जगदलपुर: ईटीवी भारत के नव दुर्गा कार्यक्रम में आज हम आपको एक और ऐसी शख्सियत से मिलाने जा रहे हैं. जिन्होंने बस्तर जैसे सुदूर ग्रामीण अंचल में जहां शिक्षा और जागरूकता की कमी है. वहां अपने संस्था के माध्यम से युवती और महिलाओं को जागरूक करने के साथ ही महावारी जैसी गंभीर बीमारी से बचाने के लिए बीड़ा उठाया है और बकायदा नि:शुल्क पैड बैंक चलाकर ग्रामीण युवती और महिलाओं को इसका वितरण भी कर रही है.
बस्तर की बेटी करमजीत कौर पिछले 5 सालों से अपनी संस्था के माध्यम से गांव गांव तक पहुंच इस माहवारी से होने वाली बीमारी से बचाने के लिए महिलाओं और युवतियों को जागरूक कर रही हैं. बस्तर में इन्हें आयरन लेडी के नाम से जाना जाता है. ETV भारत की नवदुर्गा कार्यक्रम पर समाजसेवी करमजीत कौर से जगदलपुर सवांददाता ने खास बातचीत की.
सवाल: किस तरह से आपको लगा कि बस्तर में माहवारी जैसी गंभीर बीमारी से बचने युवतियों और महिलाओं को जागरूक किया जाना है और कितने सालों से आप इस पर काम कर रहे हैं?
जवाब: समाजसेवी करमजीत कौर ने बताया कि उन्होंने अपनी संस्था की शुरुआत करने से पहले देखा कि बस्तर के अधिकतर ग्रामीण अंचलों में महावारी को लेकर कई महिलाओं और बालिकाओं में भ्रम की स्थिति है. एक रिपोर्ट के मुताबिक बस्तर संभाग में मासिक धर्म के दौरान मात्र 30% महिलाएं सेनेटरी पैड का इस्तेमाल करती है. वहीं 10 फीसदी युवतियों का मानना है कि मासिक धर्म एक बीमारी है.
करमजीत कौर ने कहा कि यही वजह है कि बस्तर के ग्रामीण अंचलों में अधिकतर बालिकाएं इसे बीमारी मानकर स्कूल भी छोड़ देती हैं. वहीं मासिक धर्म के दौरान अगर सही से रखरखाव और साफ सफाई का ध्यान ना रखा जाए तो कई तरह के गंभीर समस्या भी जन्म ले सकती है और ऐसे में यह हालात चिंता पैदा करने वाले है. वहीं उन्होंने बताया कि बस्तर भ्रमण के दौरान कई दफा उन्होंने देखा कि अंदरूनी क्षेत्रों में मासिक धर्म को लेकर काफी बुरी हालत है और ग्रामीण युवतियां और महिलाएं राख और गंदे कपड़ों का इस्तेमाल करती है. जिससे हाइजीन होने की पूरी संभावना बनी रहती है और इस वजह से कई महिलाओं और युवतियों की जागरूकता के अभाव में मौत भी हो जाती है. ऐसे में उन्होंने अकेले ही अपनी संस्था स्थापित की और ग्रामीण युवतियों और महिलाओं को जागरूक करने का काम शुरू किया और देखते ही देखते उनके साथ आज 10 महिलाएं उनके संस्था से जुड़कर लगातार बस्तर के ग्रामीण अंचलों में कार्यक्रम आयोजित कर ग्रामीणों को माहवारी स्वच्छता के लिए जागरूक करने के साथ सेनेटरी पैड का भी नि:शुल्क वितरण कर रही है.
सवाल: आपके द्वारा पैड बैंक खोलने के बाद कितनी महिलाओं में इसके लिये जागरूकता बढ़ी है और उन्हें कितना फायदा मिल रहा है इस पैड बैंक से ?
जवाब: समाजसेविका ने बताया कि साल 2016 में उन्होंने एमएम फाइटर्स के नाम से अपनी संस्था स्थापित की और इस संस्था के माध्यम से उन्होंने लगातार बस्तर के ग्रामीण क्षेत्रों में दौरा करना शुरू किया और ग्रामीण महिलाओं और युवतियों को इकट्ठा कर महावारी स्वच्छता के लिए जागरूक किया. हालांकि इस दौरान उन्होंने देखा कि कई महिलाएं और युवतियां इस मसले में बात करने को भी तैयार नहीं थी और शरमा के घर से बाहर भी नहीं आती थी और ना ही उन्हें सुनना चाहती थी. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और इस माहवारी से होने वाले कई गंभीर बीमारियों की जानकारी महिलाओं और बालिकाओं को दी. जिसके बाद धीरे-धीरे हाई स्कूलों में भी उन्होंने स्कूली बालिकाओं को इसके लिए जागरूक किया और नतीजा यह हुआ कि बालिकाओं ने अपने अपने घर में इस गंभीर समस्या पर बातचीत शुरू की और धीरे-धीरे ग्रामीण जागरूक होने लगे और आज आलम यह है कि बस्तर जिले के ग्रामीण अंचलों की महिलाएं और युवतियां सेनेटरी पैड की उपयोगिता को भली-भांति समझ रही है. साथ ही इस माहवारी जैसी गंभीर बीमारी से भी बच रही हैं. वहीं पैड बैंक के माध्यम से वे अब नि:शुल्क सेनेटरी पैड का वितरण कर रही है और बकायदा इस पैड को लेने महिलाएं और युवतियां भी आगे आती हैं.
सवाल: इस काम के लिए शासन से आपको किस तरह की मदद मिली या शासन से कोई मांग है जिससे इस गंभीर समस्या से एक एक महिला और युवती निजात पा सके.
जवाब: करमजीत कौर ने बताया कि शुरुआती दिनों में उन्हें अकेले ही इसके लिए संघर्ष करना पड़ा. लेकिन इसके लिए उन्होंने कभी हार नहीं मानी, कई बार ऐसा हुआ कि किसी गांव में इस समस्या को बताने के दौरान पुरुष के साथ-साथ महिलाएं भी इसका विरोध करने लगी, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने अपने साथ लोगों को जोड़ना शुरू किया और अब उनकी संस्था में जुड़ी महिलाओं के माध्यम से बस्तर जिले के एक-एक गांव में पहुंचकर लोगों को जागरूक करने का काम किया जा रहा है और साथ ही शासन की मदद से सरकारी कार्यक्रमों और निजी कार्यक्रमों में भी नि:शुल्क सेनेटरी पैड वितरण किया जा रहा है.
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यहां पहुंचने वाली ग्रामीण महिलाओं और स्कूली बालिकाओं को भी इसके लिए जागरूक करने का काम किया जाता है. इस दौरान शासन से भी उन्हें भरपूर मदद मिल रही है और स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ ही बस्तर कलेक्टर ने भी उनके इस पहल की सराहना की और समय-समय पर उन्होंने बालिकाओं और महिलाओं को इसके लिए जागरूक करने के लिए मंच प्रदान किया और सरकारी कार्यक्रम में भी जगह देकर उनका सहयोग किया.
उन्होंने बताया कि बस्तर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष लखेश्वर बघेल से भी उन्होंने एक सैनिटरी पैड बनाने के लिए मशीन की मांग की ताकि बस्तर में निःशुल्क पैड वितरण करने के लिए कभी सेनेटरी पैड की कमी ना हो और इस पर भी प्राधिकरण के अध्यक्ष ने हामी भरी और मशीन अभी आने की प्रोसेस में है. जैसे ही मशीन आती है तो निश्चित तौर पर ग्रामीण महिलाओं स्कूली बालिकाओं और युवतियों तक नि:शुल्क पैड पहुंचाने का काम उनकी संस्था के द्वारा किया जाएगा.
सवाल: इस कार्य के लिए आपको कहां-कहां सम्मान मिला और सबसे बड़ा सम्मान आप किसे समझते हैं.
जवाब: करमजीत कौर ने बताया कि उन्हें सबसे बड़ा सम्मान तब मिला. जब इस कार्य के लिए शहर के कई बुद्धिजीवियों ने उन्हें सेनेटरी पैड पहुंचा कर मदद की. उन्होंने बताया कि शहर के कई गणमान्य नागरिकों खासकर पुरुषों ने भी इस माहवारी जैसी गंभीर बीमारी से बस्तर के ग्रामीण अंचलों के युवती और महिलाओं को बचाने के लिए आगे आए और नि:शुल्क उन्हें सेनेटरी पैड उपलब्ध कराया और इन्हीं सेनेटरी पैड को गांव गांव तक नि:शुल्क वितरण करने का काम उनकी संस्था ने किया. उन्होंने बताया कि आज भी बस्तर के कई ऐसे लोग हैं जो पूरी तरह से नि:शुल्क उन्हें सेनेटरी पैड उपलब्ध करवा रहे हैं ताकि गांव गांव तक स्कूली बालिकाओं और महिलाओं तक यह पैड पहुंच सके और किसी भी महिला या युवती को गंदे कपड़े और राख का इस्तेमाल ना करना पड़े.
उन्होंने बताया कि उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर नेशनल वूमेन एक्सीलेंस अवार्ड से सम्मान किया गया जो उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण दिन था. इसके अलावा प्रदेश से लेकर स्थानीय जिला प्रशासन और कई समाजसेवी संगठनों ने उनका सम्मान किया. उन्होंने बताया की यह सम्मान ग्रामीण अंचलों के महिलाओं और युवतियों का सम्मान है. जिन्होंने इस कार्य के लिए उनका भरपूर साथ दिया.
समाजसेवी करमजीत कौर केवल माहवारी स्वच्छता के लिए महिलाओं को जागरूक करने और नि:शुल्क सेनेटरी पैड उपलब्ध कराने का ही काम नहीं करती बल्कि महिला अधिकारों के लिए भी लगातार वे पीड़ित महिलाओं के साथ काम कर रहे हैं. यही वजह है कि पूरे बस्तर में इन्हें आयरन लेडी के नाम से जाना जाता है.