जगदलपुर: अपनी अनोखी परंपरा के लिये विश्व में चर्चित बस्तर दशहरा की एक और अनुठी और महत्वपूर्ण रस्म जोगी बिठाई को रविवार की देर शाम सिरहासार भवन में विधि विधान के साथ संपन्न किया गया.
परंपरानुसार एक विशेष जाति का युवक हर साल 9 दिनों तक उपवास रख सिरहासार भवन स्थित एक निश्चित स्थान पर तपस्या के लिए बैठता है. इस तपस्या का मुख्य उद्देश्य दशहरा पर्व को शांतिपूर्वक व निर्बाध रूप से संपन्न कराना होता है.
आमाबाल गांव निवासी रघुनाथ नाग बने जोगी
इस वर्ष भी बड़े आमाबाल गांव निवासी रघुनाथ नाग ने जोगी बन करीब 600 वर्षों से चली आ रही इस परंपरा के तहत स्थानीय सिरहासार भवन में दंतेश्वरी माई व अन्य देवी देवताओं का आशीर्वाद लेकर निर्जल तपस्या शुरू की है. इस रस्म में शामिल होने स्थानीय जनप्रतिनिधि के साथ बड़ी संख्या में आम नागरिक सिरहासार भवन में मौजूद रहे.
जोगी बिठाई रस्म का महत्व
जोगी बिठाई रस्म में जोगी से तात्पर्य योगी से है. इस रस्म से एक किवदंती जुड़ी हुई है. मान्यता के अनुसार वर्षों पहले दशहरे के दौरान हल्बा जाति का एक युवक जगदलपुर स्थित महल के नजदीक तप की मुद्रा में निर्जल उपवास पर बैठ गया था.
दशहरे के दौरान 9 दिनों तक बिना कुछ खाये पिये, मौन अवस्था में युवक के बैठे होने की जानकारी तत्कालीन महाराजा प्रवीरचंद भंजदेव को मिली, तो वह स्वयं युवक से मिलने योगी के पास पहुंचे और उससे तप पर बैठने का कारण पूछा.
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योगी ने बताया कि उसने दशहरा पर्व को निर्विघ्न और शांतिपूर्वक रूप से संपन्न कराने के लिये यह तप किया है. इसके बाद राजा ने योगी के लिये महल से कुछ दूरी पर सिरहासार भवन का निर्माण करवाकर इस परंपरा को आगे बढ़ाये रखने में सहायता की. तब से हर वर्ष अनवरत इस रस्म में जोगी बनकर हल्बा जाति का युवक 9 दिनों की तपस्या पर बैठता है.