जगदलपुर : बस्तर जिले के तोकापाल विकासखंड में एक दिवसीय आत्मनिर्भर शिविर का आयोजन किया गया.समाज कल्याण विभाग के द्वारा युवोदय वोलेंटियर्स की मदद से किया गया था. इस शिविर में लगभग तोकापाल ब्लॉक और दरभा ब्लॉक के 500 से अधिक दिव्यांग पहुंचे. जिन्होंने अपना पंजीयन कराया और डॉक्टर की सलाह ली साथ ही संबंधित सहायक उपकरणों के लिए नाम भी दर्ज करवाएं.
दिव्यांग सीताराम नाग ने बताया कि '' लंबे समय से आंखों की परेशानी की वजह से जूझ रहे हैं. उनका आंख बाहर निकल गया है. जिसकी वजह से उन्हें भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इससे पहले भी उन्होंने प्राइवेट हॉस्पिटल में अपना उपचार कराया था. लेकिन यह समस्या जस की तस बनी हुई है.जैसे ही शिविर की जानकारी लगी. तो वे अपनी समस्या लेकर शिविर में पहुंचे और ऑपरेशन करवाने की गुहार लगाई.
दिव्यांग बालक प्रियांशु साहू ने बताया कि ''वे बचपन से ही हाथ और पैरों से दिव्यांग हैं. जिसकी वजह से उन्हें बेहद ही समस्याओं से जूझना पड़ता है. चलने फिरने में उन्हें काफी दिक्कत होती है. बैसाखी की मदद से वे चलते फिरते हैं. यही कारण है कि शिविर की जानकारी लगने से तुरंत वह पहुंचे ताकि वे अपना इलाज करवा पाएऔर दिव्यांगता की समस्या का समाधान हो.''
शिविर लगाकर जागरुक करने का प्रयास : समाज कल्याण विभाग के उपसंचालक वैशाली मरड़वार के मुताबिक ''21 तरह की दिव्यांगताओं को शिविर में चिन्हांकित किया जा रहा है. जिन्हें चिन्हाकित करके उन्हें अलग अलग डॉक्टरों के पास भेजा जाएगा. इसके अलावा सभी दिव्यांगजनों का राशन कार्ड बनवाया जा रहा है. जिसमें अतिरिक्त 10 किलो राशन मिलने का प्रावधान है. इसके अलावा परिवहन पास भी बनाया जा रहा है.''
''इसके साथ ही शिविर में नकली हाथ पैर लगाने की व्यवस्था भी की जाएगी. सहायक उपकरण वितरण करने की सूची भी तैयार की जा रही है. जिनमें मोटराइज्ड ट्राई साइकिल, व्हीलचेयर, बैशाखी, हियरिंग एड इस तरह के उपकरणों का वितरण दिव्यांगजनों के जरूरतों के अनुसार किया जाएगा. बीते वर्ष बस्तर जिले में 934 सहायक उपकरण बांटे गए थे.''
समाज कल्याण के उपसंचालक वैशाली मरड़वार ने बताया कि ''दिव्यांग बनने के बहुत से कारण निकल कर सामने आते हैं. जिनमें मुख्य रूप से जिले में जागरूकता की कमी है. जब मां गर्भधारण करती है और हर बच्चा मां के पेट में होता है. तब माता को जितना खुद का केयर करना पड़ता है. उतना वो नहीं करते. जिससे दिव्यांग बच्चे पैदा होने की संभावना सबसे अधिक होती है.
वैशाली मरड़वार के मुताबिक '' केस हिस्ट्री भी बताती है कि बच्चा जब पेट में होता है. तब उतनी दिक्कत नहीं होती है. लेकिन जब डिलवरी का समय आता है उसे कहते हैं At The Time Of Nature बहुत सारे बच्चे घर में पैदा होते हैं. बहुत से लोगों को सिजेरियन की जरूरत होती है. लेकिन वे नार्मल डिलिवरी कराने के लिए समय बर्बाद करते हैं. उस समय बच्चे को ऑक्सीजन की कमी होती है. जिससे बच्चे दिव्यांग बनते हैं.''
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दिव्यांगता के आंकड़ों में आ सकती है कमी : बस्तर आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है. इन आदिवासियों तक जिम्मेदार अंदरूनी क्षेत्रों में नहीं पहुंच पाते हैं. जिसके कारण जागरूकता की कमी बस्तर वासियों में देखने को मिलती है. यही कारण है कि अधिकतर बच्चे जागरूकता के अभाव में दिव्यांगता का शिकार होते हैं. यदि समय रहते ही बस्तर के ग्रामीणों को जागरूक किया जाएगा. तो निश्चित ही तौर पर आने वाले समय में दिव्यांगता के आंकड़े को कम किया जा सकता है.