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दुर्ग का 200 साल पुराना तालाब जो कहलाने लगा इश्क का दरिया !

प्यार की निशानी एक ऐसा तालाब है जो दुर्ग जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर कंडरका गांव में मौजूद है. 200 साल पुराने इस प्रेम के प्रतीक की कहानी आज भी गांव वाले गर्व से बताते हैं. आइये आपको बताते हैं इस प्यार की कहानी.

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इश्क का दरिया
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Published : Feb 13, 2021, 10:24 PM IST

दुर्ग/ भिलाई: कहा जाता है कि प्यार कभी मरता नहीं. बल्कि प्यार करने वाले दुनिया से जुदा हो जाते हैं, लेकिन सदियों सदियों तक प्यार की निशानी जिंदा रहती है. और उस प्यार की निशानी को लोग कई पीढ़ी तक याद रखते हैं. जैसे शाहजहां ने मुमताज के लिए ताजमहल बनवाया था जो आज भी आगरा में है, जिसे देखने के लिए देश विदेशों के लोग आते हैं. कुछ ऐसे ही दो प्यार करने वाले प्रेमियों के प्यार की निशानी एक ऐसा तालाब है जो दुर्ग जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर कंडरका गांव में मौजूद है. 200 साल पुराने इस प्रेम के प्रतीक की कहानी आज भी गांव वाले गर्व से बताते हैं. आइये आपको बताते हैं इस प्यार की कहानी.

इश्क का दरिया

आस्था और विश्वास का प्रतीक तालाब

कहा जाता है कि आज से लगभग 200 साल पहले इस गांव में एक चरवाहा अपनी पत्नी के साथ रहता था. उनकी शादीशुदा जिंदगी बहुत ही सुखमय तरीके से गुजर रही थी, लेकिन उस गांव में एक भी तालाब नहीं था. चरवाहा होने के साथ साथ वह गांव का जमीदार भी था. गांव के बुजुर्ग रघुनंदन सिंह राजपूत बताते हैं मालगुजार की पत्नी स्नान के लिए दूसरे गांव के तालाब जाती थी. वहां की महिलाओं ने ऐसा ताना दिया की बालों पर मिट्टी पोत घर लौट आई और पति को संकल्प दिलाया कि जब तक तलाब नहीं तैयार कराएंगे, वह नहाएगी नहीं. तब जाकर मालगुजार पति ने तालाब खुदवाया. तब से यह तालाब आस्था और विश्वास का भी प्रतीक है.

ऐसे हुई तालाब की खुदाई

रघुनंदन बताते हैं कि 200 साल पहले पानी की किल्लत हुआ करती थी. सारा गांव तालाब के लिए जगह की तलाश में था. गांव में तालाब नहीं होने की वजह से मालगुजार गुरमीन पाल गडरिया की पत्नी पास के चेटूवा गांव के तालाब में स्नान के लिए जाया करती थी. एक दिन उसकी पत्नी को गांव की महिलाओं ने यह कह कर ताना मार दिया कि इतने बड़े मालगुजार की बीवी के पास नहाने के लिए खुद का तालाब नहीं है. बस फिर क्या था इसी बात पर मालगुजार की बीवी नाराज होकर घर लौट आई. इसके बाद मालगुजार गडरिया ने तालाब के लिए जगह की तलाश शुरू कर दी. तभी खबर आई की एक भैंस की सींग में कीचड़ लगा हुआ है. उसके बाद वहां गए और एक कुदाल पड़ते ही पानी की महीन धार फूट पड़ी.

इश्क का महीना: प्रेमियों के लिए तैयार हुआ बाजार

65 एकड़ में फैले इस तालाब से खेतों को होती है सिंचाई

करीब 2 हजार की जनसंख्या वाले गांव के इस तालाब पर कभी किसी तरह का अतिक्रमण नहीं हुआ है. पानी एकदम स्वच्छ है. इसमें गांव के लोग नहाते भी हैं. वहीं 65 एकड़ में फैला यह तालाब आसपास के दर्जनभर गांव के खेतों की सिंचाई भी करता है. साथ ही तलाब का एक बूंद पानी बेकार नहीं जाने देते. एक तरह से यहां के लोग जल संरक्षण की मिसाल भी पेश कर रहे हैं. गांव के एक और बुजुर्ग शेर अली बताते हैं कि इस तालाब को प्रेम का प्रतीक माना जाता हैं. यहां का तालाब कभी सूखता नहीं है. आसपास के ग्रामीण भी इसी तालाब से निस्तारी करते हैं. तालाब का पानी इतना साफ है कि जब नल या बोर नहीं हुआ करता था तो इसी से पानी पिया करते थे

आम और बरगद के सैकड़ों पेड़

पति-पत्नी के प्यार के लिए पहचाने जाने वाले इस तालाब में सैकड़ों पेड़ भी लगे हुए हैं. जहां आम, बरगद, पीपल नीम और इमली के लगभग ढाई सौ पेड़ लगे हुए हैं. ग्रामीण बताते हैं कि अंग्रेजों के समय में जब लोग इस रास्ते से गुजरते थे तो वह सभी इसी तालाब के किनारे पेड़ के नीचे बैठकर आराम किया करते थे. पानी स्वच्छ होने की वजह से मुसाफिर पीने के लिए भी इसका उपयोग किया करते थे.

दुर्ग/ भिलाई: कहा जाता है कि प्यार कभी मरता नहीं. बल्कि प्यार करने वाले दुनिया से जुदा हो जाते हैं, लेकिन सदियों सदियों तक प्यार की निशानी जिंदा रहती है. और उस प्यार की निशानी को लोग कई पीढ़ी तक याद रखते हैं. जैसे शाहजहां ने मुमताज के लिए ताजमहल बनवाया था जो आज भी आगरा में है, जिसे देखने के लिए देश विदेशों के लोग आते हैं. कुछ ऐसे ही दो प्यार करने वाले प्रेमियों के प्यार की निशानी एक ऐसा तालाब है जो दुर्ग जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर कंडरका गांव में मौजूद है. 200 साल पुराने इस प्रेम के प्रतीक की कहानी आज भी गांव वाले गर्व से बताते हैं. आइये आपको बताते हैं इस प्यार की कहानी.

इश्क का दरिया

आस्था और विश्वास का प्रतीक तालाब

कहा जाता है कि आज से लगभग 200 साल पहले इस गांव में एक चरवाहा अपनी पत्नी के साथ रहता था. उनकी शादीशुदा जिंदगी बहुत ही सुखमय तरीके से गुजर रही थी, लेकिन उस गांव में एक भी तालाब नहीं था. चरवाहा होने के साथ साथ वह गांव का जमीदार भी था. गांव के बुजुर्ग रघुनंदन सिंह राजपूत बताते हैं मालगुजार की पत्नी स्नान के लिए दूसरे गांव के तालाब जाती थी. वहां की महिलाओं ने ऐसा ताना दिया की बालों पर मिट्टी पोत घर लौट आई और पति को संकल्प दिलाया कि जब तक तलाब नहीं तैयार कराएंगे, वह नहाएगी नहीं. तब जाकर मालगुजार पति ने तालाब खुदवाया. तब से यह तालाब आस्था और विश्वास का भी प्रतीक है.

ऐसे हुई तालाब की खुदाई

रघुनंदन बताते हैं कि 200 साल पहले पानी की किल्लत हुआ करती थी. सारा गांव तालाब के लिए जगह की तलाश में था. गांव में तालाब नहीं होने की वजह से मालगुजार गुरमीन पाल गडरिया की पत्नी पास के चेटूवा गांव के तालाब में स्नान के लिए जाया करती थी. एक दिन उसकी पत्नी को गांव की महिलाओं ने यह कह कर ताना मार दिया कि इतने बड़े मालगुजार की बीवी के पास नहाने के लिए खुद का तालाब नहीं है. बस फिर क्या था इसी बात पर मालगुजार की बीवी नाराज होकर घर लौट आई. इसके बाद मालगुजार गडरिया ने तालाब के लिए जगह की तलाश शुरू कर दी. तभी खबर आई की एक भैंस की सींग में कीचड़ लगा हुआ है. उसके बाद वहां गए और एक कुदाल पड़ते ही पानी की महीन धार फूट पड़ी.

इश्क का महीना: प्रेमियों के लिए तैयार हुआ बाजार

65 एकड़ में फैले इस तालाब से खेतों को होती है सिंचाई

करीब 2 हजार की जनसंख्या वाले गांव के इस तालाब पर कभी किसी तरह का अतिक्रमण नहीं हुआ है. पानी एकदम स्वच्छ है. इसमें गांव के लोग नहाते भी हैं. वहीं 65 एकड़ में फैला यह तालाब आसपास के दर्जनभर गांव के खेतों की सिंचाई भी करता है. साथ ही तलाब का एक बूंद पानी बेकार नहीं जाने देते. एक तरह से यहां के लोग जल संरक्षण की मिसाल भी पेश कर रहे हैं. गांव के एक और बुजुर्ग शेर अली बताते हैं कि इस तालाब को प्रेम का प्रतीक माना जाता हैं. यहां का तालाब कभी सूखता नहीं है. आसपास के ग्रामीण भी इसी तालाब से निस्तारी करते हैं. तालाब का पानी इतना साफ है कि जब नल या बोर नहीं हुआ करता था तो इसी से पानी पिया करते थे

आम और बरगद के सैकड़ों पेड़

पति-पत्नी के प्यार के लिए पहचाने जाने वाले इस तालाब में सैकड़ों पेड़ भी लगे हुए हैं. जहां आम, बरगद, पीपल नीम और इमली के लगभग ढाई सौ पेड़ लगे हुए हैं. ग्रामीण बताते हैं कि अंग्रेजों के समय में जब लोग इस रास्ते से गुजरते थे तो वह सभी इसी तालाब के किनारे पेड़ के नीचे बैठकर आराम किया करते थे. पानी स्वच्छ होने की वजह से मुसाफिर पीने के लिए भी इसका उपयोग किया करते थे.

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