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धमतरी: इस गांव में बगैर होलिका दहन के मनाई जाती है होली - होलिका दहन नहीं यहां सिर्फ मनाई जाती है होली

धमतरी के गांव तेलीनसत्ती में होली तो मनाई जाती है. लेकिन होलिका दहन नहीं किया जाता. मान्यता है कि यह परंपरा 12वीं सदी से निभाई जा रही है. इस परंपरा के पीछे एक कहानी बताई जाती है.

village Telinsatti of dhamtari
तेलीनसत्ती में नहीं होता होलिका दहन
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Published : Mar 28, 2021, 6:31 PM IST

Updated : Mar 28, 2021, 9:35 PM IST

धमतरी: जिले के तेलीनसत्ती गांव में होलिका दहन नहीं होता है. मान्यताओं के मुताबिक यह परंपरा 12 वीं सदी से चली आ रही है. यहां होली मनाई तो जाती है, लेकिन जलाई नहीं जाती. जिला मुख्यालय से तीन किलोमीटर दूर ग्राम तेलीनसत्ती में 12वीं सदी से यही परंपरा चली आ रही है. इसके पीछे एक महिला के सती होने की कहानी है. जिसके कारण यहां लोग होली खेलते तो हैं, लेकिन होलिका दहन नहीं करते हैं.

इस गांव में बगैर होलिका दहन के मनाई जाती है होली

भारत को उत्सवों का देश कहा जाता है. यहां के प्रमुख त्योहारों में होली भी शामिल है. हर साल फाल्गुन की अमावस्या को होली खेली जाती है. इसके एक दिन पहले होलिका दहन होता है. सारा देश इसी परंपरा के साथ होली का पर्व मनाता है, लेकिन धमतरी के तेलीनसत्ती गांव में होलिका दहन नहीं होता. गांव के 90 साल के बुजुर्ग देवलाल सिन्हा बताते हैं कि सती माता को नाराज करने वालों ने या तो संकट झेला है या उनकी जान ही चली गई.

दुर्ग के इस गांव में क्यों नहीं होता होलिका दहन, सूनी रहती है होली ?

किवदंती के अनुसार पड़ोस के गांव भानपुरी के दाऊ परिवार में सात भाइयों की एकमात्र लाड़ली बहन भानुमति थी. भाइयों ने उसके लिए लमसेना (घरजमाई) के रूप में वर ढूंढा. लेकिन किसी की सलाह पर फसल को हर साल की प्राकृतिक आपदा से बचाने के लिए उन्होंने उस युवक की बलि दे दी. इधर भानुमति मन ही मन उसे पति मान चुकी थी. जब उसे यह बात पता चली तो वह अपने वर के साथ कुंवारी ही सती हो गई.

हजारों वर्षों से चली आ रही मान्यता

मान्यता है कि इसके बाद भानुमति ने प्रकट होकर लोगों को निर्देश दिया कि भविष्य में गांव में किसी भी प्रकार का दाह संस्कार न करें, अन्यथा आपदाओं का सामना करना पड़ेगा. इस गांव में सिर्फ होली ही नहीं, बल्कि दशहरा पर रावण कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया जाता है. गांव में किसी के निधन पर उसका अंतिम संस्कार गांव से बाहर किया जाता है. या उसे दफनाया जाता है. अगर ऐसा नहीं किया जाता तो, गांव में कोई न कोई विपत्ति आती है. ये बातें इस दौर में अविश्वसनीय, अकल्पनीय लग सकती है. लेकिन परंपरा आज भी निभाई जा रही है.

कुंवारा गांव से सीखें कैसे महामारी से जीत सकते हैं जंग

गांव में नहीं किया जाता दाह संस्कार

बहरहाल, इस परंपरा के निरंतर निर्वहन से अब तक हजारों टन लकड़ी स्वाहा होने से बच गई है. गांव की आबोहवा भी प्रदूषण से बची हुई है. गांव में मृतकों का दाह संस्कार भी नहीं किया जाता, बल्कि शवों को दफनाया जाता है. लोगों का कहना है कि इस परंपरा की जानकारी गांव के बुजुर्ग ने नई पीढ़ी को दी है. वो इस परंपरा को कभी न तोड़ने की हिदायत भी देते हैं.

धमतरी: जिले के तेलीनसत्ती गांव में होलिका दहन नहीं होता है. मान्यताओं के मुताबिक यह परंपरा 12 वीं सदी से चली आ रही है. यहां होली मनाई तो जाती है, लेकिन जलाई नहीं जाती. जिला मुख्यालय से तीन किलोमीटर दूर ग्राम तेलीनसत्ती में 12वीं सदी से यही परंपरा चली आ रही है. इसके पीछे एक महिला के सती होने की कहानी है. जिसके कारण यहां लोग होली खेलते तो हैं, लेकिन होलिका दहन नहीं करते हैं.

इस गांव में बगैर होलिका दहन के मनाई जाती है होली

भारत को उत्सवों का देश कहा जाता है. यहां के प्रमुख त्योहारों में होली भी शामिल है. हर साल फाल्गुन की अमावस्या को होली खेली जाती है. इसके एक दिन पहले होलिका दहन होता है. सारा देश इसी परंपरा के साथ होली का पर्व मनाता है, लेकिन धमतरी के तेलीनसत्ती गांव में होलिका दहन नहीं होता. गांव के 90 साल के बुजुर्ग देवलाल सिन्हा बताते हैं कि सती माता को नाराज करने वालों ने या तो संकट झेला है या उनकी जान ही चली गई.

दुर्ग के इस गांव में क्यों नहीं होता होलिका दहन, सूनी रहती है होली ?

किवदंती के अनुसार पड़ोस के गांव भानपुरी के दाऊ परिवार में सात भाइयों की एकमात्र लाड़ली बहन भानुमति थी. भाइयों ने उसके लिए लमसेना (घरजमाई) के रूप में वर ढूंढा. लेकिन किसी की सलाह पर फसल को हर साल की प्राकृतिक आपदा से बचाने के लिए उन्होंने उस युवक की बलि दे दी. इधर भानुमति मन ही मन उसे पति मान चुकी थी. जब उसे यह बात पता चली तो वह अपने वर के साथ कुंवारी ही सती हो गई.

हजारों वर्षों से चली आ रही मान्यता

मान्यता है कि इसके बाद भानुमति ने प्रकट होकर लोगों को निर्देश दिया कि भविष्य में गांव में किसी भी प्रकार का दाह संस्कार न करें, अन्यथा आपदाओं का सामना करना पड़ेगा. इस गांव में सिर्फ होली ही नहीं, बल्कि दशहरा पर रावण कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया जाता है. गांव में किसी के निधन पर उसका अंतिम संस्कार गांव से बाहर किया जाता है. या उसे दफनाया जाता है. अगर ऐसा नहीं किया जाता तो, गांव में कोई न कोई विपत्ति आती है. ये बातें इस दौर में अविश्वसनीय, अकल्पनीय लग सकती है. लेकिन परंपरा आज भी निभाई जा रही है.

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गांव में नहीं किया जाता दाह संस्कार

बहरहाल, इस परंपरा के निरंतर निर्वहन से अब तक हजारों टन लकड़ी स्वाहा होने से बच गई है. गांव की आबोहवा भी प्रदूषण से बची हुई है. गांव में मृतकों का दाह संस्कार भी नहीं किया जाता, बल्कि शवों को दफनाया जाता है. लोगों का कहना है कि इस परंपरा की जानकारी गांव के बुजुर्ग ने नई पीढ़ी को दी है. वो इस परंपरा को कभी न तोड़ने की हिदायत भी देते हैं.

Last Updated : Mar 28, 2021, 9:35 PM IST
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