गरियाबंद: प्रदेश में इन दिनों तेज गर्मी पड़ रही है. छत्तीसगढ़ में 25 मई से भीषण गर्मी वाले दिन नौतपा की शुरूआत हो चुकी है. जिसके बाद प्रदेश के अधिकतर जिलेवासी जल संकट से परेशान हैं. इन दिनों जगह-जगह से तालाबों (ponds) और अन्य पेयजल स्त्रोतों के सूखने की खबरें आ रही हैं. इस बीच गरियाबंद जिले में सिनापाली नाम का एक ऐसा गांव देखने को मिला जहां दो सौ साल पहले के लोगों की बेहतरीन वॉटर मैनेजमेंट प्लानिंग (Water management planning) के चलते गांव में कभी जल संकट खड़ा नहीं हुआ. गरियाबंद के अंतिम छोर पर बसे सिनापाली के लोगों को 18वीं शताब्दी में उनके पूर्वजों के बनाए तालाबों से भरपूर पानी मिल रहा है.
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गरियाबंद के सिनापाली गांव में 18वीं सदी में पूर्वजों की वॉटर मैनेजमेंट (water management of 18th century) के तहत निर्मित तालाब आज भी कारगर साबित हो रही है. इस गांव में दो सौ साल पुराने 11 छोटे-बड़े तालाब मौजूद हैं. जिनमें मार्च माह के बाद कुछ तालाबों का पानी सूख गया. लेकिन सिनापाली गांव के 12 एकड़ क्षेत्र में फैला दियान तालाब, 8 एकड़ में फैला ऊपर तालाब, 2 एकड़ में फैले गोहटिया तालाब, ढाई एकड़ में फैले साहू तालाब और लगभग डेढ़ एकड़ में फैले कोदो तालाब में पूरी गर्मी भर के निस्तारी के लिए लबालब पानी भरा रहता है. जिनके कारण गांवों का जल स्तर बारहों महीने ठीक रहता है और उन्हें जल संकट का सामना नहीं करना पड़ता, इसके साथ ही ग्रामीणों के पेयजल के लिए 25 हैंडपम्प मौजूद हैं.
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सिनापाली गांव के 40 परिवार के लोग इन तालाबों के पानी से निस्तारी के साथ-साथ लगभग 50 हेक्टयेर में सब्जी की खेती कर लेते हैं. जिससे ग्रामीणों की अच्छी-खासी आमदनी हो जाती है. पूर्वजों के बनाए गए इन तालाबों से ब्लॉक के 4 हजार से ज्यादा आबादी वाले सबसे बड़े गांव सिनापाली में कभी जल की समस्या उत्पन्न नहीं हुई.
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कभी नहीं सूखते ये 5 तालाब
गरियाबंद के सीनापाली गांव के लोगों को भरपूर पानी उपलब्ध करवाने वाले ये सभी तालाब डेढ़ सौ से दो सौ साल पुराने हैं. गांव के 90 वर्षीय पटेल रोहित मांझी बताते हैं कि उनके परदादा गरुण सिंह साल 1830 (year 1830) के आसपास गांव के मालगुजार थे. उस समय गांव की आबादी 500 भी नहीं थी. लेकिन दादा ने गांव में 8 एकड़ में तालाब खुदवा दिया. इस निस्तारी तालाब के नीचे दल-दल बनता था, इसलिए निचले हिस्से के 2 एकड़ में दो और तालाब बनवा दिया गया. जिसमें से एक तालाब पीने के पानी के लिए सुरक्षित रखा गया था. इस तालाब का पानी आसपास के 4,5 गांव के लोग भी पीने के उपयोग में लाते थे.
12 एकड़ में खुदवाया गया था सबसे पहला तालाब
सीनापाली में मालगुजार के बाद गांव के दीवान और मकड़दम ने और तालाब बनवाए. जमींदारी प्रथा में गांव में मालगुजार के अलावा दीवान और मकड़दम का भी पद हुआ करता था. मालगुजार के तालाब खुदाई से प्रेरित होकर गांव के दीवान गंगाराम मांझी ने 19वीं सदी से पहले सबसे बड़ा तालाब 12 एकड़ में खुदवाया. वहीं मकड़दम जो साहू परिवार से थे, उन्होंने भी 6 एकड़ में एक तालाब खुदवाया. आजादी के पहले तक इस गांव में 6 तालाब खुदवाया जा चुका था. जो कि अब तक लोगों के लिए जलदायिनी का साधन बने हुए हैं.
सीनापाली गांव में रहने वाले ग्रामीणों के पूर्वजों का वॉटर मैनेजमेंट सभी इलाकों से काफी अलग था. उस जमाने मे निस्तारी और पेय जल जैसी जरूरी सुविधा गांव में मौजूद थी. जिसके कारण यहां सभी समाज के लोगों रहने लगे और आज ये ब्लॉक का सबसे बड़ा गांव बन गया.
इन तालाबों में लगाया गया 20 सोलर वॉटर पम्प
गरियाबंद के इस गांव में निस्तार के लिए पानी की कमी ना होने के मद्देनजर सालों पहले इन तालाबों का निर्माण किया गया था. जो कि अब लोगों की अजीविका और रोजगार का साधन बने हुए हैं. इस गांव के लोग सालभर इन तालाबों के पानी का उपयोग सब्जी की खेती के लिए करते हैं. जिससे वे अच्छी खासी आमदनी कमा लेते हैं. तालाबों के जल स्तर बढ़े होने से यहां दर्जनों छोटे डबरी बनाई गई है, जिनमें 20 सोलर वॉटर पम्प लगाया गया है. जिससे सब्जी की खेती होती है. इन तालाबों में डबरी खनन के लिए लगभग 1,500 मजदूरों को मनरेगा के तहत रोजगार मिला हुआ है. सीनापाली गांव के लोग निजी संसाधनों की वजह से काफी खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे हैं.