धमतरी: मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है, कवि दिनकर की ये पंक्तियां धमतरी के कुरुद में रहने वाले बसंत साहू के लिए ही बनी हैं. बसंत ने पेंसिल से न सिर्फ अपनी जिंदगी के पतझड़ में बहार ला दी बल्कि अपनी नई तकदीर भी लिख दी.
एक हादसे ने बसंत को दिव्यांग बना दिया. हर रोज मौत का इंतजार करते-करते बसंत को पेंटिंग ने नई जिंदगी दे दी. एक वक्त था जब उन्हें अपनी जिंदगी किसी श्राप से कम नहीं लगती थी, हर वक्त यही सोचते थे कि मुक्ति मिल जाए. लेकिन उनकी बनाई पेटिंग्स ने उनकी बेरंग जिंदगी में रंग भर दिए.
हादसे ने बना दिया दिव्यांग
21 साल पहले बसंत साहू इलेक्ट्रानिक्स का काम करता था. इसी सिलसिले में वो पास के गांव गए हुए हैं. वापस घर लौटते वक्त ट्रक ने उसे ठोकर मार दी. इस हादसे के बाद उसके दोनों पैर और एक हाथ ने काम करना बंद कर दिया. बसंत का सारा दिन बिस्तर पर गुजरने लगा, इसके बाद मानो उसे सिर्फ मौत का इंतजार था.
दुनिया में धूम मचा रही है पेंटिग्स
लेकिन कुदरत को तो कुछ और ही मंजूर था. बिस्तर पर पड़े-पड़े बंसत रोज पेंसिल पकड़ कर पेंटिंग बनाने की कोशिश करने लगे. शुरुआत में थाड़ी दिक्कतें हुई लेकिन वो कहते हैं ना कि 'कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती'. बसंत को भी कामयाबी मिली और कुछ यूं मिली जैसे उसके हाथ में जादू हो. उसकी बनाई पेटिंग आज देश-दुनिया में धूम मचा रही हैं.
एक बेजान पेंसिल ने बसंत साहू के शरीर में जान फूंक दी. आज इन्हीं पेटिंग्स के बदौलत बंसत को कई सम्मान भी मिल चुके हैं.
एक ख्वाहिश ऐसी भी
बसंत साहू की एक ही ख्वाहिश है कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले बच्चो को पेंटिंग की कला सिखा सकें. साथ ही बसंत का कहना है कि हमारे राज्य में कला के कई धनी हैं जिन्हें एक मंच की जरूरत है. बसंत का शासन से निवेदन है कि ऐसे कला साधकों को आगे आने का मौका जरूर दें.
आज बसंत युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं. इस सफर में बंसत के परिवार ने भी हर कदम पर उसका साथ दिया. सच है अगर मन में सच्ची लगन हो तो मंजिल पाने से कोई रोक नहीं सकता.