जिले के कोसमबड़ा गांव के इंद्रजीत सोरी और बागबाहरा की शांति माझी के बीच की ये प्रेम कहानी वैलेंटाइन-डे के दिन एक मिसाल बन गई है. इस प्रेम कहानी की शुरूआत एक रॉन्ग नंबर से हुई. एक दिन इंद्रजीत का फोन गलती से शांति को लग गया. इस तरह दोनों के बीच बातें शुरू हुई और फिर दोस्ती हो गई, जो धीरे-धीरे दोस्ती प्यार में बदल गई, लेकिन फिर आया कहानी में ट्विस्ट. प्रेमिका ने युवक को बताया कि वो दिव्यांग है और उसके दोनों हाथ नहीं है.
कहानी में आया ट्विस्ट
पहले तो इंद्रजीत को विश्वास नहीं हुआ, लेकिन फिर उसने शांति से मिलने की ठानी और 100 किलोमीटर दूर युवती के गांव जा पहुंचा. शांति के आत्मविश्वास को देखते हुए इंद्रजीत का प्यार उसके लिए और बढ़ गया. इसके बाद साथ जीने-मरने का वादा कर दोनों ने मंदिर में शादी कर ली. लेकिन अब इनकी परेशानियां और बढ़ने वाली थी.
परिजनों को नहीं था मंजूर
युवक के परिजनों को दोनों का रिश्ता मंजूर नहीं था. उन्होंने दोनों को अलग करने का का खूब प्रयास किया. वे इंद्रजीत को वापस उसके गांव ले आए और उसकी दूसरी शादी कराने का प्रयास किए. जब शांति को इस बात की जानकारी हुई, तो वह बागबाहरा थाने पहुंची. यहां उसे लिखित शिकायत देने को कहा गया. अपनी सहेलियों की मदद से शांति ने लिखित में शिकायत की, लेकिन फिर भी इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया.
थाना प्रभारी ने की मदद
इसके बाद भी शांति ने हार नहीं मानी और अपना प्यार पाने गरियाबंद जिले के छुरा थाने पहुंच गई. यहां थाना प्रभारी से उसने अपने सुहाग को दिलाने मिन्नतें की. थाना प्रभारी ने स्थितियों को देखते हुए युवक को और उसके परिजनों को बुलवाया. परिजनों को दिव्यांग बहू स्वीकार नहीं थी, लेकिन इंद्रजीत शांति के साथ ही अपना जीवन बिताना चाहता था. दोनों बालिग थे, इसलिए थाना प्रभारी ने परिजनों को दोनों को साथ रहने की समझाइश दी.
इसके बाद भी जब परिजनों ने दोनों को घर में रखने से इंकार कर दिया, तब युवक शांति को लेकर बागबाहरा के एक गांव चला गया. यहां वह मजदूरी कर किसी तरह से अपना परिवार चला रहा है. शांति के दोनों हाथ नहीं है, लेकिन उनकी ये कमी उनके कामों के आड़े नहीं आती, वो हाथों से करने वाले सभी काम अपने पैरों से बखूबी कर लेती हैं.
मिसाल है ये प्रेम कहानी
शांति मिसाल है, उन लोगों के लिए जो शारीरिक रूप से पूरी तरह सक्षम होने के बाद भी बहुत से काम नहीं करते हैं. ये सच्ची प्रेम कहानी पूरी दुनिया के लिए प्रेरणादायक है. सुनने वाले बस यही कहते हैं कि प्यार हो तो ऐसा. बड़ी बात यह है कि इतनी तकलीफों के बावजूद दिव्याग शांति अपने आप को खुशनसीब मानती हैं. कहते हैं कि प्यार कमियां नहीं देखता. जब प्यार हो जाता है, तो सौ तकलीफों के बाद भी एक दूसरे के सहारे जिंदगी आसान हो जाती है.