धमतरी: छत्तीसगढ में सरई के बीज का संग्रहण शुरू हो गया है. भीषण गर्मी में आदिवासी महिलाएं सुबह से ही सरई का बीज संग्रहण करती है. इस बीच जानवरों का भी खौफ बना रहता है. बावजूद इसके आदिवासी महिलाएं सरई बीज संग्रहण करती हैं. इस बीज को तैयार करने में महिलाओं को तकरीबन 15 दिन का समय लगता है. हालांकि इस बीज का सही मूल्य इन महिलाओं को नहीं मिल पाता है. यही कारण है कि ग्रामीण सरई की बीज को कोचियो को बेचने मजबूर हैं.
जंगलों पर निर्भर आदिवासी: छत्तीसगढ़ के वनांचल क्षेत्रों के लोग जंगलों पर ही निर्भर हैं. महुआ, साल, सरई, तेंदूपत्ता पर ही इनका जीवन निर्भर करता है. यही कारण है कि यहां की महिलाएं वनोपज संग्रहण के लिए सुबह से ही जंगलों में चली जाती हैं. बात अगर सरई बीज की करें तो इसे तैयार करने में काफी मेहनत करनी पड़ती है. पहले जंगल से बीज इक्कठा करना पड़ता है.फिर जलाकर दलना पड़ता है.पूरे प्रोसेस में 15 दिनो का समय लगता है. तब जाकर ये बीज बेचने लायक बनता है.
"आदिवासी लोग सरई बीज का उपयोग पहले अन्न की कमी के चलते भोजन के तौर पर करते थे. इसका तेल, साबुन, दवाई के तौर पर भी इस्तेमाल होता है.इस पर ग्रामीणों का जीवन निर्भर होता है. हालांकि इन ग्रामीणों को मेहनत के अनुसार सही मूल्य नहीं मिल रहा है." -दिनेश्वरी नेताम, नगरी जनपद अध्यक्ष
खरीदने की जिम्मेदारी वन विभाग की: जंगली उत्पादों को खरीदने की जिम्मेदारी वन विभाग की होती है. इसके लिए विभाग की ओर से वनोपज संघ का गठन किया गया है. ये संघ इस तरह के वन उत्पादों की खरीदी करता है. हर साल इसके लिए लक्ष्य निर्धारित किया जाता है.साथ ही एमएसपी का भी निर्धारण होता है.
इस बार का लक्ष्य: धमतरी में इस बार विभाग ने 12000 क्विटंल साल बीज खरीदने का लक्ष्य निर्धारित किया है, जो 15 समिति के माध्यम से स्व-साहयता समूह की महिला के द्वारा खरीदी जाती है. इसकी खरीदी 15 मई से 15 जून तक करनी होती है. अफसर की मानें तो इस साल सरई बीज की फसल अच्छी है. सरकार की ओर से एमएसपी ग्रेड ए की खरीदी 20 रू प्रति किलो दर है. ग्रेड बी की खरीदी 18 रू प्रति किलो की खरीदी है.
खुद को ठगा महसूस करती हैं महिलाएं: बीज तैयार होने के बाद ग्रामीण महिलाएं बिचौलियो के पास बीज बेचने जाती हैं. साल सरई के बीज व्यापारी और बिचौलिए 18 से 20 रू प्रति किलो की दर से खरीदते है. सरकार ने इसके लिए समर्थन मूल्य निर्धारित किए है. हालांकि ग्रामीणों को 10-12 रुपया ही मिलता है. जिसके कारण ये खुद को इतनी मेहनत के बाद भी ठगा हुआ महसूस करती हैं.