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Kaal Bhairav Ashtami धमतरी में काल भैरव जयंती, जानिए काल भैरव क्यों हैं दंडाधिपति

Kaal Bhairav Jayanti 2022 धमतरी में काल भैरव का जन्मतोत्सव मनाया गया. काल भैरव जयंती पर धमतरी में काल भैरव की पूजा की गई. धमतरी के कोतवाल कहे जाने वाले श्री काल भैरव का मंदिर धमतरी में दशकों पुराना है. यहां हर वर्ष काल भैरव जयंती पर विशेष पूजा अर्चना होती है.Kaal Bhairav ​​asthami puja vidhi and rituals

Kaal Bhairav Jayanti 2022
धमतरी में काल भैरव जयंती
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Published : Nov 16, 2022, 9:08 PM IST

धमतरी: बुधवार को धमतरी में काल भैरव जयंती मनाई गई. इतवारी बाजार स्थित काल भैरव मंदिर में विभिन्न आयोजन किया गया था. भक्तों की भारी भीड़ यहां उमड़ी. मंदिर में श्रृंगार पूजन, महाप्रसादी वितरण, महाआरती और भजन संध्या कार्यक्रम आयोजित किया गया. जानकारी के अनुसार धमतरी के कोतवाल कहे जाने वाले श्री काल भैरव जी का मंदिर दशकों पुराना है. भक्तों की अपार श्रद्धा और काल भैरव के प्रति आस्था के कारण यहां प्रतिवर्ष जन्मोत्सव को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. Kaal Bhairav Jayanti in dhamtari

धमतरी में काल भैरव जयंती

काल भैरव की जयंती का महत्व: दरअसल हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ महीना के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव अष्टमी मनाई जाती है. माना जाता है कि इसी दिन काल भैरव का अवतरण हुआ था. जो भक्त काल भैरव की पूजा करते हैं. उनके प्रति इनका स्वभाव दयालु और कल्याणकारी होता है. वहीं अनैतिक कार्य करने वालों को काल भैरव दंड भी देते हैं. इसलिए इन्हें दंडाधिपति के नाम से भी जाना जाता है. भगवान शिव के कई रूपों में काल भैरव भी एक है. पौराणिक कथाओं के अनुसार काल भैरव को भगवान शिव का विक्राल, रौद्र और उग्र रूप माना गया है. क्योंकि इनकी उत्पत्ति शिवजी के क्रोध से हुई है.

काल भैरव से जुड़ी पौराणिक कथा: काल भैरव के जन्म से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान ब्रह्मा जी और शिवजी में बहस छिड़ गई कि दोनों देवताओं में सबसे श्रेष्ठ कौन है. इसे लेकर ब्रह्मा जी और शिव जी के बीच विवाद हुआ. तब इस विवाद को सुलझाने के लिए सभी देवताओं ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए. सभी का समर्थन भगवान शिव को प्राप्त हुआ.

ये भी पढ़ें: kaal bhairav asthami 2022 काल भैरव अष्टमी पूजा विधि और महत्व

भगवान शिव और भगवान ब्रह्मा से जुड़ी कहानी: इसके बाद देवताओं ने कहा कि जिसमें चराचर जगत, भूत-भविष्य और वर्तमान समाहित है वही श्रेष्ठ है. अर्थात भगवान शिव ही सर्वश्रेष्ठ हैं. यह सुनकर ब्रह्मा जी क्रोधित हो गए. उन्होंने क्रोध में आकर अपने पांचवे मुख से शिवजी को अपशब्द कह दिए. शिवजी भी ब्रह्मा जी पर क्रोधित हुए और उन्होंने अपने क्रोध से भैरव को अवतरित किया. शिवजी ने भैरव से कहा तुम मेरे क्रोध से जन्मे हो तुम ब्रह्मा पर शासन करो. तब भैरव ने शिवशक्ति से संपन्न होकर अपने बाएं हाथ की कनिष्ठा अंगुली के नाखुन से ब्रह्मा जी के पांच सिर में से एक सिर काट डाला.

इसके बाद से ही ब्रह्मा जी के पास शेष चार सिर ही है. हालांकि बाद में शिवजी के कहने पर भैरव ने काशी प्रस्थान किया और उन्हें ब्रह्मा जी के सिर काटने के दोष से मुक्ति मिली. शिवजी के क्रोध से जन्म लेकर भैरव ने ब्रह्मा जी को दंड दिया. इसलिए भी इन्हें दंडाधिपति कहा जाता है. काल भैरव का वाहन काला कुत्ता है और इनके हाथ में एक छड़ी होती है.बहरहाल श्री काल भैरव की आराधना हर किसी के बस की बात नहीं है लेकिन काल भैरव मंदिर में भक्त अपनी मनोकामना लेकर जरूर पहुंचते है

धमतरी: बुधवार को धमतरी में काल भैरव जयंती मनाई गई. इतवारी बाजार स्थित काल भैरव मंदिर में विभिन्न आयोजन किया गया था. भक्तों की भारी भीड़ यहां उमड़ी. मंदिर में श्रृंगार पूजन, महाप्रसादी वितरण, महाआरती और भजन संध्या कार्यक्रम आयोजित किया गया. जानकारी के अनुसार धमतरी के कोतवाल कहे जाने वाले श्री काल भैरव जी का मंदिर दशकों पुराना है. भक्तों की अपार श्रद्धा और काल भैरव के प्रति आस्था के कारण यहां प्रतिवर्ष जन्मोत्सव को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. Kaal Bhairav Jayanti in dhamtari

धमतरी में काल भैरव जयंती

काल भैरव की जयंती का महत्व: दरअसल हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ महीना के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव अष्टमी मनाई जाती है. माना जाता है कि इसी दिन काल भैरव का अवतरण हुआ था. जो भक्त काल भैरव की पूजा करते हैं. उनके प्रति इनका स्वभाव दयालु और कल्याणकारी होता है. वहीं अनैतिक कार्य करने वालों को काल भैरव दंड भी देते हैं. इसलिए इन्हें दंडाधिपति के नाम से भी जाना जाता है. भगवान शिव के कई रूपों में काल भैरव भी एक है. पौराणिक कथाओं के अनुसार काल भैरव को भगवान शिव का विक्राल, रौद्र और उग्र रूप माना गया है. क्योंकि इनकी उत्पत्ति शिवजी के क्रोध से हुई है.

काल भैरव से जुड़ी पौराणिक कथा: काल भैरव के जन्म से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान ब्रह्मा जी और शिवजी में बहस छिड़ गई कि दोनों देवताओं में सबसे श्रेष्ठ कौन है. इसे लेकर ब्रह्मा जी और शिव जी के बीच विवाद हुआ. तब इस विवाद को सुलझाने के लिए सभी देवताओं ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए. सभी का समर्थन भगवान शिव को प्राप्त हुआ.

ये भी पढ़ें: kaal bhairav asthami 2022 काल भैरव अष्टमी पूजा विधि और महत्व

भगवान शिव और भगवान ब्रह्मा से जुड़ी कहानी: इसके बाद देवताओं ने कहा कि जिसमें चराचर जगत, भूत-भविष्य और वर्तमान समाहित है वही श्रेष्ठ है. अर्थात भगवान शिव ही सर्वश्रेष्ठ हैं. यह सुनकर ब्रह्मा जी क्रोधित हो गए. उन्होंने क्रोध में आकर अपने पांचवे मुख से शिवजी को अपशब्द कह दिए. शिवजी भी ब्रह्मा जी पर क्रोधित हुए और उन्होंने अपने क्रोध से भैरव को अवतरित किया. शिवजी ने भैरव से कहा तुम मेरे क्रोध से जन्मे हो तुम ब्रह्मा पर शासन करो. तब भैरव ने शिवशक्ति से संपन्न होकर अपने बाएं हाथ की कनिष्ठा अंगुली के नाखुन से ब्रह्मा जी के पांच सिर में से एक सिर काट डाला.

इसके बाद से ही ब्रह्मा जी के पास शेष चार सिर ही है. हालांकि बाद में शिवजी के कहने पर भैरव ने काशी प्रस्थान किया और उन्हें ब्रह्मा जी के सिर काटने के दोष से मुक्ति मिली. शिवजी के क्रोध से जन्म लेकर भैरव ने ब्रह्मा जी को दंड दिया. इसलिए भी इन्हें दंडाधिपति कहा जाता है. काल भैरव का वाहन काला कुत्ता है और इनके हाथ में एक छड़ी होती है.बहरहाल श्री काल भैरव की आराधना हर किसी के बस की बात नहीं है लेकिन काल भैरव मंदिर में भक्त अपनी मनोकामना लेकर जरूर पहुंचते है

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