गरियाबंद: वैसे तो नदी, नाले और नहरें किसानों की खेती के लिए जीवनदायनी मानी जाती है, लेकिन कई बार ये किसानों के लिए मुसीबत का कारण भी बन जाती है. ऐसा ही एक मामला गरियाबंद में देखने को मिला है. यहां के कचिया, गांव के अन्नदाता संकट में हैं. किसान के लिए सबसे अहम माने जाने वाली उसकी धरती ही नदी में समाती जा रही है. हर साल नदी की चौड़ाई बढ़ते जा रही है और किसानों के खेत नदी में समाते जा रहे हैं. कुछ साल पहले जो किसान थे, अब वो मजदूर बन गए हैं.
किसामों को भुगतना पड़ रहा खामियाजा
नदी की रेत में खेती करते ये करचिया गांव के किसान हैं. कभी इस जगह पर इनके खेत हुआ करते थे जो अब तेल नदी के कटाव के कारण नदी में तब्दील हो गए हैं. ग्रामीणों का दावा है कि बीते कई साल से लगातार तेल नदी का कटाव हो रहा है. अब तक गांव के 50 से ज्यादा किसानों की 100 एकड़ से ज्यादा जमीन का कटाव हो चुका है. ग्रामीणों का कहना है इसे लेकर वे कई बार अधिकारियों को अवगत करा चुके हैं, लेकिन अधिकारियों को ग्रामीणों की समस्या से कोई लेना-देना ही नहीं है. बार-बार कि शिकायत के बावजूद भी नदी पर तटबंध नहीं बनाया गया है, जिसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है.
तीन से चार महीने ही हो पाती है खेती
किसानों के मुताबिक वे अपने खेतों में कभी धान और दलहन की सालभर फसल लिया करते थे, लेकिन अब उनकी जमीन की मिट्टी रेत में तब्दील हो गई है. इसके कारण वे सिर्फ सब्जी की फसल ही ले पाते हैं और वो भी केवल तीन से चार महीने के लिए हो पाता है. बाकी समय नदी में या तो बाढ़ रहती है या फिर नदी पूरी तरह सूख जाती है, जिसकी वजह से सब्जी की फसल भी नहीं हो पाती है.
पलायन को मजबूर ग्रामीण
जमीन रेत में तब्दील हो जाने के कारण गांव के कई किसान अब तक पलायन कर चुके हैं. जिम्मेदार अधिकारी तटबंध की जरूरत तो बता रहे हैं, लेकिन तटबंध का निर्माण कब तक होगा इसे लेकर अधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं. प्रशासन की लापरवाही का खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है.