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धमतरी: 500 साल से जल रही है वन में बसी मां विंध्यवासिनी की ज्योत, दर्शन को आते हैं भक्त

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Published : Oct 7, 2019, 9:57 PM IST

गंगरेल की बीहड़ जंगलों में स्थित मां विंध्यवासिनी का मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र है. लोग यहां खाली झोली लेकर आते हैं और मां उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं.

मां विंध्यवासिनी देवी

धमतरी: नवरात्र के नौ दिन देवी मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ी. नवमी के दिन भी माता मंदिरों में लोग अपनी मन्नतें लेकर पहुंचे. छत्तीसगढ़ को देवी मंदिरों के लिए जाना जाता है. ऐसा ही एक मंदिर है मां विंध्यवासिनी का. इसे बिलाईमाता के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. लोग कहते हैं कि जो यहां आता है, खाली हाथ नहीं जाता है.
धमतरी में स्थित बिलाईमाता मंदिर में पिछले पांच सौ वर्षों से आस्था की ज्योत प्रज्जवलित होती आ रही है. इस ज्योत को देखने दूर-दूर से लोग आते है. श्रध्दालुओं का कहना है कि माता के दर्शन मात्र से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.

बीहड़ में वास करती थी मां विंध्यवासिनी

भक्तों का मानना है कि मां विंध्यवासिनी, अंगारमोती, रिसाई माता और दंतेश्वरी माता की बड़ी बहन हैं. जो सदियों से गंगरेल की बीहड़ जंगलों में वास कर रही हैं. तकरीबन 500 साल पहले माता ने पाषाण रुप में प्रकट होकर लोगों को दर्शन दिया था. तब से ही माता की पूजा इस जगह पर की जाती है.
मान्यता है कि जब कांकेर के राजा नरहरदेव शिकार के लिऐ जा रहे थे, उस वक्त उन्हें जंगल में माता के दर्शन हुए थे. तब से लेकर आज तक इस शक्ति स्थल पर भक्ति की धारा अनवरत बह रही है.

धमतरी की हैं इष्टदेवी

इस मंदिर की घंटियों की गूंज सुनकर ही शहर के लोगों के दिन की शुरुआत होती है. माता बिलाईदेवी शहर की इष्टदेवी हैं. बताया जाता है कि जब माता ने सबसे पहले दर्शन दिए तब उनके पाषाण रुप के दोनों तरफ काली बिल्लियों का डेरा था, जो मन्दिर बनने के बाद गायब हो गईं. शायद इसीलिए इन्हें बिलाईमाता के नाम से भी जाना जाता है.

धमतरी: नवरात्र के नौ दिन देवी मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ी. नवमी के दिन भी माता मंदिरों में लोग अपनी मन्नतें लेकर पहुंचे. छत्तीसगढ़ को देवी मंदिरों के लिए जाना जाता है. ऐसा ही एक मंदिर है मां विंध्यवासिनी का. इसे बिलाईमाता के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. लोग कहते हैं कि जो यहां आता है, खाली हाथ नहीं जाता है.
धमतरी में स्थित बिलाईमाता मंदिर में पिछले पांच सौ वर्षों से आस्था की ज्योत प्रज्जवलित होती आ रही है. इस ज्योत को देखने दूर-दूर से लोग आते है. श्रध्दालुओं का कहना है कि माता के दर्शन मात्र से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.

बीहड़ में वास करती थी मां विंध्यवासिनी

भक्तों का मानना है कि मां विंध्यवासिनी, अंगारमोती, रिसाई माता और दंतेश्वरी माता की बड़ी बहन हैं. जो सदियों से गंगरेल की बीहड़ जंगलों में वास कर रही हैं. तकरीबन 500 साल पहले माता ने पाषाण रुप में प्रकट होकर लोगों को दर्शन दिया था. तब से ही माता की पूजा इस जगह पर की जाती है.
मान्यता है कि जब कांकेर के राजा नरहरदेव शिकार के लिऐ जा रहे थे, उस वक्त उन्हें जंगल में माता के दर्शन हुए थे. तब से लेकर आज तक इस शक्ति स्थल पर भक्ति की धारा अनवरत बह रही है.

धमतरी की हैं इष्टदेवी

इस मंदिर की घंटियों की गूंज सुनकर ही शहर के लोगों के दिन की शुरुआत होती है. माता बिलाईदेवी शहर की इष्टदेवी हैं. बताया जाता है कि जब माता ने सबसे पहले दर्शन दिए तब उनके पाषाण रुप के दोनों तरफ काली बिल्लियों का डेरा था, जो मन्दिर बनने के बाद गायब हो गईं. शायद इसीलिए इन्हें बिलाईमाता के नाम से भी जाना जाता है.

Intro:वैसे तो नवरात्र के इस मौके पर हर तरफ लोग माता की भक्ति से सराबोर होते है पर धमतरी के विध्यवासिनी माॅ के मन्दिर का नजारा ही कुछ अलग होता है.बिलाईमाता के नाम से मशहूर माता के इस दरबार मे बीते पांच सौ सालो से आस्था की ज्योति प्रज्वलित होते आ रही है और यहां के चत्मकार से कई बार श्रध्दालू रुबरु हो चूके है.मान्यता है कि इलाके की वनदेवियो मे रिश्ते का बन्धन है और माॅ विध्यवासिनी,अंगारमोती, रिसाई माता,दन्तेशरी माता की बड़ी बहन है जो स्वयं प्रकट होकर भक्तो पर अपनी कृपा बरसा रही है.Body:आदि जमाने से ही माता दुर्गा अगांरमोती, रिसाई माता दन्तेशरी माता के रुप मे इलाके की रक्षा करती आ रही है.धमतरी के रामबाग मे मौजूद ये उसी माता का दरबार है जो आदि जमाने मे गगंरेल की बीहड़ वादियो मे वास करती थी.माँ विध्यवासिनी की यह मूर्ति करीब पांच सौ सालो से पाषाण रुप मे स्वंय प्रकट होकर यहां भक्तो की मनो कामना को पूर्ण करते आ रही है.इतिहास के बारे मे मान्यता है कि जब कांकेर के राजा नरहरदेव शिकार के लिऐ जा रहे थे उस वक्त उन्हे धनघोर जगंल मे माता के दर्शन हुए और स्वप्न के बाद उन्होने माॅ विध्यवासिनी रुप मे अराधना की तब से लेकर आज तक इस इस शक्ति स्थल मे भक्ति की धारा अनवरत बह रही है.इस देवालय मे दोनो नवरात्र पर्व मे ज्योत जलाने की पंरपरा है जो सदियो से चली आ रही है.

वैसे माना जाता है कि इस मन्दिर की घन्टियो की गुॅंज सुनकर ही शहर के लोग की दिन शुरुआत होती है जो शहर की इष्टदेवी है.इस माता की पहचान बिलाईमाता के नाम से भी है.बताया जाता है कि जब माता ने सबसे पहले दर्शन दिए तब उनके पाषाण रुप के दोनो तरफ दो काली बिल्लियो का डेरा था जो मन्दिर बनने के बाद गायब हो गई.माता के उपर आस्था ऐसी की लोग हर दुख तकलीफ पर यहा पर आकर हाजरी लगाते है जिससे लोगो को सभी कष्टो से मुक्ति मिल जाती है.

माता की शक्ति का प्रभाव धर्म की इस नगरी के मानो धड़कन मे समा गया है.इस दर पर आने वाला कोई खाली हाथ नही लौटता बल्कि यहां भक्त असीम सुख का अनुभव करता है लोग मानते है कि माता के इस दरबार की छत्रछाया हर वर्ग और समुदाय पर बराबर है.यूं तो माता का आर्शीवाद का प्रताप पूरे शहर पर बना हुआ है जिसके वजह से शहर मे आज तक कोई भी विध्न बाधा नही आया है.वही लोग शुभ कार्य शुरू करने से पहले माता के दरबार मे मत्था टेकने जरूर जाते है जहां सदियो से आपसी भाईचारा कायम है.Conclusion:बहरहाल वनदेवियो की बड़ी बहन माने जाने वाली यह माँ विध्यंवासिनी धमतरी के उत्तर दिशा मे वास कर भक्तो के दुखो को हरते आ रही है जहाँ हर नवरात्र पर जलते है आस्था के सैकड़ों दीप.भले ही अब यहां चमत्कार गाहेबगाहे हो पर बिलाईमाता देवी की कृपा आज भी इसके चौखट पर आने वालो पर वैसे ही बरसते आ रही है .

बाईट_01 उषा जाचक,श्रद्धालू
बाईट_02 करन पांडेय,श्रद्धालू
बाईट_03 आलोक जाधव,स्थानीय
बाईट_04 उमाकांत वर्मा,श्रद्धालू
बाईट_05 नारायण दुबे,पुजारी

रामेश्वर मरकाम,ईटीवी भारत,धमतरी
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