बस्तर: विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरे का समापन मंगलवार को हो गया. बस्तर दशहरे के समापन के पहले डोली विदाई की रस्म को अदा किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु और बस्तरवासी शामिल हुए. जगदलपुर के गीदम रोड स्थित जिया डेरा मंदिर में इस रस्म को पूरा किया गया. मावली देवी की पूजा अर्चना माटी पुजारी बस्तर और राजकुमार ने की,उसके बाद मावली देवी की डोली को विदा किया गया. बस्तर दशहरा के समापन के मौके पर पूरे शहर में विशाल कलश यात्रा निकाली गई. देवी की डोली को विदा करने के लिए शहर में लोगों का जनसैलाब उमड़ पड़ा. परंपरा के अनुसार डोली विदाई की रस्म पूरी करने के साथ ही बस्तर दशहरा का समापन होता है.
डोली विदाई में मावली देवी को दी जाती है विदाई: डोली विदाई में मावली देवी को विदाई दी जाती है. आदिकाल से राजा इस रस्म में शामिल होते आए हैं. इस बार भी इस रस्म को राजा ने निभाया है. वर्तमान समय में आज भी रस्म को विधि विधान से निभाया जाता है. गाजे-बाजे के साथ देवी की डोली को बंदूक से सलामी दी जाती है. बस्तर के राजकुमार कमलचंद और क्षेत्र की जनता ने विधि विधान से पूजा अर्चना कर डोली को दंतेवाड़ा के लिए विदा किया. देवी की डोली को विदाई देने नम आंखों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु जिया डेरा मंदिर पहुंचते हैं. दरअसल मावली परघाव रस्म में परंपरागत भव्य रुप से मावली देवी के डोली का स्वागत करने के पश्चात डोली को दंतेश्वरी देवी के मंदिर परिसर में रखा जाता है. जहां डोली के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ बढ़ती है. आज इस डोली के विदाई के साथ विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व की समाप्ति होती है.
"बस्तर दशहरे का आज 107वां दिन है. लेकिन यह पर्व 75 दिनों का होता है. अधिक मास होने के कारण इस साल 107 दिनों तक इसे मनाया गया. आज डोली विदाई की गई. जैसे एक लड़की को विदा करते हैं, वैसे ही डोली की विदाई भी की गई. इस दौरान जगदलपुर के सभी समाज उपस्थित हुए. आदिवासी समाज, माड़िया समाज, मांझी चालकी, जिया बाबा परिवार, राजगुरु परिवार, सुकमा जमींदार परिवार, सभी ने नम आंखों से विदाई दी. इसके बाद डोली दंतेवाड़ा के लिए रवाना हो जाएगी. हालांकि इस बीच 2 स्थानों में रुकने का स्थान है. जहां वे परम्परा से रुकते आये हैं. इसके बाद वे वापस मंदिर पहुंचेगे और अपने स्थान पर विराजित होंगे."- कमलचंद्र भंजदेव, बस्तर राज परिवार के सदस्य
हर्षोल्लास से समाप्त हुआ बस्तर दशहरा: बस्तर दशहरे की समाप्ति हर्षोल्लास से हुई. कुल 75 दिनों से भी ज्यादा समय तक बस्तर में हर दिन मां दंतेश्वरी की पूजा अर्चना की गई. कई रस्मों और मान्यताओं को पूरा किया गया. इस साल देवी की डोली 3 दिन अतिरिक्त रही. क्योंकि ग्रहण लग गया था. इसलिए देवी की सेवा तीन दिन और करने को मिला.