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गरियाबंद : 350 रुपए वृद्धा पेंशन पाने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहे बुजुर्ग - वृद्ध पेंशन योजना गरियाबंद

कोकड़ी गांव के 25 से ज्यादा बुजुर्ग अपनी पेंशन की राशि के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने को मजबूर हैं. जिले के कई गांव में वृद्धा पेंशन और निराश्रित पेंशन योजना का बुरा हाल है.

bad condition of vriddha pension scheme in gariyaband
पीड़ित बुजुर्ग
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Published : Feb 5, 2020, 1:20 PM IST

गरियाबंद : जिले में वृद्धा पेंशन और निराश्रित पेंशन के नाम पर मिलने वाले चंद रुपयों के लिए बुजुर्गों को सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं. उम्र के इस पड़ाव में जहां परिवार वालों ने इन बुजुर्गों का साथ छोड़ दिया है, तो वहीं सरकारी योजनाएं भी धोखा दे रही हैं. महज 350 रुपए की वृद्धा पेंशन के लिए ये बुजुर्ग झुकी कमर और लड़खड़ाते-कांपते पैरों से 3 किलोमीटर का पैदल सफर तय करते हैं.

गरियाबंद में वृद्धा पेंशन का बुरा हाल

गरियाबंद जनपद कार्यालय पहुंचे 25 से ज्यादा बुजुर्ग कोकड़ी गांव के रहने वाले हैं. बीते 5 महीने से वृद्धा पेंशन और निराश्रित पेंशन के नाम पर मिलने वाले चंद पैसे भी इन्हें नसीब नहीं हुए हैं. वैसे नियम तो यह है कि फंड आए न आए राशि ग्राम पंचायत को इन्हें किसी भी मद से निकालकर हर महीने देना अनिवार्य है, लेकिन इस नियम का पालन नहीं हो रहा है.

जिले के कई गांवों का है यही हाल

यह अकेले कोकड़ी गांव का मामला नहीं है. इसी तरह के हालात गरियाबंद के दूसरे गांवों में भी हैं. वहीं पुराने सरपंचों का कार्यकाल खत्म होना इन बुजुर्गों के लिए सिर दर्द बना हुआ है. पुराने सरपंच बीते चार-पांच महीने से इन्हें पेंशन दिलवाने में कोई रूचि नहीं ले रहे हैं. इसके साथ ही नया सरपंच खुद को इस मामले से अंजान बता रहा है.

दाने-दाने के मोहताज हो रहे बुजुर्ग

वहीं पंचायत सचिव जिसकी इन सभी प्रक्रिया की जिम्मेदारी होती है, वह बीते ढाई महीने से चुनाव की तैयारियों में लगे रहे. उन्हें लगभग रोजाना जनपद कार्यालय बुला लिया जा रहा था और पंचायत के कार्य प्रभावित हो रहे थे. कुल मिलाकर सरकारी कर्मचारियों की लापरवाही इन बुजुर्गों पर भारी पड़ती नजर आ रही है. ये बुजुर्ग दाने-दाने को मोहताज हैं. इसके लिए प्रशासन को कोस रहे हैं. दूसरी ओर अधिकारी इस मामले में कुछ भी कहने को तैयार नहीं हैं.

गरियाबंद : जिले में वृद्धा पेंशन और निराश्रित पेंशन के नाम पर मिलने वाले चंद रुपयों के लिए बुजुर्गों को सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं. उम्र के इस पड़ाव में जहां परिवार वालों ने इन बुजुर्गों का साथ छोड़ दिया है, तो वहीं सरकारी योजनाएं भी धोखा दे रही हैं. महज 350 रुपए की वृद्धा पेंशन के लिए ये बुजुर्ग झुकी कमर और लड़खड़ाते-कांपते पैरों से 3 किलोमीटर का पैदल सफर तय करते हैं.

गरियाबंद में वृद्धा पेंशन का बुरा हाल

गरियाबंद जनपद कार्यालय पहुंचे 25 से ज्यादा बुजुर्ग कोकड़ी गांव के रहने वाले हैं. बीते 5 महीने से वृद्धा पेंशन और निराश्रित पेंशन के नाम पर मिलने वाले चंद पैसे भी इन्हें नसीब नहीं हुए हैं. वैसे नियम तो यह है कि फंड आए न आए राशि ग्राम पंचायत को इन्हें किसी भी मद से निकालकर हर महीने देना अनिवार्य है, लेकिन इस नियम का पालन नहीं हो रहा है.

जिले के कई गांवों का है यही हाल

यह अकेले कोकड़ी गांव का मामला नहीं है. इसी तरह के हालात गरियाबंद के दूसरे गांवों में भी हैं. वहीं पुराने सरपंचों का कार्यकाल खत्म होना इन बुजुर्गों के लिए सिर दर्द बना हुआ है. पुराने सरपंच बीते चार-पांच महीने से इन्हें पेंशन दिलवाने में कोई रूचि नहीं ले रहे हैं. इसके साथ ही नया सरपंच खुद को इस मामले से अंजान बता रहा है.

दाने-दाने के मोहताज हो रहे बुजुर्ग

वहीं पंचायत सचिव जिसकी इन सभी प्रक्रिया की जिम्मेदारी होती है, वह बीते ढाई महीने से चुनाव की तैयारियों में लगे रहे. उन्हें लगभग रोजाना जनपद कार्यालय बुला लिया जा रहा था और पंचायत के कार्य प्रभावित हो रहे थे. कुल मिलाकर सरकारी कर्मचारियों की लापरवाही इन बुजुर्गों पर भारी पड़ती नजर आ रही है. ये बुजुर्ग दाने-दाने को मोहताज हैं. इसके लिए प्रशासन को कोस रहे हैं. दूसरी ओर अधिकारी इस मामले में कुछ भी कहने को तैयार नहीं हैं.

Intro:उम्र के अंतिम पड़ाव में जहां इन बुजुर्गों को इनके परिवार वालों ने साथ देना कम कर दिया है तो वहीं सरकारी योजनाएं भी धोखा देती सी नजर आ रही है वृद्धा पेंशन और निराश्रित पेंशन के नाम पर मिलने वाले चंद रुपयों के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं


Body:झुकी कमर और कमजोर होते हाथ पैरों के बावजूद महज ₹350 की वृद्धा पेंशन के लिए 3 किलोमीटर का पैदल सफर कर गरियाबंद जनपद कार्यालय पहुंचे यह 25 से अधिक बुजुर्ग कोकडी गांव के रहने वाले हैं बीते 5 महीने से वृद्धा पेंशन और निराश्रित पेंशन के नाम पर मिलने वाले चंद रुपए तक इन्हें नसीब नहीं हुए हैं वैसे नियम तो यह है कि फंड आए ना आए राशि ग्राम पंचायत को इन्हें किसी भी मद से निकालकर हर महीने देना अनिवार्य सालों पहले कर दिया गया था मगर इस जरूरी नियम का पालन नहीं होता......यह अकेले कोकड़ी गांव का मामला नहीं है इसी तरह गरियाबंद जिले के कई और ग्रामों में भी हालात ऐसे ही है खत्म होता सरपंचों का कार्यकाल इन बुजुर्गों के लिए परेशानी का सबब बन रहा है पुराने सरपंच बीते चार-पांच महीने से इनके पेंशन दिलवाने में कोई रुचि नहीं ले रहे हैं और नया सरपंच इस कार्य से अनभिज्ञता जाहिर कर रहा है वहीं पंचायत सचिव जिसकी जिम्मेदारी होती है वह बीते ढाई महीने से चुनाव की तैयारियों में लगे थे उन्हें लगभग रोजाना जनपद कार्यालय बुला लिया जा रहा था और पंचायत के कार्य प्रभावित हो रहे थे इन बुजुर्गों को बड़ी परेशानी यह की महज साडे ₹300 में गुटखा किसी तरह यह लोग दाल सब्जी का खर्च निकालने मैं मशक्कत कर रहे थे मगर वह भी बीते लंबे समय से नसीब नहीं हुआ किराने वालों ने अब उधार देने से तक मना कर दिया है


Conclusion:
कुल मिलाकर सरकारी कर्मचारियों की लापरवाही इन बुजुर्गों पर भारी पड़ती नजर आ रही है दाने दाने को यह मोहताज हो रहे हैं और इसके लिए प्रशासन को यह बुजुर्ग कोसते नजर आ रहे हैं और अधिकारी इस मामले में कुछ कहने को तैयार नहीं है

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