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बस्तर दशहरा में जुड़ेगी नई रस्म, साल और बीजा का पौधरोपण कर रस्म निभाई जाएगी

Jagdalpur Bastar Dussehra New ritual अब आगामी वर्ष से बस्तर दशहरा में नई रस्म जुड़ेगी. बस्तर दशहरा में चलने वाले रथ के निर्माण के लिए लगने वाली लकड़ियों की क्षतिपूर्ति के लिए अब हर वर्ष साल और बीजा के पौधे लगाने का कार्य करने के साथ ही इसे बस्तर दशहरा के अनिवार्य रस्म में जोड़ा जाएगा.

Jagdalpur Bastar Dussehra New ritual
साल और बीजा का पौधरोपण कर रस्म निभाई जाएगी
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Published : Oct 9, 2022, 10:17 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

जगदलपुर: यह घोषणा सांसद एवं बस्तर दशहरा समिति अध्यक्ष दीपक बैज ने मारकेल में बस्तर दशहरा रथ निर्माण क्षतिपूर्ति पौधरोपण कार्यक्रम के दौरान की. इस अवसर पर सांसद दीपक बैज ने कहा कि बस्तर दशहरा सामाजिक समरसता के साथ अपने अनूठे रस्मों के कारण पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. इस पर्व में चलने वाला रथ एक महत्वपूर्ण आकर्षण है. इस रथ के निर्माण के लिए बड़ी मात्रा में लकड़ी का उपयोग किया जाता है. जिसके लिए वृक्षों को काटने की आवश्यकता पड़ती है.

Jagdalpur Bastar Dussehra New ritual
साल और बीजा का पौधरोपण कर रस्म निभाई जाएगी

बस्तर दशहरा का पर्व सदियों से आयोजित किया जा रहा है. यह आगे भी यह इसी भव्यता के साथ आयोजित होती रहे. इसके लिए हमें भविष्य में भी लकड़ियों की आवश्यकता होगी. उन्होंने कहा कि बस्तर की हरियाली को बनाए रखने और बस्तर दशहरा के लिए लकड़ियों की सतत आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए अब प्रतिवर्ष साल और बीजा के पौधे लगाने का कार्य बस्तर दशहरा के रस्म के तौर पर आयोजित किया जाएगा. यह पर्व मानसून के दौरान हरियाली अमावश्या को प्रारंभ होने के कारण उसी दौरान पौधे लगाए जाएंगे. जिससे इनके जीवन की संभावना और अधिक बढ़ेगी.

सांसद दीपक बैज ने कहा कि इसी स्थान पर पिछले वर्ष 360 पौधे लगाए गए थे. जिनमें मात्र 3 पौधे नष्ट हुए. जिनके स्थान पर नए पौधे लगा दिए गए हैं. उन्होंने कहा कि साल के पौधरोपण में सफलता का प्रतिशत कम है. किन्तु यहां ग्रामवासियों के सहयोग से वन विभाग ने अत्यंत उल्लेखनीय कार्य किया और यहां 99 फीसदी से भी अधिक पौधे जीवित रहे. उन्होंने कहा कि इस वर्ष बस्तर में चिलचिलाती गर्मी पड़ी थी. जिसमें प्रतिदिन तापमान लगभग 40 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता था. ऐसी गर्मी के दौरान भी ट्रैक्टर से लाए गए टैंकर के पानी को मटकियों में डालकर उन्हें पौधों को दिया जाता रहा. जिससे ये सभी पौधे जीवित रहे.

पौधों को पालने-पोसने का यह कार्य यहां के रखवालों ने पूरी जिम्मेदारी के साथ निभाया. जिसके लिए वे प्रशंसा और सम्मान के हकदार हैं. सांसद ने यहां लगाए गए पौधों की रखवाली कर रहे लैखन और बहादुर को पांच-पांच रुपए प्रदान करने के साथ ही उनके रहने के लिए शेड बनाने की घोषणा भी की. इसके साथ ही यहां आज लगाए गए 300 पौधों के कारण यहां पौधों की बढ़ी हुई संख्या को देखते हुए सोलर ऊर्जा संचालित पंप की स्थापना की घोषणा भी की.

बस्तर में साल का है विशेष महत्व: बस्तर को साल वनों का द्वीप कहा जाता है. यह प्रदेश का राजकीय वृक्ष है तथा बस्तर वासियों के लिए कल्पवृक्ष के समान है. साल का यह वृक्ष अपनी मजबूती के लिए प्रसिद्ध है. जो धूप- पानी जैसी मौसमी संकटों का सामना आसानी से कर लेता है. इसकी इन्हीं खुबियों के कारण रेल की पटरी बनाने में इसका उपयोग किया जाता था. बस्तर में साल सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है. बस्तर बसने वाली विभिन्न समुदायों द्वारा अपने महत्पवूर्ण संस्कारों में इसका उपयोग अनिवार्य तौर पर किया जाता है. इसकी पत्तियों का उपयोग दोना-पत्तल बनाने के लिए किया जाता है. वहीं इसकी छाल से निकलने वाले सूखे लस्से को धूप कहा जाता है. धूप को अंगार में डालने पर बहुत ही अच्छी सुगंध आने के कारण इसका उपयोग पूजा-पाठ के दौरान किया जाता है. इसके साथ ही मच्छर एवं अन्य कीट-पतंगों को दूर भगाने के लिए भी धूप का उपयोग किया जाता है.

साल वनों में इनके पत्ते के झड़ने के बाद मानसून की शुरुआत में निकलने वाली फफुंद को बोड़ा कहा जाता है. जिसकी सब्जी बनती है. अपने विशिष्ट स्वाद के कारण बहुत प्रसिद्ध है और यह बहुत ही महंगी सब्जियों में शामिल है. साल के बीज एवं उससे निकलने वाले तेल का उपयोग भी सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री बनाने में किया जाता है. जिससे यहां के लोगों को रोजगार प्राप्त होता है. साल वनों में कोसा कीट पनपती हैं. इनके द्वारा बनाए गए कोकून से रैली कोसा का धागा प्राप्त किया जाता है. रैली कोसा के धागे से बने वस्त्र भी काफी कीमती होते हैं.

जगदलपुर: यह घोषणा सांसद एवं बस्तर दशहरा समिति अध्यक्ष दीपक बैज ने मारकेल में बस्तर दशहरा रथ निर्माण क्षतिपूर्ति पौधरोपण कार्यक्रम के दौरान की. इस अवसर पर सांसद दीपक बैज ने कहा कि बस्तर दशहरा सामाजिक समरसता के साथ अपने अनूठे रस्मों के कारण पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. इस पर्व में चलने वाला रथ एक महत्वपूर्ण आकर्षण है. इस रथ के निर्माण के लिए बड़ी मात्रा में लकड़ी का उपयोग किया जाता है. जिसके लिए वृक्षों को काटने की आवश्यकता पड़ती है.

Jagdalpur Bastar Dussehra New ritual
साल और बीजा का पौधरोपण कर रस्म निभाई जाएगी

बस्तर दशहरा का पर्व सदियों से आयोजित किया जा रहा है. यह आगे भी यह इसी भव्यता के साथ आयोजित होती रहे. इसके लिए हमें भविष्य में भी लकड़ियों की आवश्यकता होगी. उन्होंने कहा कि बस्तर की हरियाली को बनाए रखने और बस्तर दशहरा के लिए लकड़ियों की सतत आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए अब प्रतिवर्ष साल और बीजा के पौधे लगाने का कार्य बस्तर दशहरा के रस्म के तौर पर आयोजित किया जाएगा. यह पर्व मानसून के दौरान हरियाली अमावश्या को प्रारंभ होने के कारण उसी दौरान पौधे लगाए जाएंगे. जिससे इनके जीवन की संभावना और अधिक बढ़ेगी.

सांसद दीपक बैज ने कहा कि इसी स्थान पर पिछले वर्ष 360 पौधे लगाए गए थे. जिनमें मात्र 3 पौधे नष्ट हुए. जिनके स्थान पर नए पौधे लगा दिए गए हैं. उन्होंने कहा कि साल के पौधरोपण में सफलता का प्रतिशत कम है. किन्तु यहां ग्रामवासियों के सहयोग से वन विभाग ने अत्यंत उल्लेखनीय कार्य किया और यहां 99 फीसदी से भी अधिक पौधे जीवित रहे. उन्होंने कहा कि इस वर्ष बस्तर में चिलचिलाती गर्मी पड़ी थी. जिसमें प्रतिदिन तापमान लगभग 40 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता था. ऐसी गर्मी के दौरान भी ट्रैक्टर से लाए गए टैंकर के पानी को मटकियों में डालकर उन्हें पौधों को दिया जाता रहा. जिससे ये सभी पौधे जीवित रहे.

पौधों को पालने-पोसने का यह कार्य यहां के रखवालों ने पूरी जिम्मेदारी के साथ निभाया. जिसके लिए वे प्रशंसा और सम्मान के हकदार हैं. सांसद ने यहां लगाए गए पौधों की रखवाली कर रहे लैखन और बहादुर को पांच-पांच रुपए प्रदान करने के साथ ही उनके रहने के लिए शेड बनाने की घोषणा भी की. इसके साथ ही यहां आज लगाए गए 300 पौधों के कारण यहां पौधों की बढ़ी हुई संख्या को देखते हुए सोलर ऊर्जा संचालित पंप की स्थापना की घोषणा भी की.

बस्तर में साल का है विशेष महत्व: बस्तर को साल वनों का द्वीप कहा जाता है. यह प्रदेश का राजकीय वृक्ष है तथा बस्तर वासियों के लिए कल्पवृक्ष के समान है. साल का यह वृक्ष अपनी मजबूती के लिए प्रसिद्ध है. जो धूप- पानी जैसी मौसमी संकटों का सामना आसानी से कर लेता है. इसकी इन्हीं खुबियों के कारण रेल की पटरी बनाने में इसका उपयोग किया जाता था. बस्तर में साल सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है. बस्तर बसने वाली विभिन्न समुदायों द्वारा अपने महत्पवूर्ण संस्कारों में इसका उपयोग अनिवार्य तौर पर किया जाता है. इसकी पत्तियों का उपयोग दोना-पत्तल बनाने के लिए किया जाता है. वहीं इसकी छाल से निकलने वाले सूखे लस्से को धूप कहा जाता है. धूप को अंगार में डालने पर बहुत ही अच्छी सुगंध आने के कारण इसका उपयोग पूजा-पाठ के दौरान किया जाता है. इसके साथ ही मच्छर एवं अन्य कीट-पतंगों को दूर भगाने के लिए भी धूप का उपयोग किया जाता है.

साल वनों में इनके पत्ते के झड़ने के बाद मानसून की शुरुआत में निकलने वाली फफुंद को बोड़ा कहा जाता है. जिसकी सब्जी बनती है. अपने विशिष्ट स्वाद के कारण बहुत प्रसिद्ध है और यह बहुत ही महंगी सब्जियों में शामिल है. साल के बीज एवं उससे निकलने वाले तेल का उपयोग भी सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री बनाने में किया जाता है. जिससे यहां के लोगों को रोजगार प्राप्त होता है. साल वनों में कोसा कीट पनपती हैं. इनके द्वारा बनाए गए कोकून से रैली कोसा का धागा प्राप्त किया जाता है. रैली कोसा के धागे से बने वस्त्र भी काफी कीमती होते हैं.

Last Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST
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