जगदलपुर: विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व (Bastar Dussehra Festival) में 12 से भी अधिक अद्भुत रस्में निभाई जाती हैं. इन सभी रस्मों का अलग महत्व होता है. हर रस्मों में बलि प्रथा (Sacrificial System) होने की वजह से पुरुषों के द्वारा अदा की जाती है, लेकिन 75 दिनों तक चलने वाले इस दशहरा पर्व में दो रस्म ऐसे हैं जिनमें विशेष जाति के महिलाओं के द्वारा ही निभाया जाता है. इस रस्म के बिना विशालकाय रथ परिक्रमा आगे नहीं बढ़ता. बस्तर के केवट और मरार जाति की महिलाओं के द्वारा इस रस्म की अदायगी की जाती है. इसको नजर उतारनी और भोग लगानी रस्म कहा जाता है. जो केवल महिलाओं के द्वारा ही निभाया जाता है.
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रस्म बखूबी निभाया जाता है
दरअसल, विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व में तत्कालीन महाराजा पुरुषोत्तम देव (Maharaja Purushottam Dev) ने ही बस्तर के सभी आदिवासी समाज एवं जातियों को इस पर्व को संपन्न कराने के लिए अलग-अलग जिम्मेदारी सौंपी थी. करीब 600 साल से इन सभी जाति के वर्गों के द्वारा इन रस्मों को बखूबी निभाया जाता है.
दशहरा के दो रस्म केवल महिलाओं के द्वारा ही संपन्न कराया जाता है और इस रस्म के बिना बस्तर दशहरा का मुख्य आकर्षण का केंद्र रथ परिक्रमा भी नहीं हो सकता. नवरात्रि के दूसरे दिन से रथ परिक्रमा की शुरुआत होती है और इस रथ परिक्रमा के दौरान बस्तर के केवट और मरार जाति के महिलाओं के द्वारा बस्तर के महाराजा के द्वारा भेंट किये गए. गुलाबी साड़ी का घूंघट बना कर और पूरा श्रृंगार कर मां दंतेश्वरी देवी की नजर उतारी जाती है.
पिछले कई सालों से इस परंपरा को निभाते आ रहीं दोनों महिलाएं मनीता समरथ और धनेश्वरी पटेल ने बताया कि परंपरा अनुसार उनकी जाति की ही महिलाओं के द्वारा हर साल दशहरा पर्व में रथ परिक्रमा के दौरान नजर उतारने का रस्म अदा किया जाता है. तत्कालीन महाराजा पुरुषोत्तम देव ने इस नजर उतारनी रस्म के लिए उनके जाति के ही महिलाओं को जिम्मेदारी सौंपी थी. जिसके बाद से पिछले 600 सालों से यह परंपरा अनवरत जारी है.
महिलाओं ने बताया कि जैसे ही रथ भगवान जगन्नाथ मंदिर के सामने पहुंचती है. उसके बाद उनके सहयोगी के द्वारा राजा से भेंट स्वरूप प्राप्त गुलाबी साड़ी को पूरी तरह से ढक कर व श्रृंगार कर विशालकाय रथ में फूल चढ़ाया जाता है. रथ के ऊपर विराजमान मां दंतेश्वरी का छत्र, बस्तर के अन्य देवी देवताओं को चना और लाई का प्रसाद भोग लगाया जाता है. इस रस्म को ही नजर उतारनी और भोग लगानी रस्म कहा जाता है.
बस्तर दशहर में रस्मों का महत्व
पूरे बस्तर दशहरा पर्व में यह दो रस्म ही ऐसे हैं. जिनमें महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान होता है और इस रस्म को केवल महिला ही निभाती हैं. बस्तर दशहरा पर्व के अन्य रस्मो में बलि प्रथा होने की वजह से पुरुष ही इन रस्मों की अदायगी करते हैं. नजर उतारनी की यह रस्म नवरात्रि के दूसरे दिन से सप्तमी तक रथ परिक्रमा के दौरान की जाती है.
रथ परिक्रमा के दौरान दो दफा इस रस्म को निभाया जाता है. जैसे ही माता दंतेश्वरी का छत्र रथ के साथ मंदिर के सामने पहुंचता है. उसके बाद इन महिलाओं के द्वारा रथ में फूल चढ़ाकर और भोग लगाकर नजर उतारनी की रस्म अदा की जाती है. इससे पहले रथ परिक्रमा के दौरान देवी की छत्र को रथारूढ़ करने के बाद जगन्नाथ मंदिर के सामने इन रस्मों को पूरा किया जाता है. सदियों से चली आ रही यह परंपरा आज भी कायम है और देश के इस सबसे बड़े पर्व में महिलाओं का भी उतना ही महत्वपूर्ण योगदान होता है.