धमतरी: केंद्र सरकार देश के कोने-कोने में बिजली पहुंचाने का दावा कर रही है. वहीं धमतरी का बरपदर गांव आज भी लालटेन युग में जीने को मजबूर है. जिले के अंतिम छोर में बसे इस गांव के लोग पिछले कई साल से अंधेरे में जिंदगी जीने को मजबूर हैं.
नदी-नाला पार कर करते हैं आवाजाही
जिला मुख्यालय से करीब 150 किलोमीटर की दूरी पर बसे बेलरबाहरा के आश्रित ग्राम बरपदर में तकरीबन 21 परिवार रहते हैं. गांव में आवाजाही का कोई साधन नहीं है, लिहाजा यहां के लोगों को जंगलों के रास्ते से नदी और नाला पार कर आवाजाही करते हैं.
वाशिंदों को नहीं मिलती स्वास्थ्य सुविधाएं
गांव में न बिजली है, न पानी है और न ही स्वास्थ्य सुविधाओं का फायदा यहां बाशिदों को मिलता है. पुल-पुलिया और सड़क का इंतजार यहां के लोग पिछले कई साल से कर रहे हैं. जिम्मेदारों से फरियाद भी लगाई पर किसी ने सुध नहीं ली.
गांव में नहीं है आंगनबाड़ी
गांव पेयजल संकट से भी जूझ रहा है. यहां स्कूल तो हैं, लेकिन पिछले दो साल से यहां ताला लगा हुआ है. ऐसे में यहां के बच्चों को पढ़ने के लिए नदी पार कर बेलरबाहरा गांव जाना पड़ता है. बता दें कि यहां आंगनबाड़ी केंद्र भी नहीं है. जहां नौनिहाल पढ़ाई कर सकें और गर्भवती महिलाओं को पोषण आहार मिल सके.
उपयोग के लायक नहीं है शौचालय
बारिश दिनों में अगर गांव में मौजूद कोई बीमार हो जाए तो, हालात बेकाबू हो जाते हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के महत्वाकांक्षी योजना स्वच्छ भारत मिशन का भी बुरा हाल है. स्वच्छता के नाम पर घर-घर शौचालय तो बनाया गया, लेकिन से शौचालय उपयोग के लायक नहीं है और टूट फूट की स्थिति में है. इस गांव की महिलाएं आज भी खुले में शौच जाने मजबूर हैं.
बिजली पहुंची फिर भी अंधेरे में डूबा है गांव
कुछ साल पहले गांव में सौर उर्जा के तहत बिजली पहुंचाई गई थी, लेकिन चंद महीनों बाद उसने भी दम तोड़ दिया. जिसकी वजह से यह गांव दोबारा अंधेरे में डूब गया. विकास के नाम पर उनके गांव में कुछ भी नहीं है. सरकारी योजनाएं कब आती है और कब चली जाती हैं, पता ही नहीं चलता. इधर हर बार की तरह प्रशासन सिर्फ आश्वासन दे रहा है कि गांव में हर मुमकिन सुविधाएं मुहैया करा दी जाएंगी. प्रशासन की बेरुखी की वजह से यहां के लोग आज भी पुराने तरीकों से जीवन जी रहे हैं.