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नवरात्रि 2022: मां दंतेश्वरी की डोली बस्तर दशहरा के लिए रवाना - मां दंतेश्वरी की डोली

नवरात्रि 2022: अष्टमी के दिन मां दंतेश्वरी की डोली को धूमधाम से बस्तर दशहरा के लिए रवाना किया गया. दंतेवाड़ा देश के 52 शक्तिपीठों में से एक है. छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा का दंतेश्वरी मंदिर. आदि काल से चली आ रही कथा के अनुसार यहां माता सती के दांत गिरे थे, इसलिए इसका नाम दंतेश्वरी है.

बस्तर दशहरा 2022
बस्तर दशहरा 2022
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Published : Oct 3, 2022, 9:28 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST

दंतेवाड़ा: नवरात्रि के पांचवी दिन बस्तर की राजा के सुपुत्र कमल चंद भंजदेव राज परिवार के साथ मां दंतेश्वरी को बस्तर दशहरा के लिए निमंत्रण देने दंतेवाड़ा पहुंचते हैं. जो परंपरा वर्षों से चली आ रही है. जिसके बाद अष्टमी के दिन मां दंतेश्वरी की विशेष पूजा अर्चना कर दंतेश्वरी माई जी की डोली को पुलिस जवानों द्वारा सलामी दी जाती है. जिसके बाद मां दंतेश्वरी की डोली को धूमधाम से बस्तर दशहरा मनाने के लिए जगदलपुर के लिए विदा किया जाता है. जगदलपुर तक माता जी के छात्र की जगह-जगह स्वागत कर पूजा अर्चना की जाती है.

मां दंतेश्वरी की डोली बस्तर दशहरा के लिए रवाना


पुरानी कथाओं के अनुसार: इस मंदिर की एक खासियत ये भी है कि यहां माता बस्तर दशहरा में शामिल होने मंदिर से बाहर निकलतीं हैं. बस्तर दशहरा में रावण का दहन नहीं बल्कि रथ की नगर परिक्रमा करवाई जाती है. जिसमें माता का छत्र विराजित किया जाता है. जब तक दंतेश्वरी माता दशहरा में शामिल नहीं होती हैं, तब तक यहां दशहरा नहीं मनाया जाता है. माता महा-अष्टमी के दिन दर्शन देने निकलती हैं. बस्तर में मनाए जाने वाला दशहरा पर्व की रस्में 75 दिनों तक चलता है. यह परंपरा करीब 610 साल पुरानी है.



बदलते वक्त के साथ अब बस्तर की तस्वीर बदल रही है. कभी नक्सल दहशत की वजह से भक्त यहां आने सोचते थे लेकिन आज नवरात्र के दिनों में लाखों की संख्या में भीड़ जुटती है. शंखनी-डंकनी नदी के तट पर करीब 12वीं-13वीं शताब्दी से स्थित ये मंदिर कई मामलों में बहुत खास हैं. आदिकाल से मां दंतेश्वरी को बस्तर के लोग अपनी कुल देवी के रूप में पूजते हैं.

ऐसा माना जाता है कि, बस्तर में होने वाला कोई भी विधान माता की अनुमति के बगैर नहीं किया जाता है. इसके अलावा तेलंगाना के कुछ जिले और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के लोग भी मां दंतेश्वरी को अपनी इष्ट देवी मानते हैं. वहां के लोग भी बताते हैं कि काकतीय राजवंश जब यहां आ रहे थे तब हम कुछ लोग वहां रह गए थे। हम भी मां दंतेश्वरी को अपनी इष्ट देवी के रूप में पूजते हैं.


मां दंतेश्वरी मंदिर के प्रधान पुजारी हरेंद्रनाथ जिया ने बताया कि, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब विष्णु भगवान ने अपने चक्र से सती के शरीर को 52 भागों में विभक्त किया था, तो उनके शरीर के 51अंग देशभर के विभिन्न हिस्सों में गिरे. 52वां अंग उनका दांत यहां गिरा था. इसलिए देवी का नाम दंतेश्वरी और जिस ग्राम में दांत गिरा था उसका नाम दंतेवाड़ा पड़ा. बदलते वक्त के साथ मंदिर की तस्वीर भी बदली. माता के चमत्कारों ने लोगों के मन में आस्था और विश्वास को और बढ़ा दिया.

दंतेवाड़ा: नवरात्रि के पांचवी दिन बस्तर की राजा के सुपुत्र कमल चंद भंजदेव राज परिवार के साथ मां दंतेश्वरी को बस्तर दशहरा के लिए निमंत्रण देने दंतेवाड़ा पहुंचते हैं. जो परंपरा वर्षों से चली आ रही है. जिसके बाद अष्टमी के दिन मां दंतेश्वरी की विशेष पूजा अर्चना कर दंतेश्वरी माई जी की डोली को पुलिस जवानों द्वारा सलामी दी जाती है. जिसके बाद मां दंतेश्वरी की डोली को धूमधाम से बस्तर दशहरा मनाने के लिए जगदलपुर के लिए विदा किया जाता है. जगदलपुर तक माता जी के छात्र की जगह-जगह स्वागत कर पूजा अर्चना की जाती है.

मां दंतेश्वरी की डोली बस्तर दशहरा के लिए रवाना


पुरानी कथाओं के अनुसार: इस मंदिर की एक खासियत ये भी है कि यहां माता बस्तर दशहरा में शामिल होने मंदिर से बाहर निकलतीं हैं. बस्तर दशहरा में रावण का दहन नहीं बल्कि रथ की नगर परिक्रमा करवाई जाती है. जिसमें माता का छत्र विराजित किया जाता है. जब तक दंतेश्वरी माता दशहरा में शामिल नहीं होती हैं, तब तक यहां दशहरा नहीं मनाया जाता है. माता महा-अष्टमी के दिन दर्शन देने निकलती हैं. बस्तर में मनाए जाने वाला दशहरा पर्व की रस्में 75 दिनों तक चलता है. यह परंपरा करीब 610 साल पुरानी है.



बदलते वक्त के साथ अब बस्तर की तस्वीर बदल रही है. कभी नक्सल दहशत की वजह से भक्त यहां आने सोचते थे लेकिन आज नवरात्र के दिनों में लाखों की संख्या में भीड़ जुटती है. शंखनी-डंकनी नदी के तट पर करीब 12वीं-13वीं शताब्दी से स्थित ये मंदिर कई मामलों में बहुत खास हैं. आदिकाल से मां दंतेश्वरी को बस्तर के लोग अपनी कुल देवी के रूप में पूजते हैं.

ऐसा माना जाता है कि, बस्तर में होने वाला कोई भी विधान माता की अनुमति के बगैर नहीं किया जाता है. इसके अलावा तेलंगाना के कुछ जिले और महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के लोग भी मां दंतेश्वरी को अपनी इष्ट देवी मानते हैं. वहां के लोग भी बताते हैं कि काकतीय राजवंश जब यहां आ रहे थे तब हम कुछ लोग वहां रह गए थे। हम भी मां दंतेश्वरी को अपनी इष्ट देवी के रूप में पूजते हैं.


मां दंतेश्वरी मंदिर के प्रधान पुजारी हरेंद्रनाथ जिया ने बताया कि, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब विष्णु भगवान ने अपने चक्र से सती के शरीर को 52 भागों में विभक्त किया था, तो उनके शरीर के 51अंग देशभर के विभिन्न हिस्सों में गिरे. 52वां अंग उनका दांत यहां गिरा था. इसलिए देवी का नाम दंतेश्वरी और जिस ग्राम में दांत गिरा था उसका नाम दंतेवाड़ा पड़ा. बदलते वक्त के साथ मंदिर की तस्वीर भी बदली. माता के चमत्कारों ने लोगों के मन में आस्था और विश्वास को और बढ़ा दिया.

Last Updated : Jul 25, 2023, 7:57 AM IST
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