जगदलपुर: बस्तर में भी किडनी रोग से संबंधित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. खासकर शहरी क्षेत्रों में किडनी रोग से पीड़ित मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. खानपान और दिनचर्या का व्यवस्थित नहीं होना इस रोग का मुख्य कारण है. बस्तर में बात की जाए, तो हर साल 100 से अधिक लोग किडनी रोग की चपेट में आते हैं और कई लोगों की मौत भी हो जाती है. किडनी रोग को लेकर प्रशासन को ज्यादा से ज्यादा जागरूकता कार्यक्रम चलाने की जरूरत है.
किडनी डिजीज को लेकर लोग लापरवाही भी बरतते हैं. शुरुआती चरण में कोई भी लक्षण सामने नहीं आता है. यह साइलेंट रहता है. यही वह वक्त होता है, जब बीमारी का इलाज पूरी तरह संभव होता है. अगर इसका वक्त पर इलाज नहीं किया जाए, तो आगे चलकर किडनी खराब होने का खतरा बढ़ जाता है और डायलिसिस की नौबत आ सकती है. बस्तर जिले में सरकारी अस्पतालों के साथ-साथ निजी अस्पताल में भी दिन में 5 से 6 मरीजों का डायलिसिस किया जाता है. संसाधन के अभाव की वजह से अधिकतर मरीजों को लंबा इंतजार करना पड़ता है.
शहरों के मुकाबले ग्रामीण अंचलों में किडनी डिजीज के मामले ज्यादा
शहर के साथ ग्रामीण इलाकों में भी किडनी के मरीज बढ़ रहे हैं. ग्रामीण अंचलों में नशीले पेय पदार्थ की वजह से किडनी पर इफेक्ट पड़ता है. धीरे-धीरे किडनी पूरी तरह से खराब होने लगती है. हालांकि डॉक्टर पीड़ित मरीजों को नशे के सेवन से दूर रहने की समझाइश देते हैं, लेकिन अधिकतर लोग इस बीमारी और उसके गंभीर परिणाम की वजह से मौत के मुंह में समा जाते हैं. बस्तर में किडनी रोग के मरीजों की रिकवरी की संख्या काफी कम है. इससे मौत की संख्या ज्यादा है. साल भर में किडनी रोग से पीड़ित कई लोगों की मौत हो जाती है.
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खान-पान, बदलती जीवनशैली से बढ़े किडनी रोग के मरीज
किडनी रोग स्पेशलिस्ट डॉ. अभिनव कश्यप का कहना है कि किडनी शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है, लेकिन अनजाने में कुछ आदतें किडनी को नुकसान पहुंचा देती हैं. अक्सर किडनी की समस्याओं का पता उच्च जोखिम होने पर ही लगता है. किडनी रक्त में मौजूद पानी और व्यर्थ पदार्थों को अलग करने का काम करती है. इसके अलावा शरीर में रासायनिक पदार्थों का संतुलन, हॉर्मोन्स, रक्तचाप नियंत्रित करने में भी सहायता प्रदान करती है. लेकिन बदलती लाइफस्टाइल और काम के बढ़ते दबाव के कारण लोग जंक फूड और फास्ट फूड का सेवन ज्यादा करने लगे हैं. इस वजह से लोगों की खाने की प्लेट से स्वस्थ और पौष्टिक आहार गायब होते जा रहे हैं.
डायबिटीज और ब्लड प्रेशर से किडनी फेल होने का खतरा
ग्रामीण अंचलों में नशीले पदार्थों का सेवन करने से अधिकतर ग्रामीण पुरुषों के साथ-साथ महिलाएं भी किडनी की बीमारी से ग्रसित हैं. इसके अलावा पेन किलर टेबलेट भी किडनी रोग का एक कारण बनता है. किडनी शरीर से विषाक्त पदार्थों को छानकर यूरीन के माध्यम से शरीर से बाहर निकालता है, लेकिन डायबिटीज जैसी बीमारियों, खराब जीवनशैली और कुछ दवाओं के कारण किडनी के ऊपर बुरा प्रभाव पड़ता है. डायबिटीज और ब्लड प्रेशर भी किडनी फेल होने के सबसे बड़े कारणों में से एक हैं. डायबिटीज के 30 से 40 फीसदी मरीजों की किडनी खराब होती है. इनमें से 50% मरीज ऐसे होते हैं, जिन्हें बहुत देर से बीमारी का पता चलता है, फिर उन्हें डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट करवाना पड़ता है.
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नमक कम और पानी का सेवन करें ज्यादा
किडनी रोग स्पेशलिस्ट डॉ. अभिनव कश्यप ने बताया कि किडनी के रोग से बचने के लिए नमक का सेवन कम करना चाहिए. इसके अलावा पानी ज्यादा से ज्यादा पीना चाहिए. किडनी रक्त के व्यर्थ पदार्थों को शरीर से बाहर निकालता है. हाथ पैर में सूजन और कमर में दर्द किडनी की समस्या का संकेत है. शुरुआती दौर में पता चलने पर किडनी रोग की समस्या से निजात पाया जा सकता है. कई मरीज इसमें लापरवाही करते हैं. समय रहते किडनी रोग का इलाज करवाना ही मरीज की जान बचा सकता है.
किडनी रोग एक साइलेंट किलर
हर साल किडनी की बीमारी के चलते लाखों लोग अपनी जान गंवा बैठते हैं. लेकिन सबसे खतरनाक बात यह है कि अधिकतर लोगों को इसकी जानकारी तब होती है, जब बहुत देर हो चुकी होती है. दरअसल, किडनी की बीमारी के लक्षण उस वक्त उभरकर सामने आते हैं, जब वो 60 से 65% डैमेज हो चुकी होती है. इसलिए इसे साइलेंट किलर भी कहा जाता है. इसलिए समय रहते इसके लक्षणों की पहचान किया जाना बहुत जरूरी होता है.
खान-पान का रखें विशेष ख्याल
जगदलपुर शहर की धरमपुरा निवासी गीता सेंगर बताती हैं कि वे पिछले 10 सालों से किडनी रोग से पीड़ित हैं. पिछले 2 सालों से नौबत डायलिसिस की आ गई है. उनका कहना है कि एक आम आदमी की जिंदगी से किडनी पेशेंट की जिंदगी काफी अलग होती है. खान-पान का विशेष ख्याल रखना पड़ता है. सप्ताह में दो बार उन्हें डायलिसिस के लिए जाना पड़ता है. गीता सेंगर का कहना है कि शुरुआती दौर में उन्होंने डायबिटीज और शुगर जैसी बीमारी के दौरान परहेज नहीं किया, जिसके बाद धीरे-धीरे उनकी किडनी पर इफेक्ट पड़ने लगा. अब उनकी किडनी 60 से 65% डैमेज हो चुकी है. यही वजह है कि उन्हें सप्ताह में दो बार डायलिसिस करवाना पड़ता है. हालांकि परिवार का पूरा सहयोग और चिकित्सकों के सही इलाज की वजह से वे ट्राइसाइकिल पर चल-फिर पा रही हैं.
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बस्तर जिले में किडनी रोग के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. वहीं शहर के मेडिकल कॉलेज, महारानी अस्पताल और एक निजी अस्पताल में ही डायलिसिस की सुविधा है. सरकारी अस्पतालों में टेक्नीशियनों की कमी के चलते डायलिसिस के लिए परेशान होना पड़ता है. दोनों सरकारी अस्पतालों में 6-6 डायलिसिस मशीन की व्यवस्था है. लंबे समय से बस्तरवासी डायलिसिस मशीनों को बढ़ाए जाने की मांग भी कर रहे हैं.