Hospital of Chhattisgarh) को व्यवस्था दुरुस्त रखने के साथ ही लापरवाही बरतने वाले लोगों पर कार्रवाई करने की चेतावनी भी दी गई है. इन सबके बीच बस्तर जिले में भी शहीद महेंद्र कर्मा डिमरापाल मेडिकल कॉलेज (Shaheed Mahendra Karma Dimrapal Medical College) की स्थिति काफी चिंताजनक है. मेडिकल कॉलेज से मिले आंकड़े चौंकाने वाली है. सबसे बड़ी बात यह है कि हर महीने नवजात शिशुओं की मौत के आंकड़े में लगातार वृद्धि हो रही है. लेकिन जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग इसको लेकर बिल्कुल भी सतर्क नहीं है.
औसतन हर माह 50 से 60 बच्चों की मौत
डिमरापाल मेडिकल कॉलेज में औसतन हर महीने 50 से 60 बच्चों की मौत होती है. बीते सितंबर माह में आंकड़े और भी भयानक थे, जिसमें 79 नवजात बच्चों ने इलाज के अभाव और अन्य कारणों से दम तोड़ दिया. इसको लेकर शिशु विशेषज्ञ डीएम मंडावी ने बताया कि डिमरापाल मेडिकल कॉलेज में हर महीने लगातार नवजात शिशुओं की मौत के आंकड़े बढ़ते ही जा रहे हैं. खासकर तीन कारणों से नवजात बच्चों की मौत हो रही है, जिसमें पहली वजह इंफेक्शन है. बड़ी संख्या में नवजात बच्चे इंफेक्शन का शिकार हो रहे हैं. इसके अलावा प्रसव समय से पहले होने की वजह से भी कई बच्चों की मौत हो रही है. जबकि तीसरी वजह डिलीवरी के दौरान सही समय पर अस्पताल नहीं पहुंच पाने की वजह से बच्चों की मौत है. उन्होंने कहा कि डीमरापाल मेडिकल कॉलेज में खासकर एनआईसीयू वार्ड में स्टाफ की कमी लंबे समय से है.
कॉलेज के एनआईसीयू वार्ड में 36 नवजात को ही रखने की व्यवस्था
डॉ डीएम मंडावी के मुताबिक डिमरापाल मेडिकल कॉलेज के एनआईसीयू वार्ड में 36 नवजात शिशुओं को रखने की व्यवस्था है. इस एनआईसीयू में केवल 14 स्टाफ नर्स हैं, जबकि नियम के मुताबिक एक बच्चे के पीछे एक सिस्टर का होना अनिवार्य है. यही नहीं मेडिकल कॉलेज में पूरा बच्चा वार्ड दो शिशु विशेषज्ञ के भरोसे चल रहा है. संभाग भर से यहां डिलीवरी के मामले आते हैं और केवल दो विशेषज्ञ हैं जो बच्चों का इलाज करते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि इन शिशु रोग विशेषज्ञ को मेडिकल कॉलेज में छात्रों को पढ़ाने के साथ बच्चों के इलाज की भी जिम्मेदारी है. इसके अलावा मेडिकल कॉलेज में एक शिशु वार्ड है, जिसमें 40 बच्चों को ही एडमिट करने की सुविधा है. इस वार्ड में भी स्टाफ की कमी है. यही नहीं वेंटिलेटर से लेकर शिशु वार्ड और एनआईसीयू वार्ड में अन्य उपकरणों की भी कमी है. कई बार पत्र लिखकर स्टाफ की भर्ती समेत उपकरण की मांग के बावजूद स्वास्थ्य विभाग इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है.
नवजात की मौत में ग्रामीण अंचलों के बच्चों की संख्या ज्यादा
इसके अलावा नवजात शिशुओं की मौत मामले में ग्रामीण अंचलों के बच्चों की संख्या ज्यादा है. जानकारी का अभाव और सही समय पर इलाज नहीं मिल पाने की वजह से बच्चे दम तोड़ रहे हैं. मंडावी ने कहा कि मेडिकल कॉलेज में स्टाफ बढ़ाने के साथ ही उपकरणों की भी आवश्यकता है. ऐसे में जिला प्रशासन को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए. संभाग मुख्यालय जगदलपुर में बने डिमरापाल मेडिकल कॉलेज में संभाग के 6 जिलों के अधिकतर डिलीवरी केस और गंभीर रूप से बीमार बच्चों को लाया जाता है. अधिकतर बच्चे गंभीर अवस्था में लाए जाते हैं, जिन्हें बचा पाना मुश्किल हो जाता है.
महारानी अस्पताल में 14 बच्चों का है एक वार्ड
इधर, शहर के शासकीय महारानी अस्पताल में 14 बच्चों का एक वार्ड है. इसके अलावा इस अस्पताल के एनआईसीयू में 8 बच्चों के रखने की सुविधा है. वहीं तीन शिशु रोग विशेषज्ञ यहां तैनात हैं. हालांकि इस अस्पताल में भी उपकरण की कमी है. पिछले एक महीने में केवल एक बच्चे की मौत महारानी अस्पताल में हुई है, लेकिन डिमरापाल मेडिकल कॉलेज की स्थिति काफी गंभीर है. सही समय पर स्वास्थ्य विभाग द्वारा इस व्यवस्था को दुरुस्त नहीं कर पाने से बच्चों की मौत के आंकड़े भी बढ़ने की संभावना है.