धमतरी: कुरूद ब्लॉक का एक छोटा सा गांव है चरमुड़िया. यहां रहने वाली स्मारिका चंद्राकर हाई क्लास लाइफ मेंटेन करती है. आधुनिक संसाधनों वाला शानदार मकान, जहां वो सारी सुख सुविधाएं है जो किसी भी मेट्रो सिटी के आलीशान मकान में होते हैं. अपना बंगला, अपनी एसयूवी, आईफोन और लेटेस्ट वर्जन का लैपटॉप. हेयर स्टाइल और ड्रेसिंग स्टाइल से लेकर लाइफ स्टाइल और डेली वर्क शड्यूल बिल्कुल किसी निजी कंपनी के सीईओ जैसा है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इंजीनियरिंग और एमबीए की डिग्री रखने वाली स्मारिका किसी निजी कंपनी की सीईओ नहीं बल्कि गांव की एक किसान है. जो आधुनिक खेती के जरिए सालाना डेढ़ से 2 करोड़ का टर्नओवर ले रही है. साथ ही अपने गांव सहित आसपास के 100 से ज्यादा लोगों को रोजगार भी दिया है.
पिता को संभालने छोड़ी एमएनसी की नौकरी: स्मारिका के पिता दुर्गेश कुमार चंद्राकर गांव के बड़े दाऊ हैं. छत्तीसगढ़ में बड़े किसानों को दाऊ कहा जाता है. बेहिसाब खेती की जमीन है. जिसे दुर्गेश चंद्राकर ही अपने भाइयों के साथ मिलकर संभाला करते थे. इस दौरान स्मारिका ने पहले इंजीनियरिंग की और फिर एमबीए की डिग्री लेने के बाद पुणे में एक बड़ी मल्टी नेशनल कंपनी में नौकरी शुरू कर दी. 4 साल तक वहीं अपना करियर बनाती रही. इसके बाद रायपुर शिफ्ट हो गई और वहां 4 साल एक कंपनी में नौकरी की. लेकिन इसी बीच तीन साल पहले पिता की तबीयत काफी खराब हो गई. पिता के साथ साथ पुरखों की बनाई खेती बाड़ी को संभालना भी बड़ा काम था, लिहाजा स्मारिका ने नौकरी छोड़ी और घर आ गई.
घर से हमेशा से लगाव रहा. फैमिली को सपोर्ट करना बहुत जरूरी था. अब मैं अब काफी संतुष्ट हूं. गांव के लोगों से जब ये सुनने को मिलता है कि उन्हें गांव में ही काम मिलने से बहुत अच्छा लग रहा है तो बहुत खुशी होती है. खेती में ही आगे और बहुत कुछ करने का इरादा है.-स्मारिका चंद्राकर, हाईटेक महिला किसान
स्मारिका जिस समय गांव आई तब मेरी हालत बिल्कुल ठीक नहीं थी. इसके बाद उसने खुद किसान बनने का फैसला लिया. -दुर्गेश कुमार चंद्राकर, स्मारिका के पिता
एमबीए के बाद खेती कर करोड़ों की कमाई: गांव पहुंचने के बाद बेटी पहले पिता का सहारा बनी. फिर खेती को जानना समझना शुरू किया. 19 एकड़ के खेतों को चारों तरफ से फैंसिंग करवाई गई. इसे धारा कृषि फॉर्म का नाम दिया है, जो पूरी प्लानिंग के साथ तैयार की गई है. स्मारिका ने परंपरागत धान की फसल छोड़ सब्जी की खेती शुरू की. 19 एकड़ खेत में करेला, खीरा, लौकी के बाद बैंगन और टमाटर लगाए. इसके लिए पिता और दादा के अलावा फार्मिंग एक्सपर्ट्स की मदद ली. मिट्टी की क्वालिटी के मुताबिक सही फसल और बीजों का सलेक्शन किया गया. आधुनिक खेती के लिए जो मशीनें और संसाधन जरूरी थे उन पर इन्वेस्ट किया गया. इसके बाद जब भी मौसम के हिसाब से पानी और दवाओं का छिड़काव करना होता है तब एक्सपर्ट के अलावा इंटरनेट पर मौजूद कई ऑनलाइन डाटा हेल्प प्रोवाइड करने वाले वेबसाइट से इन्फार्मेशन लेती हैं.
आज स्मारिका खुद भी काफी अनुभवी किसान बन चुकी हैं. धारा कृषि फार्म से रोजाना करीब 12 टन टमाटर और करीब 8 से 9 टन बैगन की बड़ी खेप निकलती है. जो लोकल मंडी के साथ आंध्र प्रदेश, बिहार, झारखंड, कोलकाता, दिल्ली, गोरखपुर, बनारस, हैदराबाद भेजते हैं. इतने बड़े पैमाने पर फसल को सही समय पर मंडी तक पहुंचाना और ज्यादा से ज्यादा कीमत निकालना एक बड़ी चुनौती होती है. इसके लिए भी स्मारिका स्मार्ट रास्ता इस्तेमाल करती है. तीन साल में स्मारिका का सालाना टर्नओवर 1 करोड़ को पार कर चुका है. इसके साथ ही वह 100 से ज्यादा लोगों को रोजगार भी दे रही है. इंजीनियर से किसान बनी स्मारिका ने साबित कर दिया कि सही प्लानिंग और कड़ी मेहनत से कोई भी काम मुश्किल नहीं है.