ETV Bharat / state

साल दर साल किसानों की जमीन 'लील' रही तेल नदी, संकट में अन्नदाता - गरियाबंद में कसान परेशान

गरियाबंद में तेल नदी के कटाव के कारण किसानों के खेत नदी में तब्दील हो गए हैं, जिससे किसान परेशान हैं. किसानों का कहना है कि बार-बार शिकायत के बावजूद भी इस ओर कोई काम नहीं किया जा रहा है.

तरबूज की खेती
तरबूज की खेती
author img

By

Published : Jan 24, 2020, 5:14 PM IST

Updated : Jan 24, 2020, 9:11 PM IST

गरियाबंद: वैसे तो नदी, नाले और नहरें किसानों की खेती के लिए जीवनदायनी मानी जाती है, लेकिन कई बार ये किसानों के लिए मुसीबत का कारण भी बन जाती है. ऐसा ही एक मामला गरियाबंद में देखने को मिला है. यहां के कचिया, गांव के अन्नदाता संकट में हैं. किसान के लिए सबसे अहम माने जाने वाली उसकी धरती ही नदी में समाती जा रही है. हर साल नदी की चौड़ाई बढ़ते जा रही है और किसानों के खेत नदी में समाते जा रहे हैं. कुछ साल पहले जो किसान थे, अब वो मजदूर बन गए हैं.

पैकेज.

किसामों को भुगतना पड़ रहा खामियाजा
नदी की रेत में खेती करते ये करचिया गांव के किसान हैं. कभी इस जगह पर इनके खेत हुआ करते थे जो अब तेल नदी के कटाव के कारण नदी में तब्दील हो गए हैं. ग्रामीणों का दावा है कि बीते कई साल से लगातार तेल नदी का कटाव हो रहा है. अब तक गांव के 50 से ज्यादा किसानों की 100 एकड़ से ज्यादा जमीन का कटाव हो चुका है. ग्रामीणों का कहना है इसे लेकर वे कई बार अधिकारियों को अवगत करा चुके हैं, लेकिन अधिकारियों को ग्रामीणों की समस्या से कोई लेना-देना ही नहीं है. बार-बार कि शिकायत के बावजूद भी नदी पर तटबंध नहीं बनाया गया है, जिसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है.

farmers
संकट में अन्नदाता

तीन से चार महीने ही हो पाती है खेती
किसानों के मुताबिक वे अपने खेतों में कभी धान और दलहन की सालभर फसल लिया करते थे, लेकिन अब उनकी जमीन की मिट्टी रेत में तब्दील हो गई है. इसके कारण वे सिर्फ सब्जी की फसल ही ले पाते हैं और वो भी केवल तीन से चार महीने के लिए हो पाता है. बाकी समय नदी में या तो बाढ़ रहती है या फिर नदी पूरी तरह सूख जाती है, जिसकी वजह से सब्जी की फसल भी नहीं हो पाती है.

पलायन को मजबूर ग्रामीण
जमीन रेत में तब्दील हो जाने के कारण गांव के कई किसान अब तक पलायन कर चुके हैं. जिम्मेदार अधिकारी तटबंध की जरूरत तो बता रहे हैं, लेकिन तटबंध का निर्माण कब तक होगा इसे लेकर अधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं. प्रशासन की लापरवाही का खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है.

गरियाबंद: वैसे तो नदी, नाले और नहरें किसानों की खेती के लिए जीवनदायनी मानी जाती है, लेकिन कई बार ये किसानों के लिए मुसीबत का कारण भी बन जाती है. ऐसा ही एक मामला गरियाबंद में देखने को मिला है. यहां के कचिया, गांव के अन्नदाता संकट में हैं. किसान के लिए सबसे अहम माने जाने वाली उसकी धरती ही नदी में समाती जा रही है. हर साल नदी की चौड़ाई बढ़ते जा रही है और किसानों के खेत नदी में समाते जा रहे हैं. कुछ साल पहले जो किसान थे, अब वो मजदूर बन गए हैं.

पैकेज.

किसामों को भुगतना पड़ रहा खामियाजा
नदी की रेत में खेती करते ये करचिया गांव के किसान हैं. कभी इस जगह पर इनके खेत हुआ करते थे जो अब तेल नदी के कटाव के कारण नदी में तब्दील हो गए हैं. ग्रामीणों का दावा है कि बीते कई साल से लगातार तेल नदी का कटाव हो रहा है. अब तक गांव के 50 से ज्यादा किसानों की 100 एकड़ से ज्यादा जमीन का कटाव हो चुका है. ग्रामीणों का कहना है इसे लेकर वे कई बार अधिकारियों को अवगत करा चुके हैं, लेकिन अधिकारियों को ग्रामीणों की समस्या से कोई लेना-देना ही नहीं है. बार-बार कि शिकायत के बावजूद भी नदी पर तटबंध नहीं बनाया गया है, जिसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है.

farmers
संकट में अन्नदाता

तीन से चार महीने ही हो पाती है खेती
किसानों के मुताबिक वे अपने खेतों में कभी धान और दलहन की सालभर फसल लिया करते थे, लेकिन अब उनकी जमीन की मिट्टी रेत में तब्दील हो गई है. इसके कारण वे सिर्फ सब्जी की फसल ही ले पाते हैं और वो भी केवल तीन से चार महीने के लिए हो पाता है. बाकी समय नदी में या तो बाढ़ रहती है या फिर नदी पूरी तरह सूख जाती है, जिसकी वजह से सब्जी की फसल भी नहीं हो पाती है.

पलायन को मजबूर ग्रामीण
जमीन रेत में तब्दील हो जाने के कारण गांव के कई किसान अब तक पलायन कर चुके हैं. जिम्मेदार अधिकारी तटबंध की जरूरत तो बता रहे हैं, लेकिन तटबंध का निर्माण कब तक होगा इसे लेकर अधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं. प्रशासन की लापरवाही का खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है.

Intro:स्लग—किसान बने मजदूर


एंकर---वैसे तो नदी नाले और नहरें किसानों के लिए जीवनदायनी मानी जाती है मगर कई बार ये किसानों के लिए मुसीबत का कारण भी बन जाती है ऐसा ही एक मामला गरियाबंद में सामने आया है। यहां के कचिया गांव में अन्नदाता संकट में है क्योंकि किसान के लिए सबसे अहम माने जाने वाली उसकी धरती ही नदी में समाती जा रही है हर साल नदी की चौड़ाई बढ़ते जा रही है और किसानों के खेत नदी में समाते जा रहे हैं कुछ साल पहले जो जो किसान थे अब मजदूर बनकर रह गए हैं देखिए ये रिपोर्ट


Body:वीओ 1---नदी की रेत में खेती करते ये करचिया गांव के किसान है, कभी इस जगह पर इनके खेत हुआ करते थे जो अब तेल नदी के कटाव के कारण नदी में तब्दील हो गये है, ग्रामीणों का दावा है कि बीते कई वर्षो से तेल नदी का कटाव निरंतर जारी है और अबतक गॉव के 50 से अधिक किसानों की 100 एकड से ज्यादा जमीन का कटाव हो चुका है, ग्रामीणों का ये भी दावा है कि इसको लेकर वे कई बार अधिकारियों को अवगत करा चुके है मगर उसके बावजूद भी नदी पर तटबंध नही बनाया गया है जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड रहा है।
बाइट 1---किसान.....
वीओ 2--- किसानों के मुताबिक अपने खेतों में वे कभी धान और दलहन की सालभर फसल लिया करते थे, मगर अब उनकी जमीन रेत में तब्दील हो जाने कारण सब्जी की फसल ही ले पाते है, वो भी केवल तीन से चार महीने के लिए कर पाते है बाकि समय नदी में या तो बाढ रहती है या फिर नदी पुरी तरह सुख जाती है जिसके चलते वे सब्जी की फसल भी नही ले पाते है, जमीन रेत में तब्दील हो जाने के कारण गॉव के कई किसान अब तक पलायन कर चुके है, जो कभी किसान हुआ करते थे वे अब मजदूर बनकर पलायन करने पर मजबूर हो रहे है।
बाइट 2-----किसान....
बाइट 3--किसान.....
बाइट 4---किसान.....
Conclusion:फाईनल वीओ----जिम्मेदार अधिकारी तटबंध की जरुरत तो बता रहे है, मगर तटबंध का निर्माण कबतक होगा इसको लेकर अधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नही है, वहीं प्रशासन की लापरवाही का खामियाजा करचिया के किसानों को भुगतने पर मजबूर होना पड रहा है।
Last Updated : Jan 24, 2020, 9:11 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.