जगदलपुरः छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले का जब भी नाम आता है तो नक्सलियों की छवि जहन में बनती है. देश का यह हिस्सा इस समस्या से बुरी तरह प्रभावित है, ऐसे में इस जगह पर शिक्षा की बात करना किसी सपने जैसा ही लगता है, लेकिन इन्हीं समस्याओं और विपरीत परिस्थितियों के बीच 90 साल के धर्मपाल सैनी उर्फ ताऊ जी ने एक ऐसी शिक्षा की अलख जगाई है जिससे हजारों की संख्या में बस्तर की आदिवासी लड़कियों की जिंदगी रोशन हो रही है.
जगदलपुर शहर से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित डिमरापाल ग्राम में माता रुक्मणी सेवा संस्थान संचालित है इस संस्थान से जुड़ी खास बात ये है कि यहां रहने वाली बस्तर कि वो बेटियां हैं जो अलग-अलग खेलों में पिछले तीन दशक से अपना हुनर दिखा रही हैं. इस संस्थान के संस्थापक पद्मश्री धर्मपाल सैनी के मार्गदर्शन में इस बालिका आश्रम की 100 से भी ज्यादा बच्चियां राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीत चुकी हैं. सीमित संसाधन के बावजूद यहां के खिलाड़ी देश में बस्तर का नाम रोशन कर रहे हैं.
4 लड़कियों से की आश्रम की शुरूआत
माता रुक्मणी आश्रम के संस्थापक धर्मपाल सैनी ने बताया कि उन्होंने 60 के दशक में बस्तर की महिलाओं की वीरता की कहानी अखबार में पड़ी थी, उन्होंने बताया कि साल 1960 में बस्तर में 6 महिलाओं ने उन पर हमला कर रहे चीते को अपने साहस का परिचय देते हुए पारम्परिक हथियार से चारों खाने चित कर दिया था और चीते को वहां से घायल अवस्था में भागना पड़ा. इस वीरगाथा की कहानी पढ़ने के बाद धर्मपाल सैनी ने बस्तर की लड़कियों को ग्रूम करने और उनकी एनर्जी को सही दिशा देने के की ठान ली. कुछ सालों बाद अपने गुरु विनोबा भावे से बस्तर आने की अनुमति मांगी और साल 1976 में उन्होंने बस्तर के डिमरापाल में 4 बालिकाओं के साथ आश्रम की शुरुआत की.
37 आश्रमों का किया जा रहा है संचालन
धर्मपाल सैनी ने बताया कि शुरुआती दौर में बस्तर में बालिकाओं को पढ़ने-लिखने नहीं दिया जाता था और यहां के आदिवासियों की लड़कियों के प्रति अलग सोच थी. इसलिए उन्हें बस्तर में अपने कुछ साथियों के साथ बहुत संघर्ष और कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने ठान लिया कि यहां की लड़कियों को उनके प्रतिभा के अनुरूप उनमें शिक्षा और खेल के प्रति अलख जगाना है.आज उनके द्वारा 37 आश्रमों का संचालन किया जा रहा है, जहां आदिवासी बालक-बालिकाओं को कक्षा 1 से लेकर 12वीं तक की शिक्षा मिल रही है और साथ ही साथ बच्चे खेल में भी अपनी प्रतिभा दिखा रहे हैं.
2500 से ज्यादा बच्चे जीत चुके हैं पदक
ताऊजी ने बताया कि आश्रम के छात्राओं को निःशुल्क शिक्षा, भोजन और आवास की सुविधा दी जाती है. हालांकि इसमें कुछ प्रतिशत शासकीय अनुदान होता है. उन्होंने बताया कि उनके आश्रम से अब तक 2 हजार 500 से ज्यादा बच्चे राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न खेलों में हिस्सा लेकर पदक जीत चुके हैं.बच्चियों को जो भी पुरस्कार राशि मिलती है उसे वे अपने घर में आर्थिक रूप से भी मदद करते हैं और अपने परिवार का पालन पोषण करते है. उन्होंने शासन से फुटबॉल और एथलेटिक्स एकेडमी की मांग की है, जिससे क्षेत्र की लड़कियों की प्रतिभा और निखर कर सामने आ सके.
सभी प्रकार की सुविधा होती है मुहैया
संस्थान में पिछले 30 सालों से शिक्षिका के रूप में यहां सेवा दे रही प्रेमा पाठक ने बताया कि माता रुक्मणी आश्रम में शिक्षा प्राप्त किए बच्चे आज शासन के सभी विभागों में बड़े पदों पर अपनी सेवा दे रहे हैं. साथ ही खेल में भी नाम रोशन कर रही हैं. उन्होंने बताया कि ताऊजी आदिवासी बालिकाओं को आगे बढ़ाने के लिए सभी प्रकार की सुविधा मुहैया करा रहे हैं.
राष्ट्रीय स्तर पर कर चुके हैं जीत हासिल
आश्रम के स्पोर्ट्स टीचर शंकर पटेल ने बताया कि आदिवासी बालिकाओं में बहुत स्टैमिना होता है जरूरत है तो उनके प्रतिभाओं को निखारने की और इसके लिए वे ताऊजी के साथ मिलकर हर संभव प्रयास कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि आश्रम की छात्राओं ने लगातार 5 सालों तक सुब्रतो फुटबॉल कप प्रतियोगिता में जीत हासिल की है. इसके साथ ही एथेलेटिक्स, थ्रोबॉल में 3 गोल्ड मेडल और तीरंदाजी खो-खो, कबड्डी समेत मैराथन में भी छात्राएं राष्ट्रीय स्तर पर ट्रॉफी हासिल कर चुकी हैं.
खेल का हुनर दिखा कर रही है नाम रोशन
आश्रम की छात्राओं ने बताया कि अंदरूनी क्षेत्रों में स्कूल के अभाव की वजह से और उनके समाज में लड़कियों को पढ़ने की इजाजत नहीं देने की वजह से कई लड़कियां शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाती हैं, लेकिन आश्रम में एडमिशन लेने के बाद आज वे अपने परिवार के साथ ही बस्तर और राज्य का नाम अपने शिक्षा और खेल का हुनर दिखाकर रोशन कर रही हैं. छात्राओं का कहना है कि इस आश्रम में उन्हें सारी सुविधा मिलती है, जिससे उनका भविष्य उज्जवल हो सके.
ताऊजी के मेहनत से बढ़ा शिक्षा का ग्राफ
आदिवासी बालिकाओं को देश में उनकी पहचान दिलाने के लिए और खेल की प्रतिभा को उभारने के लिए आश्रम के संस्थापक धर्मपाल सैनी को सन 1992 में पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया. धर्मपाल सैनी के आने से पहले तक बस्तर में साक्षरता का ग्राफ 10 फीसदी भी नहीं थी और आज वर्तमान में बस्तर में शिक्षा का प्रतिशत 50 फीसदी के करीब पहुंच गया है. धर्मपाल सैनी के बस्तर आने से पहले तक आदिवासी लड़कियां स्कूल नहीं जाती थी लेकिन आज सैनी जी संस्था में पढ़ाई कर रही हैं. पद्मश्री धर्मपाल सैनी के द्वारा बस्तर में उनके उत्कृष्ट कार्य की सराहना करते हुए ईटीवी भारत उन्हें सलाम करता है.