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SPECIAL: मिलिए उस दिव्यांग से, जिसकी जिंदगी आपको जीना सिखा देगी

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Published : Dec 4, 2019, 8:15 PM IST

गरियाबंद के लाटापारा गांव के अशोक सोनी की कहानी कुछ ऐसी है जो आपके दिल और दिमाग को ये सोचने पर मजबूर कर देगी कि वाकई जीवन के कठिन पड़ाव में इंसान को खुद के लिए ढाल बनकर खड़े रहना चाहिए.

physically challenged ashok soni
दिव्यांग अशोक सोनी

गरियाबंद: एक साथ कई मुश्किलें आने पर अक्सर इंसान टूट जाता है. लेकिन अगर हिम्मत साथ और हौसले बुलंद हों तो बड़ी से बड़ी परेशानी हल हो जाती है. गरियाबंद के अशोक दिव्यांग हैं लेकिन यकीन मानिए उनकी जिंदगी हर उस शख्स के लिए प्रेरणा है जो छोटी सी दिक्कत आने पर हार मान लेता है.

दिव्यांग अशोक बना लोगों के लिए मिसाल

गरियाबंद के लाटापारा गांव के अशोक सोनी है. अशोक का बायां हाथ काट दिया गया है, दायां हाथ काम नहीं करता और दायां पैर भी खराब हो चुका है. इलाज में सबकुछ बिक जाने के बाद दाने-दाने को मोहताज होने पर अशोक के पिता ने खुदकुशी कर ली और पत्नी ने उसकी दिव्यांगता की वजह से उसे छोड़ दिया.

हाईटेंशन तार की चपेट में आने से बदला जीवन
कभी एक अच्छे इलेक्ट्रीशियन रहे अशोक की मुसीबतें यहीं खत्म नहीं हुई. 2011 में काम के दौरान बिजली की हाईटेंशन तार की चपेट में आने से उसकी जिंदगी में एक के बाद एक मुसीबतें आती रहीं. 4 साल तक अशोक बिस्तर पर कराहता रहा. इलाज के लिए पैसा नहीं जुटा पाने की वजह से घावों में दर्द होने पर दवाई की जगह पिता को शराब पिलाकर बेटे को उसका गम भुलाने के लिए मजबूर होना पड़ा. पिता की मृत्यु के बाद शासन ने अशोक का इलाज कराया, जिसके बाद उसने खुद के पैरों पर खड़ा होने का सपना देखना शुरू कर दिया.

बूढ़ी मां का सहारा है अशोक
जब हालात कुछ ठीक हुए तो अशोक ने दोस्तों से एक लाख रुपये उधार लेकर अपनी झोपड़ी तोड़कर एक छोटा सा घर बनवा लिया और वहीं किराने की दुकान शुरू कर दी. बूढ़ी मां का अब अशोक ही इकलौता सहारा है. मां के बुढ़ापे की लाठी बनने की कोशिश में जुटे अशोक को प्रधानमंत्री आवास योजना और दिव्यांगता का लाभ नहीं मिलने पर कोई मलाल नहीं है.

लोगों के लिए बना मिसाल
अशोक ने जिस तरह एक लंबे संघर्ष के बाद अपनी जिंदगी को पटरी पर लाने की कोशिश की है वह वाकई तारीफ के काबिल है. अशोक का ये संघर्ष आम लोगों को ये सिखाता है कि शारिरिक असक्षमता को आप अपनी परेशानी न समझें बल्कि आप मन से स्वस्थ और जिंदादिल बनिए.

गरियाबंद: एक साथ कई मुश्किलें आने पर अक्सर इंसान टूट जाता है. लेकिन अगर हिम्मत साथ और हौसले बुलंद हों तो बड़ी से बड़ी परेशानी हल हो जाती है. गरियाबंद के अशोक दिव्यांग हैं लेकिन यकीन मानिए उनकी जिंदगी हर उस शख्स के लिए प्रेरणा है जो छोटी सी दिक्कत आने पर हार मान लेता है.

दिव्यांग अशोक बना लोगों के लिए मिसाल

गरियाबंद के लाटापारा गांव के अशोक सोनी है. अशोक का बायां हाथ काट दिया गया है, दायां हाथ काम नहीं करता और दायां पैर भी खराब हो चुका है. इलाज में सबकुछ बिक जाने के बाद दाने-दाने को मोहताज होने पर अशोक के पिता ने खुदकुशी कर ली और पत्नी ने उसकी दिव्यांगता की वजह से उसे छोड़ दिया.

हाईटेंशन तार की चपेट में आने से बदला जीवन
कभी एक अच्छे इलेक्ट्रीशियन रहे अशोक की मुसीबतें यहीं खत्म नहीं हुई. 2011 में काम के दौरान बिजली की हाईटेंशन तार की चपेट में आने से उसकी जिंदगी में एक के बाद एक मुसीबतें आती रहीं. 4 साल तक अशोक बिस्तर पर कराहता रहा. इलाज के लिए पैसा नहीं जुटा पाने की वजह से घावों में दर्द होने पर दवाई की जगह पिता को शराब पिलाकर बेटे को उसका गम भुलाने के लिए मजबूर होना पड़ा. पिता की मृत्यु के बाद शासन ने अशोक का इलाज कराया, जिसके बाद उसने खुद के पैरों पर खड़ा होने का सपना देखना शुरू कर दिया.

बूढ़ी मां का सहारा है अशोक
जब हालात कुछ ठीक हुए तो अशोक ने दोस्तों से एक लाख रुपये उधार लेकर अपनी झोपड़ी तोड़कर एक छोटा सा घर बनवा लिया और वहीं किराने की दुकान शुरू कर दी. बूढ़ी मां का अब अशोक ही इकलौता सहारा है. मां के बुढ़ापे की लाठी बनने की कोशिश में जुटे अशोक को प्रधानमंत्री आवास योजना और दिव्यांगता का लाभ नहीं मिलने पर कोई मलाल नहीं है.

लोगों के लिए बना मिसाल
अशोक ने जिस तरह एक लंबे संघर्ष के बाद अपनी जिंदगी को पटरी पर लाने की कोशिश की है वह वाकई तारीफ के काबिल है. अशोक का ये संघर्ष आम लोगों को ये सिखाता है कि शारिरिक असक्षमता को आप अपनी परेशानी न समझें बल्कि आप मन से स्वस्थ और जिंदादिल बनिए.

Intro:स्लग---दिव्यांग के हौसलों की उडान

एंकर---एक साथ मुसीबतों का पहाड टुटने पर आम आदमी अकसर हार मान लेता है मगर गरियाबंद के एक दिव्यांग ने लगातार मुसीबतें झेलने के बाद भी ना केवल खुद को संभाला बल्कि दुसरों के लिए प्रेरणा का काम भी किया है। इसकी जिंदगी में आई लगातार परेशानियों को जानकर किसी पत्थर दिल का भी दिल पसीज जाएगा
Body:वीओ 1---कुर्सी पर बैठा ये सख्स गरियाबंद जिले के लाटापारा गांव का अशोक सोनी है, अशोक का बायां हाथ काट दिया गया है, दायां हाथ काम नही करता और दायां पैर भी खराब हो गया है, ईलाज में सबकुछ बिक जाने के बाद दाने दाने को मोहताज होने पर बाप ने खुदकुशी कर ली और पत्नि बेकार समझकर छोड कर चली गयी, कभी एक अच्छा इलेक्ट्रीशियन रहे अशोक की मुसीबतें यही खत्म नही हुयी, 2011 में काम के दौरान बिजली की हाईटेंशन तार की चपेट में आने से उसकी जिंदगी में एक के बाद एक मुसीबतें आती रही, 4 साल तक अशोक बिस्तर पर कराहता रहा, ईलाज के लिए पैसा नही जुटा पाये तो घावों में दर्द होने पर दवाई की जगह दारु पिलाकर दर्द का गम भूलाने पर मजबूर होना पडा, शासन ने ईलाज कराया तो अशोक ने खुद के पैरो पर खडा होने का सपना देखना भी शुरु कर दिया।
बाइट 1---अशोक सोनी..............
वीओ 2----कुछ ठीक हुआ तो अशोक ने दोस्तों से एक लाख रुपये उधारी लेकर झोपडी तोडकर एक छोटा सा घर बनाया और उसी में किराना दुकान शुरु कर दी, बुढी मां का अब वही इकलौता सहारा है, मां के बुढापे की लाठी बनने की कौशिश में जुटे अशोक को पीएम आवास योजना और दिव्यांगता का लाभ नही मिलने का कोई मलाल नही है।
बाइट 2---अशोक सोनी, पीडित............
Conclusion:फाईनल वीओ---अशोक ने जिस तरह एक लंबे संघर्ष के बाद अपनी जिंदगी को पटरी पर लाने की कौशिश की है वह वाकई काबिले तारिफ है, अशोक का ये संघर्ष दुसरे लोगो के लिए भी प्रेरणा का काम करेगा।
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