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SPECIAL: दर्द में सुपेबेड़ा, सियासत की नहीं, मरहम की जरूरत है

सुपेबेड़ा के लोगों के इलाज के लिए एम्स से विशेषज्ञों की टीम पहुंची थी, जहां सुपेबेड़ा गांव के 25 मरीजों ने अपना इलाज कराया, जिसमें से 15 किडनी पीड़ित थे.

दर्द में सुपेबेड़ा
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Published : Oct 20, 2019, 1:35 PM IST

Updated : Oct 28, 2019, 8:22 AM IST

गरियाबंद: जिले का सुपेबेड़ा गांव नहीं वो नरभक्षी इलाका है. जहां एक गुमनाम बीमारी लोगों की किडनियां खा जाती है और धीरे-धीरे उसे मौत के मुंह तक ले जाती है. इस बीमारी ने अब तक 71 लोगों को अपना शिकार बना लिया है. जिसमें से अभी हाल ही में 15 दिनों के अंदर 2 को लोगों की जान गयी है. वहीं गांव के तकरीब 200 लोग अभी भी इसकी गिरफ्त में है.

दर्द में सुपेबेड़ा, सियासत की नहीं, मरहम की जरूरत है

अनजान डर गुमनाम बीमारी का खौफ पीने के लिए मुकम्मल पानी की व्यवस्था नहीं, ऐसी कुछ बुनियादी जरुरतें हैं, जिनसे पूरा सुपेबेड़ा जूझ रहा है. पिछले कई साल से यहां के लोग एक-एक कर काल के गाल में समाते जा रहे हैं, जिसको देखते हुए स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव ने सुपेबेड़ा का दौरा किया, लोगों की समस्याओं को जाना और गांव में एम्स के डॉक्टरों की टीम भेजी है.

पानी में फ्लोराइड़ की ज्यादा मात्रा
वहीं एम्स के डायरेक्टर नितिन नागरकर का कहना है कि गांव के लगभग 25 मरीजों ने अपना इलाज कराया, जिनमें से 15 किडनी पीड़ित थे. साथ ही उन्होंने कहा कि गांव में पानी में फ्लोराइड़ की मात्रा ज्यादा है. जो लोगों को नुकसान पहुंचा रहा है. ग्रामीण खान-पान में ध्यान रखेंगे, तो काफी दद तक सुधार हो सकता है.

राज्यपाल केंद्र सरकार को लिखेंगी चिट्ठी
इस गुमनाम बीमारी से हो रही मौतों को लेकर सीएम बघेल ने कहा कि सुपेबेड़ा को लेकर हम भी चिंतित हैं, जिसके लिए एम्स से टीम भेजी गयी है. वहां के लोगों को ऐसा क्या है, जो लोगों को मौत के मुंह तक ले जा रही है, उसे सबको जानना है. वहीं राज्यपाल अनुसुइया उइके ने भी सुपेबेड़ा को लेकर चिंता जताते हुए केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखने की बात कही है.

गरियाबंद: जिले का सुपेबेड़ा गांव नहीं वो नरभक्षी इलाका है. जहां एक गुमनाम बीमारी लोगों की किडनियां खा जाती है और धीरे-धीरे उसे मौत के मुंह तक ले जाती है. इस बीमारी ने अब तक 71 लोगों को अपना शिकार बना लिया है. जिसमें से अभी हाल ही में 15 दिनों के अंदर 2 को लोगों की जान गयी है. वहीं गांव के तकरीब 200 लोग अभी भी इसकी गिरफ्त में है.

दर्द में सुपेबेड़ा, सियासत की नहीं, मरहम की जरूरत है

अनजान डर गुमनाम बीमारी का खौफ पीने के लिए मुकम्मल पानी की व्यवस्था नहीं, ऐसी कुछ बुनियादी जरुरतें हैं, जिनसे पूरा सुपेबेड़ा जूझ रहा है. पिछले कई साल से यहां के लोग एक-एक कर काल के गाल में समाते जा रहे हैं, जिसको देखते हुए स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव ने सुपेबेड़ा का दौरा किया, लोगों की समस्याओं को जाना और गांव में एम्स के डॉक्टरों की टीम भेजी है.

पानी में फ्लोराइड़ की ज्यादा मात्रा
वहीं एम्स के डायरेक्टर नितिन नागरकर का कहना है कि गांव के लगभग 25 मरीजों ने अपना इलाज कराया, जिनमें से 15 किडनी पीड़ित थे. साथ ही उन्होंने कहा कि गांव में पानी में फ्लोराइड़ की मात्रा ज्यादा है. जो लोगों को नुकसान पहुंचा रहा है. ग्रामीण खान-पान में ध्यान रखेंगे, तो काफी दद तक सुधार हो सकता है.

राज्यपाल केंद्र सरकार को लिखेंगी चिट्ठी
इस गुमनाम बीमारी से हो रही मौतों को लेकर सीएम बघेल ने कहा कि सुपेबेड़ा को लेकर हम भी चिंतित हैं, जिसके लिए एम्स से टीम भेजी गयी है. वहां के लोगों को ऐसा क्या है, जो लोगों को मौत के मुंह तक ले जा रही है, उसे सबको जानना है. वहीं राज्यपाल अनुसुइया उइके ने भी सुपेबेड़ा को लेकर चिंता जताते हुए केंद्र सरकार को चिट्ठी लिखने की बात कही है.

Intro:बीते हफ्ते भर से प्रदेश भर में सबसे ज्यादा चर्चा अगर किसी विषय पर हुई है तो वह सुपेबेड़ा के मुद्दे पर 20 दिन में 2 मौतों के बाद सुपर बेड़ा एक बार फिर चर्चा का विषय बन गया है इसे लेकर अब राजनीत भी होने लगी है प्रदेश भर में जिसकी का सबसे अधिक चर्चा आखिर क्या सोचते हैं वहां के लोग क्या है विशेषज्ञ डॉक्टरों की वहां के बारे में राय कैसे सुधरेंगे सुपेबेड़ा में हालात और आखिर कब रूकेगा मौतों का सिलसिला इन सभी विषयों पर बारीकी से चर्चा करने के लिए ईटीवी भारत की टीम आज सुपेबेड़ा गांव पहुंची आज ही एम्स के चिकित्सकों की टीम भी गांव पहुंची हुई थी हमने पहले तो गांव का जायजा लिया 3 दिन पहले हुई मौत का मातम गांव में साफ नजर आया मृतक के घर से रिश्तेदार महिलाओं की कतार निकल रही थी जो नहावन के लिए तालाब जा रही थी सिसकियां मारती मृतक के परिवार ज नहावन में जाति महिलाओं के पीछे चल रहे थे


Body:इसके बाद हमने कुछ गांव वालों से बात की तो गांव वाले सरकार के प्रयासों से असंतुष्ट नजर आए वह साफ कहते हैं कि पिछले अनुभव अच्छे नहीं हैं वहां मेकाहारा में कोई ध्यान नहीं देता था इसलिए अब वह इलाज कराने नहीं जाना चाहते थे मगर शायद अब एम्स में इलाज कराने जाने पर गांव वाले विचार करने लगे हैं

[ ] 121--- सुपेबेड़ा के ग्रामीण
इन सबके बीच बाहर से पहुंची स्वास्थ्य विभाग की और एम्स के डॉक्टरों की टीम ने लगभग 3 घंटा शिविर लगाने पर भी जब केवल 25 लोग ही इलाज कराने पहुंचे तो गांव के घर घर जाने का फैसला लिया विशेषज्ञ डॉक्टर धूप में निकले पैदल चले सड़क किनारे बैठे लोगों से चर्चा की किडनी पीड़ितों का पता लगाया और फिर किडनी पीड़ितों के घर घर जाकर उनकी पुरानी रिपोर्ट आदि जांच की गांव की स्थितियां भी देखें जिसके बाद काफी बारीकी से विचार विमर्श करने के बाद टीम के सबसे वरिष्ठ डॉक्टर और एम्स के डायरेक्टर डॉ नितिन नागरकर ईटीवी भारत से खास चर्चा की ईटीवी भारत ने अपने दर्शकों के लिए बारीकी से सुपेबेड़ा की समस्या को समझा क्या कहना है एम्स के डायरेक्टर का आप खुद सुनिए

121-- डॉ नितिन नागरकर
एम्स के डायरेक्टर
दो अन्य डॉक्टरों की बाइट जो अलग गई है

इन सबके बीच हमने देखा स्कूल से लौटते बच्चों के चेहरे पर भी मायूसी छाई थी लगा जैसे वे अपने गांव में हो रही इन मौतों को लेकर डरे सहमे हैं हमने जब उनसे चर्चा की तो साफ नजर आया की मजबूरी में वेब उसी स्रोत का पानी पी रहे थे जहां ता पानी पीकर गांव वाले बीमार पड़े थे अब उन्हें भी अपने स्वास्थ्य को लेकर चिंता होने लगी है


121--- स्कूली बच्चे




Conclusion:इन सभी परिस्थितियों को देखकर लगा जैसे सुपेबेड़ा खुद अपने हालातों पर आंसू बहा रहा है हर कुछ दिनों में इसके नाम को लेकर नए-नए विवाद जन्म ले रहे हैं यह सब होता देख खुद सुपर बेड़ा के लोग परेशान हो रहे हैं कि आखिर और कब तक इनके यहां हो रही मौतें केवल सुर्खियां बनेंगी कब तक सुपेबेड़ा के नाम का उपयोग देवभोग से लेकर राजधानी तक के नेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए करते रहेंगे आखिर कब कोई इनके यहां हो रही मौतों को रोक पाएगा आखिर कब थमेगा तिल तिल कर मरते लोगों का सिलसिला आखिर कब मिलेगा 70 से अधिक विधवाओं को इंसाफ आखिर कब मूलभूत सुविधाओं को तरसते इस गांव को मिलेगा स्वास्थ्य जीवन और कब तक करना होगा इंतजजार

फरहाज़ मेमन ईटीवी भारत गरियाबंद



Last Updated : Oct 28, 2019, 8:22 AM IST
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