गरियाबंद: छत्तीसगढ़ में दिवाली का त्योहार नजदीक आते ही सुआ डांस करने वाली बालिकाओं की टोलियां अब शहर और गांव में नजर आने लगी है. ये युवतियों की टोली छत्तीसगढ़ की परंपरा को जिंदा रखा है. शहर के लोग सुआ नृत्य के बारे में ज्यादातर नहीं जानते, लेकिन गांव की बच्चियां आज भी दिवाली त्योहार के पहले सुआ नृत्य करने निकलती हैं.
दिवाली त्योहार में नृत्य के लिए जमीन पर बीच में एक टोकरी में नकली तोता और एक दीप जलाकर रखा जाता है. साथ ही गौरा-गौरी की प्रतिमा भी रखी जाती है. गांव के हर घर के दरवाजे पर यह बालिकाएं जाकर सुआ नृत्य करती हैं. वहां से कच्चा धान या कुछ दान प्राप्त कर लौटती हैं. दिनभर में एकत्रित राशि लेकर बाद में इसी राशि से गौरा- गौरी 2 दिन बाद पूजा कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है, जिस कार्यक्रम के लिए सजावट के लिए सामान इन पैसों से खरीदा जाता है.
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सुआ नृत्य करने वाली युवतियों की टोली
गरियाबंद के कई इलाकों में अब सुआ नृत्य की परंपरा धीरे-धीरे विलुप्त हो रहा है, तो वहीं कुछ जगहों पर अभी भी दिवाली पर ऐसी टोलियां नजर आती हैं. दिवाली के हफ्तेभर पहले से सुआ नृत्य करने वाली युवतियों की टोली निकला करती थी, लेकिन अब महज एक दिन पहले ही ऐसी टोलियां निकल रही है.
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नृत्य करती महिलाओं में आई कमी
बता दें कि इन टोलियों में शामिल युवतियों की संख्या भी अब पहले से कम हो चली है. पहले एक टोली में 12 से 15 युवतियां हुआ करती थी. अब चार-पांच बालिकाएं हैं. सुआ नृत्य की टोली बनाकर निकलती हैं. गौरा-गौरी की पूजा का मतलब भगवान शिव और पार्वती से जुड़ा माना जाता है. इस कार्यक्रम में शामिल बालिकाओं को भगवान अपना विशेष आशीर्वाद प्रदान करते हैं.