जगदलपुर : ऐसा माना जाता है कि छत्तीसगढ़ की सियासत का रास्ता बस्तर से होकर गुजरता है. क्योंकि जिस दल ने बस्तर की सीटों पर कब्जा किया,उसकी सरकार बनाने की संभावना सबसे ज्यादा रहती है.पिछली बार 2018 के विधानसभा चुनाव में बस्तर की 12 में से 12 सीटें कांग्रेस के कब्जे में आई. वहीं प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है.इसलिए इस बार होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस एक बार फिर बस्तर का गढ़ जीतने की तैयारियों में जुटी है. हमने इस बारे में बस्तर के राजनीति के जानकारों से जाना कि इस बार संभाग में कांग्रेस की क्या स्थिति है.
12 सीटों को दोबारा जीतना चाहेगी कांग्रेस : राजनीति के जानकार मनीष गुप्ता का कहना है कि "बस्तर में 12 विधानसभा सीटें हैं. कांग्रेस बस्तर की 12 सीटों पर काबिज है. इस बार भी कांग्रेस बस्तर की 12 विधानसभा सीट को जीतना चाहेगी.कांग्रेस पार्टी ने टिकट वितरण को लेकर एक योजना तैयार किया है.जिसमें विधानसभा सीट के दावेदारों ने ब्लॉक लेवल पर अपनी दावेदारी प्रस्तुत की. इसके बाद आवेदन जिला स्तर से होते हुए राज्य स्तर तक पहुंचा.फिर स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में टिकटों का वितरण के लिए यह गया.लेकिन कमजोर प्रत्याशियों के टिकट जरुर कटेंगे."
''आज की स्थिति में कांग्रेस की आंतरिक सर्वे के अनुसार जो विधायक पार्टी की कसौटी पर खरे उतरे हैं. उन्हें दोबारा टिकट मिलेगा.वहीं जिन सीटों पर बीजेपी के प्रत्याशी के मुकाबले कांग्रेस का दावेदार कमजोर दिखेगा उनकी टिकट कटेगी.'' मनीष गुप्ता, राजनीति के जानकार
कमजोर विधायकों की कटेगी टिकट : राजनीतिक जानकार और वरिष्ठ पत्रकार संजीव पचौरी ने बताया कि बस्तर की 12 विधानसभा सीटों पर जो विधायक हैं. उनमें 3 सीट ऐसी हैं. जिस पर कांग्रेस पार्टी चेहरा बदल सकती है. क्योंकि उनकी स्थिति क्षेत्र में कमजोर मानी जा रही है.
''बस्तर जिले के चित्रकोट विधानसभा में विधायक को जितना कम करना चाहिए था उतना कम नहीं हुआ है. अंतागढ़ विधानसभा में विधायक को सक्रिय रूप से क्षेत्र में काम करना चाहिए था. लेकिन विधायक ने नहीं किया. कांकेर विधानसभा ऐसी विधानसभा है जहां लोग काफी जागरूक हैं. क्योंकि मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार विधायकों का काम विधानसभा में कमजोर है. इसलिए कांकेर में भी बदलाव की गुंजाइश बन सकती है.'' संजीव पचौरी,राजनीतिक जानकार
4 विधानसभा सीटों के विधायकों पर संशय : वहीं राजनीतिक के जानकार सुधीर जैन के मुताबिक बस्तर के 12 विधानसभा सीट पर 8 सीटें ऐसी हैं. जहां कांग्रेस अपने प्रत्याशियों को बरकरार रखेगी. लेकिन 4 सीटों पर पार्टी परिवर्तन कर सकती है. जिनमें एक दंतेवाड़ा सीट है. बस्तर में कहीं परिवारवाद का मुद्दा है. कहीं बहुत अधिक प्रतिस्पर्धा है, तो कहीं हिंदुत्व का मुद्दा है. कुछ विधानसभा में विधायकों की निष्क्रियता भी है.
''बस्तर विधानसभा और कोंटा विधानसभा से केवल सिंगल नाम गया है. ये दोनों सीट भी कांग्रेस की जीती हुई सीट है.कोंटा के विधायक कवासी लखमा मंत्री हैं. उनको हराना मुश्किल है. कवासी लखमा अपने कार्यक्षेत्र में सक्रिय हैं.बस्तर विधानसभा के विधायक लखेश्वर बघेल भी अपने क्षेत्र में काफी सक्रिय हैं.इसलिए 12 में से दो सीटों पर कांग्रेस की जीत पक्की लग रही है.'' सुधीर जैन, राजनीतिक जानकार
आपको बता दें कि बस्तर आदिवासी क्षेत्र है. यहां शिक्षित लोगों की संख्या ज्यादा नहीं है. यही कारण है कि यहां राष्ट्रीय मुद्दा ज्यादा मायने नहीं रखता है. लेकिन बस्तर की जनता प्रत्याशी, पार्टी और कार्यकर्ताओं के रवैये को अच्छी तरह से परखना जानता है. यही वजह है कि पिछली बार जनता ने एक सिरे से बीजेपी को नकारते हुए संभाग की सभी सीटें कांग्रेस की झोली में डाली. कांग्रेस चुनाव से पहले अपने कार्यकाल के कामों को लेकर जनता के बीच जाएगी.ऐसे में पार्टी नहीं चाहती कि जो विधायक जनता की कसौटी पर खरे नहीं उतरे. उन्हें मौका मिले.इसलिए कांग्रेस कमजोर प्रत्याशियों की टिकट काटने से जरा भी गुरेज नहीं करेगी.