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SPECIAL: जमीन निगलती जा रही नदी, मजदूरी करने को मजबूर अन्नदाता

तेल नदी के किनारे बसे करीब 17 गांव इन दिनों एक अजीब लेकिन खौफनाक समस्या से जूझ रहे हैं.

तेल नदी
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Published : Jun 18, 2019, 11:20 PM IST

गरियाबंद: नदी को जीवनदायनी कहा जाता है. हमारे मुल्क में तो इसे ईश्वर का दर्जा दिया गया है. लेकिन जिंदगी देने वाली नदी जब अपना इरादा बदल लेती है तो इसका अंजाम क्या होता उसे भला देवभोग के 17 गांव के किसानों से बेहतर और कौन बता सकता है.

नदी ने इस क्षेत्र के किसानों को बर्बाद कर दिया

तेल नदी के किनारे बसे करीब 17 गांव इन दिनों एक अजीब लेकिन खौफनाक समस्या से जूझ रहे हैं. दरअसल नदी किनारे बसे होने की वजह से इन गांवों में जमीन का कटाव बेहद ही तेजी से हो रहा है और इसकी वजह से यहां के किसानों की पूंजी उनकी जमीन नदी में समाती जा रही है.

सिस्टम से गुहार

जो जमीन थी उसे तो नदी ने अपने आगोश में ले लिया. पीड़ित किसानों ने सिस्टम से गुहार लगाई, लेकिन उसके नुमाइंदों के कान में न जाने कौन सा मर्ज हुआ कि, उन तक आवाम की आवाज का पहुंचना मुश्किल हो गया है. पहले कुदरत की मार और फिर सिस्टम के तिरस्कार का नतीजा यह हुआ कि जो कभी अच्छे खासे असामी हुआ करते थे, इलाके में जिनके नाम का डंका बजता था, उन्हें पेट पालने के लिए दूसरे राज्य में मजदूरी करनी पड़ रही है.

15 गांव के करीब 400 किसान परेशान

यह हाल कोई एक-दो किसानों का नहीं बल्कि 15 गांव के करीब 400 अन्नदाताओं का है. सबसे ज्यादा नुकसान करचिया गांव के किसानों को उठाना पड़ा है. यहां के करीब 100 किसानों की सवा सौ एकड़ जमीन कटाव में बह गई. वहीं अफसर कटाव की बात को मानते हुए ऐसे हालत में कई तरह की सरकारी सुविधा देने का दावा भी कर रहे हैं. लेकिन ये दावे हकीकत कब बनेंगे यह तो ईश्वर ही बता सकता है.

सरकारें नहीं दे रहीं ध्यान

एक ओर जहां सूबे की नई नवेली सरकार अपने छह महीने के कार्यकाल का ढिंढोरा पीट रही है. पिछली सरकार ने 10 साल तक सूबे में विकास की गंगा बहाने की मुनादी कराई. लेकिन अपने जिगर के टुकड़े पानी में समाता देख तिल-तिलकर मरने को मजबूर गरियाबंद के इन मजबूर अन्नदाता की सुध लेने वाला कोई नहीं है.

गरियाबंद: नदी को जीवनदायनी कहा जाता है. हमारे मुल्क में तो इसे ईश्वर का दर्जा दिया गया है. लेकिन जिंदगी देने वाली नदी जब अपना इरादा बदल लेती है तो इसका अंजाम क्या होता उसे भला देवभोग के 17 गांव के किसानों से बेहतर और कौन बता सकता है.

नदी ने इस क्षेत्र के किसानों को बर्बाद कर दिया

तेल नदी के किनारे बसे करीब 17 गांव इन दिनों एक अजीब लेकिन खौफनाक समस्या से जूझ रहे हैं. दरअसल नदी किनारे बसे होने की वजह से इन गांवों में जमीन का कटाव बेहद ही तेजी से हो रहा है और इसकी वजह से यहां के किसानों की पूंजी उनकी जमीन नदी में समाती जा रही है.

सिस्टम से गुहार

जो जमीन थी उसे तो नदी ने अपने आगोश में ले लिया. पीड़ित किसानों ने सिस्टम से गुहार लगाई, लेकिन उसके नुमाइंदों के कान में न जाने कौन सा मर्ज हुआ कि, उन तक आवाम की आवाज का पहुंचना मुश्किल हो गया है. पहले कुदरत की मार और फिर सिस्टम के तिरस्कार का नतीजा यह हुआ कि जो कभी अच्छे खासे असामी हुआ करते थे, इलाके में जिनके नाम का डंका बजता था, उन्हें पेट पालने के लिए दूसरे राज्य में मजदूरी करनी पड़ रही है.

15 गांव के करीब 400 किसान परेशान

यह हाल कोई एक-दो किसानों का नहीं बल्कि 15 गांव के करीब 400 अन्नदाताओं का है. सबसे ज्यादा नुकसान करचिया गांव के किसानों को उठाना पड़ा है. यहां के करीब 100 किसानों की सवा सौ एकड़ जमीन कटाव में बह गई. वहीं अफसर कटाव की बात को मानते हुए ऐसे हालत में कई तरह की सरकारी सुविधा देने का दावा भी कर रहे हैं. लेकिन ये दावे हकीकत कब बनेंगे यह तो ईश्वर ही बता सकता है.

सरकारें नहीं दे रहीं ध्यान

एक ओर जहां सूबे की नई नवेली सरकार अपने छह महीने के कार्यकाल का ढिंढोरा पीट रही है. पिछली सरकार ने 10 साल तक सूबे में विकास की गंगा बहाने की मुनादी कराई. लेकिन अपने जिगर के टुकड़े पानी में समाता देख तिल-तिलकर मरने को मजबूर गरियाबंद के इन मजबूर अन्नदाता की सुध लेने वाला कोई नहीं है.

Intro:किसानों के सामने रोजी रोटी का संकट

किसान बने मजदूर,
17 गांव की 400 एकड़ जमीन मिल गई तेल नदी,

गकटाव रोकने कोई प्रबंध नहीं

एंकर-- गरियाबंद जिले के देवभोग इलाके के 17 गांवों के इन किसानों की तकलीफ देखकर आपका भी दिल पसीज जाएगा कभी खुद की जमीन पर खेती करने वाले किसान अब तेल नदी द्वारा उनकी जमीन बहा ले जाने के चलते अब दूसरों के पास मजदूरी करने को मजबूर है सूचना यह भी है कि जमीन वह जाने के बाद कुछ किसानों ने तो रोजी रोटी के लिए उड़ीसा पलायन भी कर दिया..


Body:वीओ--गरियाबंद में तेल नदी के किनारे बसे 15 गॉव के 400 किसानों के सामने रोजी रोटी का संकट खडा हो गया है, ये किसान अब मजदूर बनने के कागार पर पहुंच चुके है, किसानों के पास अब खेती करने लायक जमीन नही बची, किसानों की जमीन का तेल नदी के बहाव में कटाव हो चुका है, उनकी जमीन अब नदी की शक्ल में तब्दील हो चुकी है, सबसे ज्यादा नुकसान करचिया गॉव के किसानों को हुआ है, यहॉ के लगभग सौं किसानों की सवा सौं एकड जमीन का कटाव हो चुका है, ग्रामीणों के मुताबिक पिछले 10 साल से जमीन का कटाव जारी है, इसको रोकने और मुवावजे के लिए उन्होंने कई बार राजस्व विभाग के अधिकारियों को अवगत कराया मगर उनकी बात को हमेशा अनसुना कर दिया गया, किसानों ने बताया कि अब उनके पास खेती करने लायक जमीन नही बची, जिसके चलते उनकी आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर हो चुकी है, कुछ किसान तो दुसरें प्रदेशों में पलायन तक करने पर मजबूर है, वही राजस्व विभाग के जिम्मेदार अधिकारी कटाव होने की बात स्वीकार कर रहे है, साथ ही ऐसी स्थिति में शासन द्वारा किसानों को कई प्रकार की सुविधाएं मिलने का दावा भी कर रहे है मगर गरियाबंद के इन किसानों को 10 साल भी इन योजनाओं का लाभ नही मिल पाया।
Conclusion:बाइट 1---किसान..........
बाइट 2---किसान..........
बाइट 3---किसान.........
बाइट 4--केके बेहार, अपर कलेक्टर..............
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