गरियाबंद: मैनपुर ब्लॉक के तौरंगा गांव में मौजूद कुएं का पानी पीने आस-पास के लोग ही नहीं बल्कि दूर-दूर से लोग आते हैं. इतना ही नहीं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तक इसके पानी के कद्रदान रहे हैं और शायद यही वजह है कि गांव और उसके आस-पास के लोग इसे अमृत कुंड के तौर पर जानते हैं.
'कभी नहीं सूखता कुएं का पानी'
गांववालों का कहना है कि, इस कुएं का पानी मीठा और एकदम मिनरल वाटर की तरह साफ है. इस लोगों का यह भी कहना है कि चाहे इलाके में अकाल ही क्यों न पड़ जाए लेकिन इस कुएं का पानी कभी सूखता नहीं.
'दूर होती है पेट की बीमारी'
इस कुएं को सन 1818 में ब्रिटिश हुकूमत के वक्त बनवाया गया था. ग्रामीण बताते हैं कि इस कुएं का पानी औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण अंग्रेज अपने बड़े अधिकारियों के लिए इसे भेजते थे और बड़े अधिकारी भी ऐसा मानते थे कि यहां का पानी पीने से वे कम से कम पेट की बीमारी से हमेशा दूर रहते थे.
नहीं होती कुएं की सफाई
इस पानी की खासियत यह है कि वो गंदा नहीं होता, चाहे इसे बोतल में बंद कर कितने भी दिनों तक रख सकते हैं, क्योंकि ये न कभी गंदा नहीं होता. इस कुएं की सफाई नहीं की जाती, बस कभी-कभार इसपर पड़ी पत्तियों को बाहर निकाला जाता है.
इस पानी से नहाने से दूर होता है चर्म रोग
ऐसा कहा जाता है कि इस कुएं के पानी से नहाने से चर्म रोग और पीने से पेट संबंधी रोग ठीक हो जाता है. यही वजह है कि इस कुएं से आज भी लोग भरकर अपने साथ ले जाते हैं. 1993 में ओडिशा में कालाहांडी ने चुनाव प्रचार कर वापस जाते समय पूर्व प्रधामंत्री अटल बिहारी वाजपेयी गांव में अंग्रेजों की ओर से बनवाए रेस्ट हाउस में रुके थे और जब लोगों ने इस कुएं के पानी की खासियत ग्रामीणों की ओर से उन्हें बताई गई. अटल जी इससे इतने प्रभावित हुए कि, यहां से जाते वक्त वो अपने साथ यहां का पानी लेकर गए थे.
ऐतिहासिक धरोहर मानते हैं लोग
201 साल पुराना यह कुआं अपने आप में इतिहास के कई पन्ने समेटे हुए है. ऐसी ऐतिहासिक धरोहर को सहेजने की जरूरत है. इसके साथ ही प्रशासन को इसके पानी को हो रहे दावों की सच्चाई जानने के लिए भी प्रयास करना चाहिए.