इस तालाब को बचाने के लिए जन आंदोलन मंच ने इसका बीड़ा उठाया है. दलपत सागर में पसरी गंदगी और जलकुंभी को हटाने के लिए जनमंच के लोगों के साथ ही बड़ी संख्या में शहरवासी श्रमदान कर रहे हैं. मंगलवार से यहां हो रहे सफाई अभियान में जन आंदोलन मंच के लोगों ने अपने पैसे खर्च कर जेसीबी मशीनों को इस सफाई अभियान में लगाया है.
भू-माफियाओं का है कब्जा
जनमंच के अध्यक्ष संजीव शर्मा ने बताया कि ये तालाब राजा दलपत देव के नाम से जाना जाता है. ये तालाब बस्तर रियासत काल का एकमात्र तालाब है जो पूरे प्रदेश में मशहूर है. बावजूद इसके प्रशासन ने इस ऐतिहासिक तालाब को विलुप्ती की कगार पर छोड़ दिया है.
इसके संवर्धन के नाम पर हर साल निगम और जिला प्रशासन करोड़ों रुपए खर्च करने का दावा करती है, लेकिन इसके खर्चे सिर्फ कागजों में ही दिखाए जाते हैं. नतीजा इस सागर की स्थिति बद से बदतर हो गई है. यही नहीं 700 एकड़ में फैले इस तालाब पर भू माफियाओं ने भी अपना कब्जा जमा रखा है, जिससे ये तालाब सिर्फ 350 एकड़ में ही सीमट कर रह गया है.
अस्तित्व को बचाने के लिए लगातार हो रहे प्रयास
ये ऐतिहासिक तालाब भू-माफियाओं के कब्जे, पसरी गंदगी और जलकुंभी की वजह से विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गया है. जन आंदोलन मंच के अध्यक्ष ने कहा कि जब तक प्रशासन इस सागर के अस्तित्व को बचाने के लिए गंभीर नहीं हो जाता तब तक मंच के लोग व शहर वासियों के साथ मिलकर सफाई अभियान जारी रखेंगे.
बस्तर के रियासत कालीन तालाब में पसरी गंदगी, भू-माफिया भी हैं एक्टिव, प्रशासन ले रहा चैन की नींद
जगदलपुर: बस्तर के रियासत कालीन तालाब दलपत सागर का अस्तित्व नगर-निगम और जिला प्रशासन की अनदेखी के चलते गंदगी और जलकुंभी की भेंट चढ़ गया है. सागर के आसपास पसरी गंदगी और जलकुंभी से यह ऐतिहासिक सरोवर सीमटने की कगार पर है.
इस तालाब को बचाने के लिए जन आंदोलन मंच ने इसका बीड़ा उठाया है. दलपत सागर में पसरी गंदगी और जलकुंभी को हटाने के लिए जनमंच के लोगों के साथ ही बड़ी संख्या में शहरवासी श्रमदान कर रहे हैं. मंगलवार से यहां हो रहे सफाई अभियान में जन आंदोलन मंच के लोगों ने अपने पैसे खर्च कर जेसीबी मशीनों को इस सफाई अभियान में लगाया है.
भू-माफियाओं का है कब्जा
जनमंच के अध्यक्ष संजीव शर्मा ने बताया कि ये तालाब राजा दलपत देव के नाम से जाना जाता है. ये तालाब बस्तर रियासत काल का एकमात्र तालाब है जो पूरे प्रदेश में मशहूर है. बावजूद इसके प्रशासन ने इस ऐतिहासिक तालाब को विलुप्ती की कगार पर छोड़ दिया है.
इसके संवर्धन के नाम पर हर साल निगम और जिला प्रशासन करोड़ों रुपए खर्च करने का दावा करती है, लेकिन इसके खर्चे सिर्फ कागजों में ही दिखाए जाते हैं. नतीजा इस सागर की स्थिति बद से बदतर हो गई है. यही नहीं 700 एकड़ में फैले इस तालाब पर भू माफियाओं ने भी अपना कब्जा जमा रखा है, जिससे ये तालाब सिर्फ 350 एकड़ में ही सीमट कर रह गया है.
अस्तित्व को बचाने के लिए लगातार हो रहे प्रयास
ये ऐतिहासिक तालाब भू-माफियाओं के कब्जे, पसरी गंदगी और जलकुंभी की वजह से विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गया है. जन आंदोलन मंच के अध्यक्ष ने कहा कि जब तक प्रशासन इस सागर के अस्तित्व को बचाने के लिए गंभीर नहीं हो जाता तब तक मंच के लोग व शहर वासियों के साथ मिलकर सफाई अभियान जारी रखेंगे.
Body:वो1- स्वास्थ विभाग के अधिकारी ने बताया कि पिछले कुछ दिनों से प्रदेश में मिलावटी दूध के बड़े पैमाने पर बेचने की शिकायत मिल रही थी ।जिसके बाद हर जिले में हॉकर्स द्वारा बेचे जाने वाले दूध के सैंपलिंग की गई थी। जिसमें शहर के 5 हॉकर्स से दूध लेकर सैंपलिंग के लिए लैब भेजे गए थे। जिसमें 1 सैंपल की जांच रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि हॉकर्स से दूध का जो सैंपल लिया गया था वह मिक्स दूध था। और जांच में यह अवमानक पाया गया है । अधिकारी ने बताया कि इस दूध में 4.5 फ़ीसदी वसा होनी चाहिए। लेकिन जांच के बाद इसमें केवल 2.2 फ़ीसदी वसा पाई गई है। हालांकि अभी अन्य 4 हॉकर्स से लिये गए दूध की सैम्पल की रिपोर्ट आनी बाकी है। जिसका इंतजार किया जा रहा है। लेकिन पहले सैंपल में मिलावटी दूध की रिपोर्ट आने के बाद खाद्य सुरक्षा की टीम को अलर्ट करने के साथ आमजन को सचेत रहने के लिए कहा गया है। वहीं अन्य सैंपल के रिपोर्ट आने के बाद हॉकर्स के खिलाफ एसडीएम कोर्ट में वाद प्रस्तुत कर एवं उसकी जांच कर कार्यवाही करने की बात अधिकारी ने कही है। इधर मिलावटी दूध शहर में आने की सूचना के बाद से ही लोगों में हड़कंप मचा हुआ है।
बाईट1- डॉ देवेंद्र नाग, मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी बस्तर
Conclusion:वो फाइनल- जानकारी के मुताबिक बस्तर जिले में लगभग 15 हजार लीटर दूध की खपत प्रतिदिन हो रही है। जिले में इस समय सातों ब्लॉक में गायवंशी 573539 व भैसवंशिय 111404 मवेशी हैं । इसमें सबसे अधिक दूध की खपत जगदलपुर ब्लॉक में होती है । हालत यह है कि डेयरीयो की संख्या कम और दूध उत्पादन में कमी के बाद भी यहां पर हर साल होटल, रेस्टोरेंट और चाय ठेलों की संख्या बढ़ती जा रही है । जिसके चलते मिलावटी दूध का कारोबार लगातार बढ़ रहा है।