गरियाबंद : जिले में वृद्धा पेंशन और निराश्रित पेंशन के नाम पर मिलने वाले चंद रुपयों के लिए बुजुर्गों को सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं. उम्र के इस पड़ाव में जहां परिवार वालों ने इन बुजुर्गों का साथ छोड़ दिया है, तो वहीं सरकारी योजनाएं भी धोखा दे रही हैं. महज 350 रुपए की वृद्धा पेंशन के लिए ये बुजुर्ग झुकी कमर और लड़खड़ाते-कांपते पैरों से 3 किलोमीटर का पैदल सफर तय करते हैं.
गरियाबंद जनपद कार्यालय पहुंचे 25 से ज्यादा बुजुर्ग कोकड़ी गांव के रहने वाले हैं. बीते 5 महीने से वृद्धा पेंशन और निराश्रित पेंशन के नाम पर मिलने वाले चंद पैसे भी इन्हें नसीब नहीं हुए हैं. वैसे नियम तो यह है कि फंड आए न आए राशि ग्राम पंचायत को इन्हें किसी भी मद से निकालकर हर महीने देना अनिवार्य है, लेकिन इस नियम का पालन नहीं हो रहा है.
जिले के कई गांवों का है यही हाल
यह अकेले कोकड़ी गांव का मामला नहीं है. इसी तरह के हालात गरियाबंद के दूसरे गांवों में भी हैं. वहीं पुराने सरपंचों का कार्यकाल खत्म होना इन बुजुर्गों के लिए सिर दर्द बना हुआ है. पुराने सरपंच बीते चार-पांच महीने से इन्हें पेंशन दिलवाने में कोई रूचि नहीं ले रहे हैं. इसके साथ ही नया सरपंच खुद को इस मामले से अंजान बता रहा है.
दाने-दाने के मोहताज हो रहे बुजुर्ग
वहीं पंचायत सचिव जिसकी इन सभी प्रक्रिया की जिम्मेदारी होती है, वह बीते ढाई महीने से चुनाव की तैयारियों में लगे रहे. उन्हें लगभग रोजाना जनपद कार्यालय बुला लिया जा रहा था और पंचायत के कार्य प्रभावित हो रहे थे. कुल मिलाकर सरकारी कर्मचारियों की लापरवाही इन बुजुर्गों पर भारी पड़ती नजर आ रही है. ये बुजुर्ग दाने-दाने को मोहताज हैं. इसके लिए प्रशासन को कोस रहे हैं. दूसरी ओर अधिकारी इस मामले में कुछ भी कहने को तैयार नहीं हैं.