दुर्ग: 1 जुलाई 1992 को भिलाई गोलीकांड (Bhilai firing case) में शहीद मजदूरों को गुरुवार को श्रद्धांजलि दी गई. गोलीकांड की इस घटना ने भिलाई ही नहीं बल्कि पूरे देश को झंकझोर कर रख दिया था. इस गोलीकांड में 16 लोगों की मौत हो गई थी. इस दिन को याद करते हुए भिलाई पावर हाउस रेलवे स्टेशन (Bhilai Power House Railway Station) में छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के कार्यकर्ताओं ने मजदूरों को श्रद्धांजलि दी.
शंकर गुहा की हत्या के बाद तेज हुआ था आंदोलन
छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के शीर्ष नेता शंकर गुहा नियोगी (Shankar Guha Niyogi) ने भिलाई में मजदूरों के हक के लिए आवाज बुलंद की थी. उन्होंने जीने लायक वेतन और निकाले गए श्रमिकों को काम पर लेने समेत कई मांगों को लेकर 1991 में प्रदर्शन किया था. इस दौरान मजदूरों के शीर्ष नेता शंकर गुहा नियोगी की 28 सितंबर 1991 की रात अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. इसके बाद देशभर में विरोध के स्वर उठने शुरू हो गए थे. नियोगी जी की हत्या के बाद मजदूरों का आंदोलन और तेज हो गया.
लंबा चला था आंदोलन
सवा महीने से मजदूर अपने परिजनों को छोड़कर आंदोलन कर रहे थे. कुरैशी बताते हैं कि आंदोलन पांच पड़ाव में हुआ था. हर पड़ाव में एक सप्ताह लगा. इसकी शुरुआत जामुल से हुई थी. उसके बाद छावनी, सारदा पारा, खुर्सीपार और सेक्टर 1 मैदान में किया गया था. उसके बाद भी सरकार ने उनकी मांग नहीं सुनी. तत्कालीन मंत्री मुरली मनोहर जोशी उस दौरान रायपुर भी आए थे, लेकिन जिम्मेदारों ने मजदूर नेताओं से नहीं मिलाया. जिसकी वजह से मजदूरों को रेलवे ट्रैक पर आना पड़ा था.
हजारों की संख्या में मजदूरों ने किया था आंदोलन
मजदूर आंदोलन के बाद भी सरकार ने उनकी मांग नहीं सुनी. तत्कालीन केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी उस दौरान रायपुर भी आए थे. लेकिन जिम्मेदारों ने मजदूर नेताओं से नहीं मिलाया. जिसकी वजह से मजदूरों को रेलवे ट्रैक पर आना पड़ा था. श्रमिक नेता शंकर गुहा नियोगी के नेतृत्व में 1991 में भिलाई, कुम्हारी, उरला और राजनांदगांव के टेडेसरा के हजारों श्रमिक भिलाई में आंदोलन कर रहे थे. न्यूनतम वेतन और निकाले गए श्रमिकों को काम पर वापस लेने को लेकर परिवार समेत मजदूर प्रदर्शन कर रहे थे. इस दौरान पुलिस और श्रमिकों के बीच जमकर झड़प हुई. श्रमिकों के उग्र प्रदर्शन को देखते हुए पुलिस ने गोलियां बरसा दी. जिसमें 16 श्रमिकों की मौत हुई थी और सैकड़ों मजदूर घायल हुए थे.
1 जुलाई 1992 भिलाई का वो काला दिन, जब मजदूरों पर दागी गई थी गोलियां, 16 श्रमिकों की हुई थी मौत
अब तक नहीं मिला न्याय
छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के उपाध्यक्ष एजी कुरैशी बताते हैं कि 1 जुलाई 1992 को मजूदरो की मांगों को लेकर रेलवे ट्रैक पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन हो रहा था. इस बीच पुलिस ने मजदूरों पर अंधाधुंध गोलियां बरसा दीं. इस खूनी खेल में 16 मजदूरों की मौत हुई थी. जबकि सैकड़ों लोग अपंग हो गए थे. सरकार से कई बार निवेदन किया गया. लेकिन सरकार की ओर से परिवार के लोगों को अब तक कोई सरकारी नौकरी नहीं मिली.
सरकार ने माना था कि बेवजह गोली चलाई गई
सरकार ने खुद ही माना था कि बेवजह गोली चलाई गई है. मृतकों के परिवार को सरकारी नौकरी दी जानी चाहिए. घटना को कई साल बीत जाने के बाद भी मजदूरों को अब तक न्याय नहीं मिल पाया है. मजदूरों का कहना है कि सीएम भूपेश बघेल (CM Bhupesh Baghel) से भी मुलाकात कर घटना की वास्तविक स्थिति बताने के बाद भी मजदूरों के साथ अन्याय किया जा रहा है.
लोग शासन-प्रशासन से थे नाराज
आंदोलन के ठीक पहले निगम ने GE रोड के कई अतिक्रमण को हटाए गए थे. इससे भी लोग शासन प्रशासन से नाराज थे. जिसकी वजह से लोगों का भी सपोर्ट श्रमिकों को मिलने लगा था. प्रदर्शन के दौरान अलग अलग क्षेत्रों से पुलिस पर पथराव किये गए. जिसके बाद पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी. इस दौरान नेवई थाने में पदस्थ सब इस्पेक्टर टीके सिंह शहीद हो गए थे. पथराव के दौरान वे दीवार फांदकर भागने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वह नहीं निकल पाए और उन पर लोगों ने पथराव की बौछार कर दी. पुलिस चारों तरफ से घिर गई थी. क्योंकि सेक्टर 1 से भी पथराव शुरू हो गया था. उस समय पुलिस फायरिंग ही अंतिम चारा था. यदि पुलिस फायरिंग नहीं होती तो स्थिति बहुत ही विकट होती. इस दौरान सारनाथ एक्सप्रेस की पूरी बोगियां खाली हो चुकी थी. खाली खड़ी रेल गाड़ी और पुलिस के तमाम जवान ही नजर आ रहे थे.
ये थे शामिल
1 जुलाई को हुए गोलीकांड में मारे गए श्रमिकों में केशव गुप्ता, रामकृपाल गुप्ता, असीम दास, मधुकर राम, रामाज्ञा चौहान, मनहरण वर्मा, जोगा यादव, पुरानिक लाल, प्रेमनारायण, कुमार वर्मा, इंद्रदेव चौधरी, हिरऊराम, लक्ष्मण वर्मा, धिरपाल ठाकुर, किशोरी मल्लाह, लोमन उमरे, के.एन. प्रदीप कुट्टी भिलाई के तत्कलीन थाना प्रभारी टीके साहू भी शामिल थे.
गोलीकांड के बाद दो दिन तक रहा कर्फ्यू
भिलाई में 1 जुलाई 1992 को हुए इस गोलीकांड के बाद दो दिन तक कर्फ्यू लगा रहा. कर्फ्यू लगने की वजह से सड़कें पूरी तरह से वीरान हो गई थी. चौक चौराहों पर भारी पुलिस बल तैनात कर दिए गए थे, ताकि किसी तरह की कोई अप्रिय घटना न हो. उन्होंने बताया कि इस दौरान पत्रकारों के लिए पास जारी किया गया था. उस समय रायपुर, राजनांदगांव, कवर्धा समेत दुर्ग की पुलिस बल ने मोर्चा संभाला था. इस गोलीकांड के कुछ समय बाद घायल दो श्रमिकों की मौत हो गई. इस तरह कुल 18 श्रमिक और एक पुलिस अफसर शहीद हो गए थे.