गरियाबंद कोरोना आपदा में मानवता और भाईचारे की मिसाल भी सामने आ रही है. हिंदू और मुसलमानों का भेद तोड़कर लोग एक-दूसरे की मदद के लिए सामने आ रहे हैं. ऐसी ही तस्वीर छत्तीसगढ़ के गरियाबंद से सामने आई है. शहर के कुछ युवा आगे आकर कोरोना संक्रमित मृतकों का अंतिम संस्कार पूरे राति-रिवाजों के साथ कर रहे हैं.
कोरोना के इस कठिन दौर में गरियाबंद के युवाओं ने आपसी भाईचारे की मिसाल पेश की है. इन युवकों ने इस कोरोना काल की घड़ी में एक दूसरे से कंधे से कंधा मिलाकर मिसाल पेश कर रहे हैं. कोरोना में जब अपने ही लोगों का अंतिम संस्कार नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में शहर के ये युवा पूरी जिम्मेदारी से आगे आकर इस काम में जुटे हुए हैं. एक तरफ जहां मुस्लिम युवा श्मशान पहुंचकर हिंदुओं का पूरे रीति-रिवाज के साथ अंतिम संस्कार कर रहे हैं. वहीं हिंदू युवा कब्रिस्तान में शवों को सुपुर्द-ए-खाक कर रहे हैं.
भाईचारे की अनूठी मिसाल
गरियाबंद से एक किलोमीटर दूर आंमदी गांव निवासी खोलबाहर के पुत्र लोकेश कुमार का कोरोना से निधन हो गया था. मृतक के परिवार के दूसरे सदस्य भी कोरोना पॉजिटिव हैं. लिहाजा इनके अंतिम संस्कार के लिए शहर केकुछ युवाओं ने श्मशान पहुंचकर प्रशासन की मौजूदगी में पूरी-रीति-रिवाज के साथ मृतक का अंतिम संस्कार किया.
दुर्ग के श्मशान घाट का हाल, 'अंतिम संस्कार के लिए भी नहीं मिल रही जगह'
गांव-गांव में पहुंचकर कर रहे हैं मदद
हेमंत सांग, ताहिर खान, डॉक्टर हरीश चौहान, सन्नी मेमन जुनैद खान, चंद्रभूषण चौहान, कादर हिंगोरा, मनीष यादव, सफीक रजा, हैदर अली सरवर खान, मोहम्मद लतीफ शहादत अली, यूसुफ मेमन, आसिफ खान, पनु राम, मनीष यादव, आसिफ खान, साजिद खान,अरबाज खान समेत करीब 15 लोगों की टीम गांव-गांव पहुंचकर मुश्किल वक्त में ये काम कर रही है.
अब तक 15 कोरोना मृतकों का किया अंतिम संस्कार
युवाओं का यह समूह अब तक कोरोना वायरस से पीड़ित 15 मृतकों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं. इनका कहना है कि यह समय मानव धर्म के पालन का है. वैसे भी मजहब आपस में बैर रखना नहीं सिखाता. बांटना नहीं बल्कि जोड़ना सिखाता है. इस मुश्किल घड़ी में एक दूसरे के काम आना ही सबसे बड़ा मानवता धर्म है. उसी का पालन वे यहां कर रहे हैं.
किराए पर लिया है शव वाहन
युवाओं के इस समूह ने गरियाबंद में शव वाहन की कमी को देखते हुए एक वाहन किराए पर लेकर उसे शव लाने ले जाने के लिए रखा है. जिसका खर्च भी यह आपस में मिलकर उठाते हैं. गरियाबंद के इन युवाओं के कार्यों की तारीफ अब हर कहीं होने लगी है.