गरियाबंद: जिले का बूटेंगा गांव अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है. पक्की सड़क ना होने के चलते यहां के लोग आने जाने के लिए जंगल के कच्चे रास्तों पर नदी नाले पार करते नजर आते हैं. इन सबके बीच इस गांव की असली परेशानी बरसात के 4 माह में नजर आती है, जब नदी नाले उफान पर होते हैं. गांव टापू में तब्दील हो जाता है. बीमार हो या गर्भवती महिला किसी को भी मदद की जरूरत पड़ने पर एंबुलेंस या कोई और वाहन यहां तक पहुंच नहीं पाते.
जिला मुख्यालय गरियाबंद से महज 10 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम पंचायत बूटेंगा विकास की बाट जोह रहा है. आजादी के 75 सालों के बाद भी यहां एक सड़क तक नहीं बन पाई. तमाम सरकारें आईं और गईं, लेकिन बूटेंगा के निवासियों को सिर्फ और सिर्फ आश्वासन मिला.
सालभर पहले से मिली मोबाइल सुविधा
बूटेंगा के लोग सालों से अपने गांव में मोबाइल नेटवर्क नहीं रहने से बाकी बाहर के इलाकों से जुड़ नहीं पा रहे थे. सालभर पहले पड़ोस के गांव में टावर लगने से अब इस गांव का संपर्क बाहरी दुनिया से कुछ बेहतर हुआ है, लेकिन बेन्दकुरा के आश्रित गांव बूटेंगा के हालात अब भी बदतर है. कारण है यहां तक आवागमन के लिए पक्की सड़क का ना होना, घने जंगलों, नदी नालों को पार कर कच्ची सड़क से लोग बाकी समय तो गांव पहुंच जाते हैं. लेकिन बरसात के समय यहां पहुंचना संभव नहीं हो पाता. लोग भी गांव में फंसकर रह जाते हैं. गांव टापू में तब्दील हो जाता है.
गांव में जाने के लिए ईटीवी भारत की टीम को हुई परेशानी
ईटीवी भारत की टीम ने बूटेंगा गांव जाने के लिए निकली तो आधे रास्ते के बाद गाड़ी नाला पार नहीं कर पाई. फिर आगे का सफर मोटरसाइकिल पर करना पड़ा. बरसात में जब इन पहाड़ी नाले अपना रौद्र रूप दिखाते हैं तो ग्रामीणों के पास गांव में सिमट कर रह जाने के अलावा और कोई चारा नहीं होता. मिट्टी की सड़क पर फिसलन ऐसी आ जाती है कि चाहकर भी कोई वाहन इन सड़कों पर ठीक से चला नहीं पाता.
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बारिश में खाट पर मरीज को ले जाया जाता है अस्पताल
बूटेंगा गांव के विकास के लिए सड़क की बाट जोह रहे ग्रामीण अपनी परेशानी बताते भावुक हो जाते हैं. ग्रामीण कहते हैं कि बाकी इलाकों में विकास हुआ, लेकिन उनके गांव को सरकार जैसे भूल ही गई है. सड़क विकास के लिए सबसे बेसिक जरूरत होती है, लेकिन उन्हें वह नहीं मिला. महिलाएं बताती हैं कि कैसे बरसात में डिलीवरी के लिए गर्भवती माताओं को उल्टे खाट पर बैठाकर नाला पार कर अस्पताल ले जाना पड़ता है. गांव की दोनों दिशाओं में पक्की सड़क तक पहुंचने के लिए 6 किलोमीटर कच्ची सड़क पर बरसात में जो स्थिति होती है, वह बयां नहीं किया जा सकता. इमरजेंसी के दौरान नदी-नाला पार करने में जान का भी खतरा बना रहता है.
राशन लाना भी किसी परेशानी से कम नहीं
ग्रामीण बताते हैं कि हर माह सरकारी राशन के लिए भी इन्हें ग्राम पंचायत मुख्यालय तक कच्ची सड़क से जाना होता है. जाने के समय तो स्थितियां ठीक रहती है. लेकिन जब राशन के बोरे साइकल पर होता है तो चढ़ाई वाली सड़क पर राशन ले जाना टेढ़ी खीर साबित होता है.
हर जगह केवल आश्वासन ही मिला
बूटेंगा के ग्रामीण गांव में सड़क की मांग लंबे समय से करते आ रहे हैं. कई छोटे-बड़े नेताओं के चक्कर काटे, लेकिन हर जगह से उन्हें केवल आश्वासन ही मिला. गांव के ग्रामीण अपनी परेशानी के लिए सरकार को ही जिम्मेदार ठहराते हैं
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आधिकारियों को भेजा जाएगा गांव- कलेक्टर
गरियाबंद कलेक्टर नीलेश क्षीरसागर का कहना है कि गरियाबंद में ऐसे कई पहुंच वहींन दुर्गम क्षेत्र है, जहां कम आबादी वाले क्षेत्रों में सड़कें नहीं बनी हैं. ऐसे स्थानों में फिलहाल नदी नालों पर पुल-पुलिया बनवाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं. इसके बाद उन क्षेत्रों में सड़कें बनवाई जाएंगी. कलेक्टर ने कहा कि इस गांव की तकलीफों की जानकारी मिली है वहां क्या जरूरत है यह देखने अधिकारियों को गांव भेजा जाएगा.
आजादी के सात दशकों बाद ये हाल
आजादी के सात दशक बाद भी बूटेंगा के लिए एक अदद पक्की सड़क के लिए तरस रहे हैं. बरसात में गांव टापू में तब्दील हो जाए और देखने वाला कोई ना हो तो, एक बात तो साफ है कि सरकारों ने इस गांव के विकास पर ध्यान दिया ही नहीं.