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Goncha Festival In Bastar : गोंचा पर्व का इतिहास और मान्यता, तुपकी से सलामी देने की अनोखी परंपरा - बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव

Goncha Festival In Bastar बस्तर अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है.लेकिन यहां के रीति रिवाज और पुरातनकाल से चली आ रही परंपरा लोगों के बीच आज भी कौतूहल पैदा करती है.बस्तर दशहरा के बाद यदि किसी पर्व के प्रति लोगों की आस्था है तो वो है गोंचा पर्व. भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान बस्तर में इस ऐतिहासिक पर्व को मनाया जाता है.

Goncha festival in Bastar
गोंचा पर्व का इतिहास
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Published : Jun 21, 2023, 8:23 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

गोंचा पर्व का इतिहास

बस्तर : बस्तर जिले में 75 दिनों तक चलने वाले ऐतिहासिक दशहरे पर्व के बाद दूसरा बड़ा गोंचा पर्व भव्य तरीके से मनाया जा रहा है. बस्तर में श्रीगोंचा पर्व की अलग पहचान है. इस पर्व के दौरान भगवान जगन्नाथ सुभद्रा और बलभद्र को ग्रामीणों के बनाए हुए विशालकाय रथ में सवार किया जाता है. इसके बाद जनकपुरी ( सिरहासार भवन ) तक परिक्रमा करवाई जाती है. इस दौरान श्रीगोंचा पर्व मनाने के लिए हजारों की संख्या में भीड़ उमड़ी. 3 विशालकाय रथ परिक्रमा के दौरान स्थानीय ग्रामीण कारीगरों के बनाए हुए बांस की तुपकी से रथों को सलामी दी गई.

गोंचा पर्व का इतिहास : बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव के मुताबिक '' परंपरा 600 वर्षों से अनवरत चली आ रही है. राजा पुरुषोत्तम देव रियासतकाल में जगन्नाथ पुरी दर्शन करने के लिए गए हुए थे. उसी दौरान उन्हें रथपति की उपाधि मिली.भेंट में उन्हें विशालकाय रथ मिला. जिसे लेकर वह वापस बस्तर पहुंचे. जिसके बाद से बस्तर दशहरा पर्व और गोंचा पर्व में विशालकाय रथ की परिक्रमा करवाई जाती है. इसके साथ ही 360 अरण्यक ब्राह्मण और उत्कल ब्राह्मण को महाराजा पुरुषोत्तम देव लेकर आए. उन्हें यहां का निवासी बनाया. बस्तर में निर्मित मंदिरों में सेवा के लिए तैयार किया गया."

पुरी की तर्ज पर होती है पूजा : आपको बता दें कि जगन्नाथ पुरी से मूर्ति को लाकर जगदलपुर में विराजित किया गया. इसी कारण इसका महत्व अधिक है. इसके अलावा पुरी में जिस प्रकार से आज छेरा पोरा किया गया. उसी की तर्ज में बस्तर में भी छेरा पोरा किया गया. बस्तर में 3 रथों पर जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र को रथारूढ़ करके चांदी के झाड़ू से पुजारी झाड़ू लगाते हैं. जिसके बाद रथ की परिक्रमा करवाई जाती है.

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जानिए कैसा है बस्तर की मशहूर लाल चीटियों की चटनी का स्वाद
प्राकृतिक सुंदरता से लबरेज है बस्तर की कांगेर वैली

तुपकी से सलामी देने की अनोखी परंपरा : बस्तर के जानकार हेमन्त कश्यप के मुताबिक भारत देश में यह परंपरा है कि किसी राजा महाराजा या देव का अभिवादन किया जाता है. बस्तर में गोंचा पर्व के दौरान पोंगली में मलकांगिनी नामक बीज डालकर उसे फोड़ा जाता है. जिसमें से एक विशेष ध्वनि निकल कर बाहर आती है. जिसे बस्तर की बोलचाल की भाषा में तुपकी कहा जाता है. यूं तो गोंचा पर्व के दौरान रथ यात्रा पूरे भारत देश में मनाया जाता है. लेकिन रथ परिक्रमा को बांस की तुपकी से सलामी देने की परंपरा केवल बस्तर में ही वर्षो से चली आ रही है. यही कारण है कि इस अनोखी परंपरा को देखने के लिए भारत देश के अलावा विदेशों से भी पर्यटक बस्तर पहुंचते हैं.

गोंचा पर्व का इतिहास

बस्तर : बस्तर जिले में 75 दिनों तक चलने वाले ऐतिहासिक दशहरे पर्व के बाद दूसरा बड़ा गोंचा पर्व भव्य तरीके से मनाया जा रहा है. बस्तर में श्रीगोंचा पर्व की अलग पहचान है. इस पर्व के दौरान भगवान जगन्नाथ सुभद्रा और बलभद्र को ग्रामीणों के बनाए हुए विशालकाय रथ में सवार किया जाता है. इसके बाद जनकपुरी ( सिरहासार भवन ) तक परिक्रमा करवाई जाती है. इस दौरान श्रीगोंचा पर्व मनाने के लिए हजारों की संख्या में भीड़ उमड़ी. 3 विशालकाय रथ परिक्रमा के दौरान स्थानीय ग्रामीण कारीगरों के बनाए हुए बांस की तुपकी से रथों को सलामी दी गई.

गोंचा पर्व का इतिहास : बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव के मुताबिक '' परंपरा 600 वर्षों से अनवरत चली आ रही है. राजा पुरुषोत्तम देव रियासतकाल में जगन्नाथ पुरी दर्शन करने के लिए गए हुए थे. उसी दौरान उन्हें रथपति की उपाधि मिली.भेंट में उन्हें विशालकाय रथ मिला. जिसे लेकर वह वापस बस्तर पहुंचे. जिसके बाद से बस्तर दशहरा पर्व और गोंचा पर्व में विशालकाय रथ की परिक्रमा करवाई जाती है. इसके साथ ही 360 अरण्यक ब्राह्मण और उत्कल ब्राह्मण को महाराजा पुरुषोत्तम देव लेकर आए. उन्हें यहां का निवासी बनाया. बस्तर में निर्मित मंदिरों में सेवा के लिए तैयार किया गया."

पुरी की तर्ज पर होती है पूजा : आपको बता दें कि जगन्नाथ पुरी से मूर्ति को लाकर जगदलपुर में विराजित किया गया. इसी कारण इसका महत्व अधिक है. इसके अलावा पुरी में जिस प्रकार से आज छेरा पोरा किया गया. उसी की तर्ज में बस्तर में भी छेरा पोरा किया गया. बस्तर में 3 रथों पर जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र को रथारूढ़ करके चांदी के झाड़ू से पुजारी झाड़ू लगाते हैं. जिसके बाद रथ की परिक्रमा करवाई जाती है.

बस्तर में गोंचा पर्व के लिए चंदन जात्रा की निभाई गई रस्म
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तुपकी से सलामी देने की अनोखी परंपरा : बस्तर के जानकार हेमन्त कश्यप के मुताबिक भारत देश में यह परंपरा है कि किसी राजा महाराजा या देव का अभिवादन किया जाता है. बस्तर में गोंचा पर्व के दौरान पोंगली में मलकांगिनी नामक बीज डालकर उसे फोड़ा जाता है. जिसमें से एक विशेष ध्वनि निकल कर बाहर आती है. जिसे बस्तर की बोलचाल की भाषा में तुपकी कहा जाता है. यूं तो गोंचा पर्व के दौरान रथ यात्रा पूरे भारत देश में मनाया जाता है. लेकिन रथ परिक्रमा को बांस की तुपकी से सलामी देने की परंपरा केवल बस्तर में ही वर्षो से चली आ रही है. यही कारण है कि इस अनोखी परंपरा को देखने के लिए भारत देश के अलावा विदेशों से भी पर्यटक बस्तर पहुंचते हैं.

Last Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST
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