गरियाबंद: एक साथ कई मुश्किलें आने पर अक्सर इंसान टूट जाता है. लेकिन अगर हिम्मत साथ और हौसले बुलंद हों तो बड़ी से बड़ी परेशानी हल हो जाती है. गरियाबंद के अशोक दिव्यांग हैं लेकिन यकीन मानिए उनकी जिंदगी हर उस शख्स के लिए प्रेरणा है जो छोटी सी दिक्कत आने पर हार मान लेता है.
गरियाबंद के लाटापारा गांव के अशोक सोनी है. अशोक का बायां हाथ काट दिया गया है, दायां हाथ काम नहीं करता और दायां पैर भी खराब हो चुका है. इलाज में सबकुछ बिक जाने के बाद दाने-दाने को मोहताज होने पर अशोक के पिता ने खुदकुशी कर ली और पत्नी ने उसकी दिव्यांगता की वजह से उसे छोड़ दिया.
हाईटेंशन तार की चपेट में आने से बदला जीवन
कभी एक अच्छे इलेक्ट्रीशियन रहे अशोक की मुसीबतें यहीं खत्म नहीं हुई. 2011 में काम के दौरान बिजली की हाईटेंशन तार की चपेट में आने से उसकी जिंदगी में एक के बाद एक मुसीबतें आती रहीं. 4 साल तक अशोक बिस्तर पर कराहता रहा. इलाज के लिए पैसा नहीं जुटा पाने की वजह से घावों में दर्द होने पर दवाई की जगह पिता को शराब पिलाकर बेटे को उसका गम भुलाने के लिए मजबूर होना पड़ा. पिता की मृत्यु के बाद शासन ने अशोक का इलाज कराया, जिसके बाद उसने खुद के पैरों पर खड़ा होने का सपना देखना शुरू कर दिया.
बूढ़ी मां का सहारा है अशोक
जब हालात कुछ ठीक हुए तो अशोक ने दोस्तों से एक लाख रुपये उधार लेकर अपनी झोपड़ी तोड़कर एक छोटा सा घर बनवा लिया और वहीं किराने की दुकान शुरू कर दी. बूढ़ी मां का अब अशोक ही इकलौता सहारा है. मां के बुढ़ापे की लाठी बनने की कोशिश में जुटे अशोक को प्रधानमंत्री आवास योजना और दिव्यांगता का लाभ नहीं मिलने पर कोई मलाल नहीं है.
लोगों के लिए बना मिसाल
अशोक ने जिस तरह एक लंबे संघर्ष के बाद अपनी जिंदगी को पटरी पर लाने की कोशिश की है वह वाकई तारीफ के काबिल है. अशोक का ये संघर्ष आम लोगों को ये सिखाता है कि शारिरिक असक्षमता को आप अपनी परेशानी न समझें बल्कि आप मन से स्वस्थ और जिंदादिल बनिए.