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कौन हैं 91 साल के 'ताऊ जी', जो जवान को नक्सलियों से छुड़ा लाए - bastar tau ji dharampal saini

91 साल के ताऊ जी जब अगवा जवान और नक्सलियों की भीड़ में नजर आए, तो सबके जेहन में सवाल कौंधा कि ये हैं कौन ? डिमरापाल में लड़कियों के लिए आश्रम चलाने वाले ताऊ जी धर्मपाल सैनी के मार्गदर्शन में 100 से भी ज्यादा बच्चियां राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीत चुकी हैं. अब वे नक्सलियों के चंगुल से जवान को सकुशल ले आए. ETV भारत पर मिलिए धर्मपाल सैनी से. सुनिए जवान राकेश्वर सिंह मनहास की रिहाई की कहानी.

bastar tau ji dharampal saini
धर्मपाल सैनी जवान को नक्सलियों से छुड़ा लाए
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Published : Apr 9, 2021, 6:41 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

जगदलपुर: 91 साल के बुजुर्ग गुरुवार 8 अप्रैल को सुकून भरी एक तस्वीर में नजर आते हैं. ये तस्वीर है बीजापुर एनकाउंटर में अगवा किए गए कोबरा बटालियन के जवान राकेश्वर सिंह मनहास की रिहाई की. जवान की रिहाई आसान नहीं थी. हर किसी की नजर बस्तर पर लगी थीं कि कब कोई राहत भरी खबर सुनने को मिलेगी. तभी जानकारी मिली कि राकेश्वर रिहा कर दिए गए हैं. किसी ने मध्यस्थता की और नक्लसियों ने उन्हें छोड़ दिया है. कौन थे मध्यस्थता करने वाले ? क्या नाम है उनका और वे करते क्या हैं ? ये सवाल सबके दिमाग में आया. ETV भारत आपको इन्हीं सवालों के जवाब से मिलवा रहा है.

धर्मपाल सैनी जवान को नक्सलियों से छुड़ा लाए

बस्तर के प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ता पद्मश्री धर्मपाल सैनी ने राकेश्वर सिंह मनहास की रिहाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. 91 साल के धर्मपाल सैनी ने बिना थकावट के 500 किलोमीटर का लंबा और कठिन सफर तय किया और जवान को रिहा करा लाए. उन्होंने बताया कि तर्रेम थाना से लगभग 20 किलोमीटर का सफर उन्होंने दुपहिया वाहन में तय किया. 91 साल के धर्मपाल सैनी ने बताया कि सफर के दौरान उन्हें तकलीफ तो हुई लेकिन वे अपने मकसद को पूरा करना चाहते थे.

कौन हैं धर्मपाल सैनी ?

91 साल के धर्मपाल सैनी को छत्तीसगढ़ में ताऊ जी के नाम से जाना जाता है. वे एक समाजसेवी हैं और माता रुकमणी कन्या आश्रम का संचालन करते हैं. जगदलपुर शहर के साथ-साथ बस्तर संभाग के नक्सल प्रभावित इलाकों में उनके आश्रम संचालित हो रहे हैं. धर्मपाल सैनी के आश्रम में पढ़कर कई बालिकाओं ने राष्ट्रीय खेलों में प्रथम पुरस्कार जीतकर बस्तर का नाम रोशन किया है. ताऊ जी 1976 में बस्तर में आए, तो यहां साक्षरता दर 1 फीसदी के आस-पास थी. यहां की साक्षरता दर को 65 फीसदी पहुंचाने में सैनी के योगदान को नकारा नहीं जा सकता. यही वजह है कि साक्षरता दर को सुधारने के साथ-साथ बस्तर के आदिवासी लड़कियों के लिए माता रुकमणी देवी आश्रम के अंतर्गत उन्होंने एक के बाद एक कुल 37 आवासीय स्कूल खोले हैं. इनमें से कई स्कूल नक्सल समस्या से बुरी तरह प्रभावित इलाकों में भी हैं.

जानिए कौन हैं पद्मश्री धर्मपाल सैनी जिनकी मौजूदगी में नक्सलियों ने जवान को किया रिहा

सवाल: आपको मध्यस्थता के लिए कैसे चुना गया ?

जवाब: 5 अप्रैल की शाम पुलिस प्रशासन की ओर से फोन आया था. जवान को छुड़ाने के लिए मध्यस्थता के लिए कहा गया था. मैंने इसके लिए हामी भर दी. गोंडवाना समाज के अध्यक्ष तेलेम बौरैया, समाज की उपाध्यक्ष सुखमती हक्का और रिटायर्ड शिक्षक जय रुद्र करे 7 अप्रैल को जगदलपुर से बीजापुर के लिए निकले थे. हमने बासागुड़ा कैंप में रात बिताई, जिसके बाद अगली सुबह मध्यस्थता टीम और स्थानीय पत्रकारों के साथ नक्सलियों के बुलाए गए स्थान पर मोटरसाइकल से निकले. वहां नक्सली पहले से ही जन अदालत लगाए हुए थे. इस जन अदालत में ग्रामीणों की शिकायत नक्सली सुन रहे थे. 12 बजे से शुरू हुई जन अदालत शाम 4 बजे तक चली. इस बीच बंधक बनाए गए जवान को जन अदालत में लाया गया. ग्रामीणों की रजामंदी और मध्यस्थता टीम से बात करने के बाद जवान को सही-सलामत रिहा किया गया.

सवाल: जन अदालत में जवान के हालात कैसे थे, क्या उन्होंने इस दौरान किसी से बात की ?

जवाब: नक्सलियों से पूरी चर्चा सकारात्मक रही. नक्सलियों के तरफ से दो महिला नक्सली कमांडर ने जन अदालत को लीड किया. जिसके बाद अंतिम फैसला लेकर जवान को सही सलामत मध्यस्थता टीम को सौंप दिया. जवान इस दौरान ज्यादातर समय बिलकुल शांत था.

सवाल: क्या नक्सलियों ने किसी प्रकार की शर्त रखी थी ?

जवाब: नक्सलियों ने जवान को छोड़ने की कोई शर्त नहीं रखी थी. बस उन्होंने यह कहा कि जब जवान अपने घर परिवार पहुंच जाए तब एक तस्वीर उन्हें चाहिए. ताकि वे जान सकें कि जवान सकुशल अपने परिवार के बीच पहुंच चुका है और इसकी पुष्टि हो जाए.

ताऊजी बस्तर में जगा रहे शिक्षा की अलख, आदिवासी लड़कियां कर रहीं नाम रोशन

सवाल: मध्यस्थता के दौरान वहां का माहौल कैसा था ?

जवाब: नक्सलियों की जन अदालत में 13 साल से 30 साल तक के युवा ही नजर आ रहे थे. आस-पास के 20 गांव के हजारों लोग इस जन अदालत में बुलाए गए थे. उनके सामने ही सभी लोगों से महिला नक्सली कमांडर ने जवान को छोड़े जाने की पेशकश की. हालांकि एक्का-दुक्का को छोड़ सभी ने जवान को छोड़े जाने पर हामी भरी.

सवाल: नक्सलवाद खत्म हो इसके लिए क्या करना बेहतर होगा ?

जवाब: नक्सलवाद की समस्या का हल बातचीत से संभव है. सरकार और नक्सली दोनों की तरफ से पहल होनी चाहिए. एक टेबल पर शांति वार्ता कर इस समस्या को सुलझाना चाहिए. बड़े-बड़े युद्ध टेबल पर आकर खत्म होते हैं. लेकिन शांति वार्ता के लिए सरकार और नक्सलवाद दोनों को ही एक-एक कदम बढ़ाने की जरूरत है. नक्सलियों से शांति वार्ता के लिए सरकार की ओर से न्योता भेजा जाएगा, तो वे जरूर इसके लिए आगे आएंगे.

सरकार को भी करनी चाहिए सकारात्मक पहल: नक्सली

धर्मपाल सैनी ने यह भी बताया कि नक्सलियों ने उनसे कहा कि हम जवान को सकुशल छोड़ रहे हैं. लेकिन सरकार को भी चाहिए कि नक्सल मामलों में सालों से जेलों में बंद निर्दोश आदिवासियों को भी छोड़ने पर विचार करें. करीब 4 घंटे तक जन अदालत में रहने के बाद धर्मपाल सैनी बीजापुर जिले के स्थानीय पत्रकारों के साथ जवान को सकुशल तर्रेम थाना तक लेकर आए. वहां से बासागुड़ा बेस कैंप में जवान को सीआरपीएफ डीआईजी के समक्ष सौंप दिया गया. इस दौरान जवान ने बताया कि 6 दिनों तक बंधक बनाए जाने के दौरान नक्सलियों ने जवान को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचाया. मुठभेड़ के दौरान जवान बेहोशी के हालत में नक्सलियों को मिला था.

धर्मपाल ने कहा कि वे बस्तर में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए अपनी भूमिका निभाने के लिए पूरी तरह से तैयार रहेंगे. उन्होंने बताया कि नक्सलियों ने उनसे भी काफी देर चर्चा की और उनके संस्था के बारे में भी विस्तार से जानकारी ली है.

जगदलपुर: 91 साल के बुजुर्ग गुरुवार 8 अप्रैल को सुकून भरी एक तस्वीर में नजर आते हैं. ये तस्वीर है बीजापुर एनकाउंटर में अगवा किए गए कोबरा बटालियन के जवान राकेश्वर सिंह मनहास की रिहाई की. जवान की रिहाई आसान नहीं थी. हर किसी की नजर बस्तर पर लगी थीं कि कब कोई राहत भरी खबर सुनने को मिलेगी. तभी जानकारी मिली कि राकेश्वर रिहा कर दिए गए हैं. किसी ने मध्यस्थता की और नक्लसियों ने उन्हें छोड़ दिया है. कौन थे मध्यस्थता करने वाले ? क्या नाम है उनका और वे करते क्या हैं ? ये सवाल सबके दिमाग में आया. ETV भारत आपको इन्हीं सवालों के जवाब से मिलवा रहा है.

धर्मपाल सैनी जवान को नक्सलियों से छुड़ा लाए

बस्तर के प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ता पद्मश्री धर्मपाल सैनी ने राकेश्वर सिंह मनहास की रिहाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. 91 साल के धर्मपाल सैनी ने बिना थकावट के 500 किलोमीटर का लंबा और कठिन सफर तय किया और जवान को रिहा करा लाए. उन्होंने बताया कि तर्रेम थाना से लगभग 20 किलोमीटर का सफर उन्होंने दुपहिया वाहन में तय किया. 91 साल के धर्मपाल सैनी ने बताया कि सफर के दौरान उन्हें तकलीफ तो हुई लेकिन वे अपने मकसद को पूरा करना चाहते थे.

कौन हैं धर्मपाल सैनी ?

91 साल के धर्मपाल सैनी को छत्तीसगढ़ में ताऊ जी के नाम से जाना जाता है. वे एक समाजसेवी हैं और माता रुकमणी कन्या आश्रम का संचालन करते हैं. जगदलपुर शहर के साथ-साथ बस्तर संभाग के नक्सल प्रभावित इलाकों में उनके आश्रम संचालित हो रहे हैं. धर्मपाल सैनी के आश्रम में पढ़कर कई बालिकाओं ने राष्ट्रीय खेलों में प्रथम पुरस्कार जीतकर बस्तर का नाम रोशन किया है. ताऊ जी 1976 में बस्तर में आए, तो यहां साक्षरता दर 1 फीसदी के आस-पास थी. यहां की साक्षरता दर को 65 फीसदी पहुंचाने में सैनी के योगदान को नकारा नहीं जा सकता. यही वजह है कि साक्षरता दर को सुधारने के साथ-साथ बस्तर के आदिवासी लड़कियों के लिए माता रुकमणी देवी आश्रम के अंतर्गत उन्होंने एक के बाद एक कुल 37 आवासीय स्कूल खोले हैं. इनमें से कई स्कूल नक्सल समस्या से बुरी तरह प्रभावित इलाकों में भी हैं.

जानिए कौन हैं पद्मश्री धर्मपाल सैनी जिनकी मौजूदगी में नक्सलियों ने जवान को किया रिहा

सवाल: आपको मध्यस्थता के लिए कैसे चुना गया ?

जवाब: 5 अप्रैल की शाम पुलिस प्रशासन की ओर से फोन आया था. जवान को छुड़ाने के लिए मध्यस्थता के लिए कहा गया था. मैंने इसके लिए हामी भर दी. गोंडवाना समाज के अध्यक्ष तेलेम बौरैया, समाज की उपाध्यक्ष सुखमती हक्का और रिटायर्ड शिक्षक जय रुद्र करे 7 अप्रैल को जगदलपुर से बीजापुर के लिए निकले थे. हमने बासागुड़ा कैंप में रात बिताई, जिसके बाद अगली सुबह मध्यस्थता टीम और स्थानीय पत्रकारों के साथ नक्सलियों के बुलाए गए स्थान पर मोटरसाइकल से निकले. वहां नक्सली पहले से ही जन अदालत लगाए हुए थे. इस जन अदालत में ग्रामीणों की शिकायत नक्सली सुन रहे थे. 12 बजे से शुरू हुई जन अदालत शाम 4 बजे तक चली. इस बीच बंधक बनाए गए जवान को जन अदालत में लाया गया. ग्रामीणों की रजामंदी और मध्यस्थता टीम से बात करने के बाद जवान को सही-सलामत रिहा किया गया.

सवाल: जन अदालत में जवान के हालात कैसे थे, क्या उन्होंने इस दौरान किसी से बात की ?

जवाब: नक्सलियों से पूरी चर्चा सकारात्मक रही. नक्सलियों के तरफ से दो महिला नक्सली कमांडर ने जन अदालत को लीड किया. जिसके बाद अंतिम फैसला लेकर जवान को सही सलामत मध्यस्थता टीम को सौंप दिया. जवान इस दौरान ज्यादातर समय बिलकुल शांत था.

सवाल: क्या नक्सलियों ने किसी प्रकार की शर्त रखी थी ?

जवाब: नक्सलियों ने जवान को छोड़ने की कोई शर्त नहीं रखी थी. बस उन्होंने यह कहा कि जब जवान अपने घर परिवार पहुंच जाए तब एक तस्वीर उन्हें चाहिए. ताकि वे जान सकें कि जवान सकुशल अपने परिवार के बीच पहुंच चुका है और इसकी पुष्टि हो जाए.

ताऊजी बस्तर में जगा रहे शिक्षा की अलख, आदिवासी लड़कियां कर रहीं नाम रोशन

सवाल: मध्यस्थता के दौरान वहां का माहौल कैसा था ?

जवाब: नक्सलियों की जन अदालत में 13 साल से 30 साल तक के युवा ही नजर आ रहे थे. आस-पास के 20 गांव के हजारों लोग इस जन अदालत में बुलाए गए थे. उनके सामने ही सभी लोगों से महिला नक्सली कमांडर ने जवान को छोड़े जाने की पेशकश की. हालांकि एक्का-दुक्का को छोड़ सभी ने जवान को छोड़े जाने पर हामी भरी.

सवाल: नक्सलवाद खत्म हो इसके लिए क्या करना बेहतर होगा ?

जवाब: नक्सलवाद की समस्या का हल बातचीत से संभव है. सरकार और नक्सली दोनों की तरफ से पहल होनी चाहिए. एक टेबल पर शांति वार्ता कर इस समस्या को सुलझाना चाहिए. बड़े-बड़े युद्ध टेबल पर आकर खत्म होते हैं. लेकिन शांति वार्ता के लिए सरकार और नक्सलवाद दोनों को ही एक-एक कदम बढ़ाने की जरूरत है. नक्सलियों से शांति वार्ता के लिए सरकार की ओर से न्योता भेजा जाएगा, तो वे जरूर इसके लिए आगे आएंगे.

सरकार को भी करनी चाहिए सकारात्मक पहल: नक्सली

धर्मपाल सैनी ने यह भी बताया कि नक्सलियों ने उनसे कहा कि हम जवान को सकुशल छोड़ रहे हैं. लेकिन सरकार को भी चाहिए कि नक्सल मामलों में सालों से जेलों में बंद निर्दोश आदिवासियों को भी छोड़ने पर विचार करें. करीब 4 घंटे तक जन अदालत में रहने के बाद धर्मपाल सैनी बीजापुर जिले के स्थानीय पत्रकारों के साथ जवान को सकुशल तर्रेम थाना तक लेकर आए. वहां से बासागुड़ा बेस कैंप में जवान को सीआरपीएफ डीआईजी के समक्ष सौंप दिया गया. इस दौरान जवान ने बताया कि 6 दिनों तक बंधक बनाए जाने के दौरान नक्सलियों ने जवान को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचाया. मुठभेड़ के दौरान जवान बेहोशी के हालत में नक्सलियों को मिला था.

धर्मपाल ने कहा कि वे बस्तर में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए अपनी भूमिका निभाने के लिए पूरी तरह से तैयार रहेंगे. उन्होंने बताया कि नक्सलियों ने उनसे भी काफी देर चर्चा की और उनके संस्था के बारे में भी विस्तार से जानकारी ली है.

Last Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST
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