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कभी छत्तीसगढ़ के इस मंदिर में आइए, यहां आशीर्वाद में आपको 'ऑक्सीजन' मिलती है

अमेरी गांव में लग्भग 20 साल पहले यहां के पुजारी बाबा ने छोटे छोटे पौधों को इकट्ठा कर इसे एक कतार में लगाना शुरू किया और यहीं पूजा अर्चना शुरू कर दी. जिसे देखकर यहां के लोगों ने पुजारी का सहयोग किया और इस जगह पर मानव मुख की आकृति में पेड़ लगाकर पर्यावरण धाम का नाम दिया गया.

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Published : Jun 5, 2019, 10:01 PM IST

दुर्ग: काश ऐसे ही मंदिर पूरे देश में होते और पेड़ों को काटने की बजाए लोग पूजा-अर्चना कर सहेज लेते. आपने भगवान के कई मंदिरों के बारे सुना होगा, उनकी महिमा पर विश्वास करते होंगे लेकिन पर्यावरण के मंदिर के बारे में कम ही जानते होंगे. तो चलिए छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के पाटन के अमेरी गांव, जहां गांव के पुजारी बाबा और यहां रहने वाले लोगों ने पर्यावरण का मंदिर बना दिया है.

मंदिर में आशीर्वाद के रूप में मिलता है ऑक्सीजन

यहां हरे-भरे पेड़ देखकर आप को लग रहा होगा कि यह कोई पर्यावरण विभाग का वृक्षरोपण कार्यक्रम का हिस्सा है लेकिन ये पौधे अपने आप में जीवित देवता माने जा रहे हैं. अमेरी गांव पर्यावरण संरक्षण की मिसाल पेश कर रहा है. पेड़ों की श्रृंखला से मंदिर बनाया गया है, पेड़ों की छांव में देवी-देवताओं की मूर्तियां रखी गई हैं. खास बात ये है कि यहां दूर-दूर से लोग अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं.

ऐसे शुरू हुआ मंदिर बनाना
अमेरी गांव में लग्भग 20 साल पहले यहां के पुजारी बाबा ने छोटे छोटे पौधों को इकट्ठा कर इसे एक कतार में लगाना शुरू किया और यहीं पूजा अर्चना शुरू कर दी. जिसे देखकर यहां के लोगों ने पुजारी का सहयोग किया और इस जगह पर मानव मुख की आकृति में पेड़ लगाकर पर्यावरण धाम का नाम दिया गया.

इस मंदिर को बनाने के पीछे बाबा अपनी सोच बताते हैं. वे कहते हैं कि प्रकृति हमारी मां है और ये पेड़-पौधे ही हमारे जीवित भगवान हैं. इनसे जो मांगोगे वो मिलेगा. वे कहते है बस्तर क्षेत्र के परिपेक्ष्य में घोटुल की परंपरा है, इसी तरह यह प्राकृतिक मंदिर का निर्माण किया गया है. यहां शीतलता का प्रतीक नीम है, जो बड़े होकर एक दूसरे से सटकर दीवार का निर्माण करेंगे.

प्रकृति बचाने से ही बचेगा जीवन
उसी तरह हनुमान जी के प्रतिमा के चारों ओर वट और शंकर जी के चारों ओर पीपल का वृक्ष है, जो मानव नेत्र की आकृत्ति में है. गांव के युवाओं ने इस मंदिर में अब श्रमदान देना शुरू कर दिया है और पानी की व्यवस्था कर आम, बेल और आंवले के पौधे रोपे जा रहे हैं.

मंदिर के सदस्य रत्नाकर मिश्रा भी इस मंदिर को विशेष मानते हैं. वे कहते हैं कि जब सब खत्म होगा तब प्रकृति ही रक्षा करेगी. इसलिए प्रकृति का संरक्षण करें. वे यह भी कहते हैं कि अगर ऐसे ही मंदिर देश में और बन जाएं तो ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या से बचा जा सकता है.

दुर्ग: काश ऐसे ही मंदिर पूरे देश में होते और पेड़ों को काटने की बजाए लोग पूजा-अर्चना कर सहेज लेते. आपने भगवान के कई मंदिरों के बारे सुना होगा, उनकी महिमा पर विश्वास करते होंगे लेकिन पर्यावरण के मंदिर के बारे में कम ही जानते होंगे. तो चलिए छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के पाटन के अमेरी गांव, जहां गांव के पुजारी बाबा और यहां रहने वाले लोगों ने पर्यावरण का मंदिर बना दिया है.

मंदिर में आशीर्वाद के रूप में मिलता है ऑक्सीजन

यहां हरे-भरे पेड़ देखकर आप को लग रहा होगा कि यह कोई पर्यावरण विभाग का वृक्षरोपण कार्यक्रम का हिस्सा है लेकिन ये पौधे अपने आप में जीवित देवता माने जा रहे हैं. अमेरी गांव पर्यावरण संरक्षण की मिसाल पेश कर रहा है. पेड़ों की श्रृंखला से मंदिर बनाया गया है, पेड़ों की छांव में देवी-देवताओं की मूर्तियां रखी गई हैं. खास बात ये है कि यहां दूर-दूर से लोग अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं.

ऐसे शुरू हुआ मंदिर बनाना
अमेरी गांव में लग्भग 20 साल पहले यहां के पुजारी बाबा ने छोटे छोटे पौधों को इकट्ठा कर इसे एक कतार में लगाना शुरू किया और यहीं पूजा अर्चना शुरू कर दी. जिसे देखकर यहां के लोगों ने पुजारी का सहयोग किया और इस जगह पर मानव मुख की आकृति में पेड़ लगाकर पर्यावरण धाम का नाम दिया गया.

इस मंदिर को बनाने के पीछे बाबा अपनी सोच बताते हैं. वे कहते हैं कि प्रकृति हमारी मां है और ये पेड़-पौधे ही हमारे जीवित भगवान हैं. इनसे जो मांगोगे वो मिलेगा. वे कहते है बस्तर क्षेत्र के परिपेक्ष्य में घोटुल की परंपरा है, इसी तरह यह प्राकृतिक मंदिर का निर्माण किया गया है. यहां शीतलता का प्रतीक नीम है, जो बड़े होकर एक दूसरे से सटकर दीवार का निर्माण करेंगे.

प्रकृति बचाने से ही बचेगा जीवन
उसी तरह हनुमान जी के प्रतिमा के चारों ओर वट और शंकर जी के चारों ओर पीपल का वृक्ष है, जो मानव नेत्र की आकृत्ति में है. गांव के युवाओं ने इस मंदिर में अब श्रमदान देना शुरू कर दिया है और पानी की व्यवस्था कर आम, बेल और आंवले के पौधे रोपे जा रहे हैं.

मंदिर के सदस्य रत्नाकर मिश्रा भी इस मंदिर को विशेष मानते हैं. वे कहते हैं कि जब सब खत्म होगा तब प्रकृति ही रक्षा करेगी. इसलिए प्रकृति का संरक्षण करें. वे यह भी कहते हैं कि अगर ऐसे ही मंदिर देश में और बन जाएं तो ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या से बचा जा सकता है.

Intro: एक तरफ जहां पूरी दुनिया प्रदूषण से ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या से जूझ रही है वहीं कुछ लोग ऐसे भी है जो आज भी प्रकृति से प्रेम करते है, उन्हें बचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं, जिला मुख्यालय से 34 किलोमीटर दूर मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र पाटन ब्लॉक के अमेरी गांव में भी कुछ इसी तरह लोगो ने पर्यावरण धाम का निर्माण किया है जो आज अपना आकर ले रहा है। गांव के पुजारी बाबा और लोगो ने मिलकर इट पत्थर नही बल्कि पेड़ो से मन्दिर बनाने की परिकल्पना तैयार की है और यह परिकल्पना अब पर्यावरण धाम के रूप में आकार ले रही है....Body:वीओ- ये हरे भरे पेड़ देखकर आप को लग रहा होगा कि यह कोई पर्यावरण विभाग का वृक्षरोपण कार्यक्रम का हिस्सा है , लेकिन ये पौधे अपने आप में जीवित देवता माने जा रहे है । जी हां ,दुर्ग जिले के पाटन क्षेत्र के अमेरी गांव में पर्यावरण संरक्षण की एक ऐसी मिसाल पेश की जा रही है जिसे देखकर आप भी हैरान हो जाएंगे ,यह गांव है अमेरी जहां पर ईंट और पत्थरों और सीमेंट से नहीं बल्कि पेड़ों की श्रृंखला से मंदिर बनाया गया है पेड़ों की छांव के तले जो मूर्तियां आपको नजर आ रही है यह पर्यावरण देवी के रूप में मां काली की प्रतिमा है। इस मंदिर में दुर दूर से लोग अपनी मुरादे लेकर आते है। अमेरी गांव में लग्भग 20 साल पहले यहां के पुजारी बाबा ने छोटे छोटे पौधों को इकठ्ठा कर इसे एक कतार में लगाना शुरू किया और यही पूजा अर्चना शुरू कर दिया। जिसे देखकर यहाँ के लोगो ने पुजारी का सहयोग किया और इस जगह पर मानव मुख की आकृति में पेड़ लगाकर पर्यावरण धाम का नाम दिया गया। इस मंदिर को बनाने के पीछे बाबा की सोच है कि आज ईट पत्थरो से मन्दिर बनाये जा रहे है लेकिन इन मंदिरों में लोगो की मुरादे पूरी होती है या नही वो उसके पुजारी पर निर्भर करता है ।लेकिन यह प्रकृति देवी हमारी माँ है, और इसके आसपास पूजा पाठ यज्ञ हवन का वातावरण होने कारण यह पेड़ पौधे जीवित भगवान का रूप है इनसे जो मांगोगे वो मिलेगा, वहीं आज बस्तर क्षेत्र के परिपेक्ष्य में घोटुल की परंपरा है इसी तरह यह प्राकृतिक मन्दिर का निर्माण किया गया है, यहाँ शीतलता का प्रतीक नीम है, जो बड़े होकर एक दूसरे से सटकर दीवाल का निर्माण करेंगे, एयर इसकी साखाये छत का आकार लेगी। उसी तरह हनुमान जी के प्रतिमा के चारो ओर वट और शंकर जी के चारो ओर पीपल का वृक्ष है , जो मानव नेत्र की आकृत्ति में है। गांव के युवाओ ने इस मंदिर में अब श्रमदान देना शुरू कर दिया है और पानी की व्यवस्था कर आम, वेल और आंवले के पौधे रोपे जा रहे हैं। मन्दिर के सदस्य रत्नाकर मिश्रा भी इस मंदिर को विशेष मानते है कि जब धरती में सब समाप्त होता रहेगा तब प्रकति माता ही सबकी रक्षा करेगी इसलिए प्रकृति का संरक्षण आवश्यक है, अगर ऐसे ही जागृति समाज में फैले पत्थर और ईंटों के जगह पेड़ो के मंदिर बने तो आज ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या से बचा जा सकता है। रत्नाकर मिश्रा बताते हैं कि लोग यहां अपनी मुरादे लेकर आते हैं। लेकिन बाबा अपने माता पिता की सेवा करने की सलाह देकर उन्हें वापस भेज देते है। सिर्फ मन की शान्ति के लिए नही बल्कि अपने जीवन के सभी सुखों के त्यागकर बाबा यहाँ छोटी से झोपड़ी में निवास करते है ।

बाईट- रत्नाकर मिश्रा,पर्यावरण प्रेमी,अमेरी



कोमेन्द्र सोनकर,दुर्गConclusion:
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