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कहीं किस्से-किताबों में न रह जाए कुम्हार और उसकी कला

अब न मिट्टी के बर्तन का खरीददार बचे हैं और न ही सदियों पुरानी इस कला को बचाने के लिए सरकार कोई कारगर योजना बना रही है. कुम्हारों की हालात को देखकर ऐसा लग रहा है, कुम्हार और उनकी कला आने वाले दिनों में सिर्फ किताबों और कहानियों तक सिमटकर रह जाएंगे.

मिट्टी के बर्तन
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Published : Jun 15, 2019, 8:23 PM IST

धमतरी: छत्तीसगढ़ में शासन और अधिकारियों की उदासीनता के कारण कुम्हारों की हालत बद से बदतर होते जा रही है. कुम्हारों का काम धीरे-धीरे खत्म हो होने की कगार पर है. पीढ़ियों से पुरखों की विरासत को बढ़ाने वाले कुम्हार परिवार इन दिनों आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं.

कहीं किस्से-किताबों में न रह जाए कुम्हार और उसकी कला

अब न मिट्टी के बर्तन का खरीददार बचे हैं और न ही सदियों पुरानी इस कला को बचाने के लिए सरकार कोई कारगर योजना बना रही है. कुम्हारों की हालात को देखकर ऐसा लग रहा है, कुम्हार और उनकी कला आने वाले दिनों में सिर्फ किताबों और कहानियों तक सिमटकर रह जाएंगे.

फ्रीज और फ्राइपैन ने ले ली मिट्टी के बर्तनों की जगह
एक दौर था जब दुनिया मिट्टी के बर्तन के बिना संभव नहीं था. उस दौर में राजा से लेकर रंक तक कुम्हार के बनाए बर्तन का उपयोग करते थे. कभी अपनी कला के दम पर फल फूल रहे कुम्हारों के पास आज के दौर में मटकी बनाने के अलावा कोई काम नही बचा है. इसपर भी विडंबना यह है कि इसके खरीददार भी अब ज्यादा नहीं हैं. आधुनिक युग में ज्यादातर लोगों ने घर में फ्रीज और फ्राइपैन का इस्तेमाल करने लगे हैं.

मिट्टी के लिए भी तरस रहे कुम्हार
कुम्हारों के बनाये मिट्टी के बर्तन बिक भी जाए तो पर्याप्त मुनाफा इन कुम्हारों को नहीं मिल पाता है. जिससे इनकी आर्थिक स्थिति लगातार खराब होते जा रही है, हालांकि कुछ लोग आज भी इस काम से जुड़े हैं, जो चाहते हैं कि उनकी विरासत बचे रहे है. वरना मिट्टी के बर्तन कब के अप्रासंगिक हो चुके हैं. कुम्हारों का कहना है कि यहां बाजार का आभाव है और उनके बुरे दिन के लिए सरकार जिम्मेदार है. आलम ये है कि कुम्हारों को मिट्टी के लिए भी तरसना पड़ रहा है.

बीजेपी सरकार है कुम्हारों की स्थिति के लिए जिम्मेदार
पिछली सरकार ने कुम्हारों के लिए कई वादे किए थे, लेकिन निभा नहीं सकी. इधर, नई सरकार के नुमाइंदे कुम्हारों का बदहाली का ठीकरा भाजपा के सिर फोड़ने से नहीं चूक रहे है. कांग्रेस के जिला अध्यक्ष मोहन लालवानी का कहना है कि प्रदेश में कुम्हारों की स्थिति के लिए पिछली सरकार जिम्मेदार है, जो इनके लिए कुछ नहीं किया. अब देखना होगा कि नरवा गरुवा घुरुवा और बाड़ी को बचाने में लगी सरकार इन माटी पुत्र कुम्हारों के लिए क्या करती है.

धमतरी: छत्तीसगढ़ में शासन और अधिकारियों की उदासीनता के कारण कुम्हारों की हालत बद से बदतर होते जा रही है. कुम्हारों का काम धीरे-धीरे खत्म हो होने की कगार पर है. पीढ़ियों से पुरखों की विरासत को बढ़ाने वाले कुम्हार परिवार इन दिनों आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं.

कहीं किस्से-किताबों में न रह जाए कुम्हार और उसकी कला

अब न मिट्टी के बर्तन का खरीददार बचे हैं और न ही सदियों पुरानी इस कला को बचाने के लिए सरकार कोई कारगर योजना बना रही है. कुम्हारों की हालात को देखकर ऐसा लग रहा है, कुम्हार और उनकी कला आने वाले दिनों में सिर्फ किताबों और कहानियों तक सिमटकर रह जाएंगे.

फ्रीज और फ्राइपैन ने ले ली मिट्टी के बर्तनों की जगह
एक दौर था जब दुनिया मिट्टी के बर्तन के बिना संभव नहीं था. उस दौर में राजा से लेकर रंक तक कुम्हार के बनाए बर्तन का उपयोग करते थे. कभी अपनी कला के दम पर फल फूल रहे कुम्हारों के पास आज के दौर में मटकी बनाने के अलावा कोई काम नही बचा है. इसपर भी विडंबना यह है कि इसके खरीददार भी अब ज्यादा नहीं हैं. आधुनिक युग में ज्यादातर लोगों ने घर में फ्रीज और फ्राइपैन का इस्तेमाल करने लगे हैं.

मिट्टी के लिए भी तरस रहे कुम्हार
कुम्हारों के बनाये मिट्टी के बर्तन बिक भी जाए तो पर्याप्त मुनाफा इन कुम्हारों को नहीं मिल पाता है. जिससे इनकी आर्थिक स्थिति लगातार खराब होते जा रही है, हालांकि कुछ लोग आज भी इस काम से जुड़े हैं, जो चाहते हैं कि उनकी विरासत बचे रहे है. वरना मिट्टी के बर्तन कब के अप्रासंगिक हो चुके हैं. कुम्हारों का कहना है कि यहां बाजार का आभाव है और उनके बुरे दिन के लिए सरकार जिम्मेदार है. आलम ये है कि कुम्हारों को मिट्टी के लिए भी तरसना पड़ रहा है.

बीजेपी सरकार है कुम्हारों की स्थिति के लिए जिम्मेदार
पिछली सरकार ने कुम्हारों के लिए कई वादे किए थे, लेकिन निभा नहीं सकी. इधर, नई सरकार के नुमाइंदे कुम्हारों का बदहाली का ठीकरा भाजपा के सिर फोड़ने से नहीं चूक रहे है. कांग्रेस के जिला अध्यक्ष मोहन लालवानी का कहना है कि प्रदेश में कुम्हारों की स्थिति के लिए पिछली सरकार जिम्मेदार है, जो इनके लिए कुछ नहीं किया. अब देखना होगा कि नरवा गरुवा घुरुवा और बाड़ी को बचाने में लगी सरकार इन माटी पुत्र कुम्हारों के लिए क्या करती है.

Intro:धमतरी में कुम्हारों का काम अब धीरे-धीरे खत्म हो होते जा रहा है.पीढ़ियों से पुरखों की विरासत को बढ़ाने वाले कुम्हार परिवार मौजूदा वक्त में आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे है.अब न मिट्टी के बर्तन का खरीददार बचे है और न ही सदियों पुरानी इस कला को बचाने के लिए सरकार कोई कारगर योजना बना रही है.अगर ऐसा ही रहा एक दिन कुम्हार और उनकी कला सिर्फ कहानियों का हिस्सा बनकर रह जाएगी.


Body:"माटी कहे कुम्हार से तू क्या रौंदे मोहे,एक दिन ऐसा आएगा मैं रौंदूगी तोहे" कबीर का ये दर्शन उस युग का है जब दुनिया ही मिट्टी के बर्तन के बिना संभव नही था.जब राजा से लेकर रंक तक कुम्हार के बनाए बर्तन का उपयोग करते थे.उस समय कुम्हार अपनी कला के दम पर फल फूल रहे थे लेकिन आज के युग में कुम्हारों के पास दिया और मटकी बनाने के अलावा कोई काम नही है.विडंबना यह है कि इसके खरीददार भी अब ज्यादा नही है अगर बिक भी जाए तो पर्याप्त मुनाफा इन कुम्हारों को नहीं मिल पाता है.लिहाजा कुम्हारों की आर्थिक स्थिति लगातार खराब हो रही है हालांकि कुछ लोग आज भी इस काम से जुड़े है तो सिर्फ विरासत को बचाने के लिए जुड़े हुए है. वरना मिट्टी के बर्तन आज अप्रासंगिक हो चुके है.मिट्टी से जुड़ी यह सदियों पुरानी कला और इस व्यापार की विरासत खुद मिट्टी में मिलते जा रही है.कुम्हारों का कहना है कि यहां बाजार का आभाव है और बुरे दिन के लिए सरकार सहित शासन प्रशासन की उदासीनता जिम्मेदार है.आलम ये है कुम्हारो को मिट्टी के लिए भी तरसना पड़ता है.

बाईट....द्वारका कुम्भकार,कुम्हार
बाईट....जगदीश कुम्भकार,कुम्हार

पिछली सरकार ने कुम्हारों के लिए कई वादे किए थे लेकिन निभा नहीं सकी.इधर नई सरकार के नुमाइंदे कुम्हारों का बदहाली का ठीकरा भाजपा के सिर फोड़ने से नहीं चूक रहे है.कांग्रेस की जिला अध्यक्ष मोहन लालवानी का कहना है कि प्रदेश में कुम्हारों की स्थिति के लिए पिछली सरकार जिम्मेदार है जो इनके लिए कुछ नहीं किया.

बाईट...मोहन लालवानी,जिलाध्यक्ष कांग्रेस


Conclusion:अब देखना होगा कि नरवा गरुवा घुरूवा बाड़ी को बचाने में लगी सरकार इन माटी पुत्र कुम्हारों के लिए क्या करती है.


रामेश्वर मरकाम धमतरी

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