गरियाबंद: नदी को जीवनदायनी कहा जाता है. हमारे मुल्क में तो इसे ईश्वर का दर्जा दिया गया है. लेकिन जिंदगी देने वाली नदी जब अपना इरादा बदल लेती है तो इसका अंजाम क्या होता उसे भला देवभोग के 17 गांव के किसानों से बेहतर और कौन बता सकता है.
तेल नदी के किनारे बसे करीब 17 गांव इन दिनों एक अजीब लेकिन खौफनाक समस्या से जूझ रहे हैं. दरअसल नदी किनारे बसे होने की वजह से इन गांवों में जमीन का कटाव बेहद ही तेजी से हो रहा है और इसकी वजह से यहां के किसानों की पूंजी उनकी जमीन नदी में समाती जा रही है.
सिस्टम से गुहार
जो जमीन थी उसे तो नदी ने अपने आगोश में ले लिया. पीड़ित किसानों ने सिस्टम से गुहार लगाई, लेकिन उसके नुमाइंदों के कान में न जाने कौन सा मर्ज हुआ कि, उन तक आवाम की आवाज का पहुंचना मुश्किल हो गया है. पहले कुदरत की मार और फिर सिस्टम के तिरस्कार का नतीजा यह हुआ कि जो कभी अच्छे खासे असामी हुआ करते थे, इलाके में जिनके नाम का डंका बजता था, उन्हें पेट पालने के लिए दूसरे राज्य में मजदूरी करनी पड़ रही है.
15 गांव के करीब 400 किसान परेशान
यह हाल कोई एक-दो किसानों का नहीं बल्कि 15 गांव के करीब 400 अन्नदाताओं का है. सबसे ज्यादा नुकसान करचिया गांव के किसानों को उठाना पड़ा है. यहां के करीब 100 किसानों की सवा सौ एकड़ जमीन कटाव में बह गई. वहीं अफसर कटाव की बात को मानते हुए ऐसे हालत में कई तरह की सरकारी सुविधा देने का दावा भी कर रहे हैं. लेकिन ये दावे हकीकत कब बनेंगे यह तो ईश्वर ही बता सकता है.
सरकारें नहीं दे रहीं ध्यान
एक ओर जहां सूबे की नई नवेली सरकार अपने छह महीने के कार्यकाल का ढिंढोरा पीट रही है. पिछली सरकार ने 10 साल तक सूबे में विकास की गंगा बहाने की मुनादी कराई. लेकिन अपने जिगर के टुकड़े पानी में समाता देख तिल-तिलकर मरने को मजबूर गरियाबंद के इन मजबूर अन्नदाता की सुध लेने वाला कोई नहीं है.