धमतरी: वक्त जरूर बदला लेकिन धमतरी वनांचल के सोनामगर गांव में दशहरा त्यौहार मनाने की परंपरा अब भी वही है. इस गांव के अनोखे दस्तूर को देखने हर साल दूर-दूर से लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है. बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व यहां विजयादशमी के दिन नहीं, बल्कि एकादशी को मनाया जाता है.
इस त्यौहार की एक खासियत यह भी है कि इस गांव में बुराई के प्रतीक के रूप में रावण का पुतला नहीं, बल्कि सहस्त्रबाहु रावण की नग्न मूर्ति होती है. रावण की इस प्रतिमा का पुजारी वध करते हैं. इसके बाद यहां मौजूद लोग मूर्ति की मिट्टी को तोड़कर अपने घर ले जाते हैं. एक-दूसरे को तिलक लगाते हैं और जीत की खुशियां मनाते हैं.
रावण की नग्न प्रतिमा के पीछे की मान्यता
धमतरी से करीब 70 किमी दूर सिहावा के सोनामगर गांव में दशहरा देखने सुबह से ही लोगों का जमावड़ा शुरू हो जाता है. एकादशी के दिन मनाए जाने वाले इस गांव के दशहरे में बुराई के रूप में सहस्त्रबाहु रावण का वध किया जाता है. जिसकी नग्नमूर्ति को मंदिर के पुजारी मंत्रोच्चार के बाद तलवार से भेदते हैं. इसके बाद मूर्ति को नोचने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है और इस मिट्टी को अपने घर ले जाने के लिए लूट मच जाती है.
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विधि-विधान से किए जाने वाले इस धार्मिक उत्सव के बारे में मान्यता है कि युगों पहले वासना से ग्रसित सहस्त्रबाहु रावण का वध माता चंडिका ने अपने खड़ग से किया था. तब से ये परंपरा चली आ रही है और इलाके के लोग आज भी आस्था की इस डोर को थामे चल रहे हैं.
हर घर से जमा की गई मिट्टी से बनाई जाती है रावण की मूर्ति
पहले गांव के बाहर शीतला माता की पूजा-अर्चना के बाद चांदमारी होती है. फिर आगे के रीति-रिवाज संपन्न किए जाते हैं. खास बात ये है कि मूर्ति बनाने के लिऐ घर-घर से मिट्टी जमा की जाती है. गांव के कुम्हार कई सालों से रावण की प्रतिमा बनाते आ रहे हैं. सदियों से चली आ रही इस परंपरा में महिलाओं के शामिल होने पर पाबंदी है.