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बस्तर से सटे राज्यों में चलेगा मलेरिया मुक्त अभियान

बस्तर में मलेरिया मुक्त अभियान चलाये जाने से मौजूदा स्थिति में काफी सुधार हुआ है. इस अभियान से पड़ोसी राज्य भी प्रभावित हुए है. इस फॉर्मेट को जानने के लिए अधिकारियों से संपर्क कर रहे हैं, ताकि अपने राज्यों में कैंपेन चला सकेंगे.

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Published : May 10, 2022, 8:01 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

बस्तर अस्पताल
बस्तर अस्पताल

बस्तर: बस्तर में मलेरिया मुक्त अभियान चलाये जाने से मौजूदा स्थिति में काफी सुधार आया है. इस अभियान से पड़ोसी राज्य भी प्रभावित हुए है. वे बस्तर के इस फॉर्मेट को जानने के लिए अधिकारियों से संपर्क कर रहे हैं. बस्तर में आकर यहां के फॉर्मेट की स्थिति जानना चाहते हैं. इसके बाद वह अपने क्षेत्रों में मलेरिया मुक्त अभियान चलायेंगे. बस्तर के तर्ज पर पड़ोसी राज्य भी मलेरिया मुक्त अभियान शुरू करना चाहते हैं.

मलेरिया अधिकारी आनंद राम गोटा

यह भी पढ़ें: सीएम भूपेश बघेल ने लुंड्रा में बच्चों से की मुलाकात, अफसरों को जंगल सफारी और नवा रायपुर घुमाने के दिए निर्देश

मलेरिया अधिकारी आनंद राम गोटा ने बताया कि मलेरिया की स्थिति पहले की अपेक्षा मौजूदा स्थिति काफी अच्छी है. जब 2020 में पहले चरण की शुरुआत की गई थी, उस वक्त 5 राउंड में मलेरिया मुक्त अभियान चलाया गया था, जिसमें तीन राउंड एक्सक्लूसिव बस्तर संभाग के लिए चलाई गई थी. बाद में इसे छत्तीसगढ़ मलेरिया मुक्त नाम दे दिया गया. बस्तर मुक्त अभियान का पहला राउंड जो किए गए थे, उसमें करीब 37,000 मलेरिया पीड़ित मरीज मिले थे. 37 से 38 फीसदी था. यह आंकड़ा पांचवा चरण तक 7 फीसदी पहुंच गया.

अधिकारियों का मानना है कि इस अभियान को आगे और चलाया जाना चाहिए ताकि हम पूरी तरह से मलेरिया उन्मूलन के स्थिति में आ सकें. मलेरिया अधिकारी ने बताया कि बस्तर में सिर्फ तीन से चार ऐसे जिले हैं, जहां मलेरिया का प्रकोप दिखता है. सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा और नारायणपुर में मलेरिया के प्रकोप नजर आ रहे हैं. बाकी जिलों की स्थिति सामान्य है. बस्तर जिले में कुछ ऐसे क्षेत्र हैं. जैसे दरभा जंगल एरिया है जो पहुंचविहीन क्षेत्र माना जाता है. उन लोगों में मलेरिया के थोड़े बहुत मामले नजर आते हैं. इस तरह के अभियान दोबारा चलाकर हम इसे मलेरिया उन्मूलन की स्थिति में ला सकते हैं.

दरअसल, मलेरिया के जांच के दौरान अगर किसी व्यक्ति में मलेरिया पॉजिटिव पाया जाता है तो उसे तत्काल ही दवाई देकर कुछ खिला दिया जाता है. यह जिम्मेदारी मितानिनों के हांथों में सौपी गई है. मलेरिया दो प्रकार के होते हैं-फैल्सीपेरम और वायवेक्स. डॉक्टरों का मानना है की फैल्सीपेरम ज्यादा खतरनाक होता है. अगर किसी व्यक्ति के दिमाग में चढ़ जाए तो उसकी मृत्यु भी हो जाती है. जिसकी डोज तीन दिन की होती है. वही वायवेक्स मलेरिया का डोज 14 दिन का होता है. जिसे मितानिन द्वारा खिलाने के लिए सुपरवाइज डोज दिया जाता है और वे उनकी जिम्मेदारी बखूबी निभाती हैं.

बस्तर: बस्तर में मलेरिया मुक्त अभियान चलाये जाने से मौजूदा स्थिति में काफी सुधार आया है. इस अभियान से पड़ोसी राज्य भी प्रभावित हुए है. वे बस्तर के इस फॉर्मेट को जानने के लिए अधिकारियों से संपर्क कर रहे हैं. बस्तर में आकर यहां के फॉर्मेट की स्थिति जानना चाहते हैं. इसके बाद वह अपने क्षेत्रों में मलेरिया मुक्त अभियान चलायेंगे. बस्तर के तर्ज पर पड़ोसी राज्य भी मलेरिया मुक्त अभियान शुरू करना चाहते हैं.

मलेरिया अधिकारी आनंद राम गोटा

यह भी पढ़ें: सीएम भूपेश बघेल ने लुंड्रा में बच्चों से की मुलाकात, अफसरों को जंगल सफारी और नवा रायपुर घुमाने के दिए निर्देश

मलेरिया अधिकारी आनंद राम गोटा ने बताया कि मलेरिया की स्थिति पहले की अपेक्षा मौजूदा स्थिति काफी अच्छी है. जब 2020 में पहले चरण की शुरुआत की गई थी, उस वक्त 5 राउंड में मलेरिया मुक्त अभियान चलाया गया था, जिसमें तीन राउंड एक्सक्लूसिव बस्तर संभाग के लिए चलाई गई थी. बाद में इसे छत्तीसगढ़ मलेरिया मुक्त नाम दे दिया गया. बस्तर मुक्त अभियान का पहला राउंड जो किए गए थे, उसमें करीब 37,000 मलेरिया पीड़ित मरीज मिले थे. 37 से 38 फीसदी था. यह आंकड़ा पांचवा चरण तक 7 फीसदी पहुंच गया.

अधिकारियों का मानना है कि इस अभियान को आगे और चलाया जाना चाहिए ताकि हम पूरी तरह से मलेरिया उन्मूलन के स्थिति में आ सकें. मलेरिया अधिकारी ने बताया कि बस्तर में सिर्फ तीन से चार ऐसे जिले हैं, जहां मलेरिया का प्रकोप दिखता है. सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा और नारायणपुर में मलेरिया के प्रकोप नजर आ रहे हैं. बाकी जिलों की स्थिति सामान्य है. बस्तर जिले में कुछ ऐसे क्षेत्र हैं. जैसे दरभा जंगल एरिया है जो पहुंचविहीन क्षेत्र माना जाता है. उन लोगों में मलेरिया के थोड़े बहुत मामले नजर आते हैं. इस तरह के अभियान दोबारा चलाकर हम इसे मलेरिया उन्मूलन की स्थिति में ला सकते हैं.

दरअसल, मलेरिया के जांच के दौरान अगर किसी व्यक्ति में मलेरिया पॉजिटिव पाया जाता है तो उसे तत्काल ही दवाई देकर कुछ खिला दिया जाता है. यह जिम्मेदारी मितानिनों के हांथों में सौपी गई है. मलेरिया दो प्रकार के होते हैं-फैल्सीपेरम और वायवेक्स. डॉक्टरों का मानना है की फैल्सीपेरम ज्यादा खतरनाक होता है. अगर किसी व्यक्ति के दिमाग में चढ़ जाए तो उसकी मृत्यु भी हो जाती है. जिसकी डोज तीन दिन की होती है. वही वायवेक्स मलेरिया का डोज 14 दिन का होता है. जिसे मितानिन द्वारा खिलाने के लिए सुपरवाइज डोज दिया जाता है और वे उनकी जिम्मेदारी बखूबी निभाती हैं.

Last Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST
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