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VIDEO: टेक्नॉलॉजी के दौर में संतान के लिए इस परंपरा को मानना हैरान करता है - ETV भारत

धमतरी के अंगारमोती मंदिर से जुड़ी एक ऐसी मान्यता है कि बैगा के पैर पड़ने से निसंतान महिलाओं को मां बनने का सुख मिल जाता है.

अंगारमोती मंदिर से जुड़ी परंपरा
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Published : Nov 2, 2019, 7:47 PM IST

धमतरी : मां एक ऐसा शब्द है, जो हर महिला सुनना चाहती है. हर स्त्री मां बनकर संपूर्ण होना चाहती है. लेकिन कुछ महिलाएं किसी वजह से बच्चे को जन्म नहीं दे पाती हैं, तो वे पूजा-पाठ से लेकर तकनीकि तक हर सहारा अपनाती हैं, जिससे उनके घर भी किलकारी गूंज सके. छत्तीसगढ़ की एक ऐसी ही परंपरा के बारे में हम आपको बताते हैं लेकिन ये भी बताते चलें कि ETV भारत किसी अंधविश्वास का समर्थन नहीं करता है.

अंगारमोती मंदिर से जुड़ी परंपरा

धमतरी जिले के अंगारमोती मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर में जो निसंतान महिलाएं हैं, उन पर बैगा के पैर पड़ने से मां बनने का सुख मिल जाता है. ये बात यहां के स्थानीय से लेकर डॉक्टर तक कहते हैं.

महिलाओं के ऊपर से गुजरते हैं बैगा

ऐसी मान्यता है कि दिवाली के पहले शुक्रवार को बच्चे की लालसा लिए महिलाएं मंदिर के सामने, हाथ में नारियल लेकर कतार में खड़ी रहती हैं. उन्हें इंतजार रहता है कि कब मुख्य बैगा मंदिर में आएगा. वहीं दूसरी तरफ तमाम बैगा होते हैं, कहते हैं कि इन पर मां अंगार मोती सवार होती है. वो जब मंदिर की तरफ बढ़ते हैं तो महिलाएं लेट जाती हैं और बैगा उनके ऊपर से गुजर जाते हैं.

गंगरेल के तट पर अंगारमोती मंदिर की स्थापना
यकिन करना थोड़ा मुश्किल है न, लेकिन संतान के लिये आधुनिकतम टेस्ट ट्यूब और आईवीएफ तकनीक के दौर में ये अनूठी लेकिन सिद्ध मान्यता हैरान करने वाली है. लोगों का मानना है कि जब गंगरेल बांध नहीं बना था तो वहां बसे गांवो में शक्ति स्वरूपा मां अंगारमोती इस इलाके की अधिष्ठात्री देवी थी. बांध बनने के बाद वो तमाम गांव डूब में चले गए, लेकिन माता के भक्तों में अंगारमोती की गंगरेल के तट पर फिर से स्थापना कर दी गई.

मानवाधिकार की टीम ने की जांच
इस पुरातन अनोखी परंपरा की शुरूआत कब हुई कोई नहीं जानता, लेकिन जब इसकी खबर आधुनिक दुनिया को मिली तो इसे महिलाओं पर अत्याचार कहा गया. दिल्ली से मानवाधिकार की टीम भेजी गई. नियम कानून और कायदो का हवाला देकर इस परंपरा को अमानवीय बताया गया. साथ ही इसे बंद करने की भी कोशिश की गई, जो नाकाम साबित हुई.

ईटीवी भारत किसी तरह के अंधविश्वास का समर्थन नहीं करता है.

धमतरी : मां एक ऐसा शब्द है, जो हर महिला सुनना चाहती है. हर स्त्री मां बनकर संपूर्ण होना चाहती है. लेकिन कुछ महिलाएं किसी वजह से बच्चे को जन्म नहीं दे पाती हैं, तो वे पूजा-पाठ से लेकर तकनीकि तक हर सहारा अपनाती हैं, जिससे उनके घर भी किलकारी गूंज सके. छत्तीसगढ़ की एक ऐसी ही परंपरा के बारे में हम आपको बताते हैं लेकिन ये भी बताते चलें कि ETV भारत किसी अंधविश्वास का समर्थन नहीं करता है.

अंगारमोती मंदिर से जुड़ी परंपरा

धमतरी जिले के अंगारमोती मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर में जो निसंतान महिलाएं हैं, उन पर बैगा के पैर पड़ने से मां बनने का सुख मिल जाता है. ये बात यहां के स्थानीय से लेकर डॉक्टर तक कहते हैं.

महिलाओं के ऊपर से गुजरते हैं बैगा

ऐसी मान्यता है कि दिवाली के पहले शुक्रवार को बच्चे की लालसा लिए महिलाएं मंदिर के सामने, हाथ में नारियल लेकर कतार में खड़ी रहती हैं. उन्हें इंतजार रहता है कि कब मुख्य बैगा मंदिर में आएगा. वहीं दूसरी तरफ तमाम बैगा होते हैं, कहते हैं कि इन पर मां अंगार मोती सवार होती है. वो जब मंदिर की तरफ बढ़ते हैं तो महिलाएं लेट जाती हैं और बैगा उनके ऊपर से गुजर जाते हैं.

गंगरेल के तट पर अंगारमोती मंदिर की स्थापना
यकिन करना थोड़ा मुश्किल है न, लेकिन संतान के लिये आधुनिकतम टेस्ट ट्यूब और आईवीएफ तकनीक के दौर में ये अनूठी लेकिन सिद्ध मान्यता हैरान करने वाली है. लोगों का मानना है कि जब गंगरेल बांध नहीं बना था तो वहां बसे गांवो में शक्ति स्वरूपा मां अंगारमोती इस इलाके की अधिष्ठात्री देवी थी. बांध बनने के बाद वो तमाम गांव डूब में चले गए, लेकिन माता के भक्तों में अंगारमोती की गंगरेल के तट पर फिर से स्थापना कर दी गई.

मानवाधिकार की टीम ने की जांच
इस पुरातन अनोखी परंपरा की शुरूआत कब हुई कोई नहीं जानता, लेकिन जब इसकी खबर आधुनिक दुनिया को मिली तो इसे महिलाओं पर अत्याचार कहा गया. दिल्ली से मानवाधिकार की टीम भेजी गई. नियम कानून और कायदो का हवाला देकर इस परंपरा को अमानवीय बताया गया. साथ ही इसे बंद करने की भी कोशिश की गई, जो नाकाम साबित हुई.

ईटीवी भारत किसी तरह के अंधविश्वास का समर्थन नहीं करता है.

Intro:धमतरी का अंगारमोती मंदिर में ये किदवंती है कि अगर निसंतान महिलाए को बैगा अपने पैरो से कुचलते हुए आगे बढ़े तो महिला को संतान की प्राप्ति होती है.यही वजह से हर साल दीवाली के बाद पहले शुक्रवार को इसी मन्नत के साथ दूर दराज से बड़ी संख्या में महिलाएं आती है आज संतान के लिये आधुनिकतम टेस्ट ट्यूब और आईवीएफ तकनीक के दौर में ये अनूठी लेकिन सिद्ध मान्यता हैरान करने वाली है.

Body:छत्तीसगढ़ का धमतरी जिला अपने बांधो के लिये जाना जाता है लेकिन जब गंगरेल बांध नहीं बना था तो वहां बसे गांवो में शक्ति स्वरूपा मां अंगारमोती इस इलाके की अधिष्ठात्री देवी थी.बांध बनने के बाद वो तमाम गांव डूब में चले गए लेकिन माता के भक्तो मेंअंगारमोती की गंगरेल के तट पर फिर से स्थापना कर दी.जहां साल भर भक्त दर्शन या मन्नत करने आते है लेकिन पूरे साल में एक दिन सबसे खास होता है.दीपावली पर्व के बाद का पहला शुक्रवार इस दिन यहां भव्य मड़ई लगता है सैकड़ो हजारो लोग आते है.आदिवासी परंपराओ के साथ पूजा और रीतियां निभाई जाती है और इसी दिन यहां बड़ी संख्या में ऐसी महिलाएं आती है जिनकी गोद सूना है, संतान नहीं है,कोई मां कहने वाला नहीं है.ऐसी महिलाओ को मां का दर्जा अंगारमोती मां दिलवाती है.

Conclusion:औलाद की लालसा लिये पहुंची महिलाएं मंदिर को सामने,हाथ में नारियल,अगरबत्ती नींबू लिये कतार में खड़ी होती है.इन्हें इंतजार रहता है कि कब मुख्य बैगा मंदिर के लिये आएगा.दूसरी तरफ वो तमाम बैगा होते है जिन पर मां अंगार मोती सवार होती है वो झूमते झूपते.. थोड़े बेसुध से मंदिर की तरफ बढ़ते है चारो तरफ ढोल नगाड़ो की गूंज रहती है.बैगाओ को आते देख कतार में खड़ी सारी महिलाएं पेट के बल दंडवत लेट जाती है और सारे बैगा उनके उपर से गुजरते है.मान्यता है कि जिस भी महिला के उपर बैगा का पैर पड़ता है उसे संतान के रूप में माता अंगार मोती का आशीर्वाद मिलता है.उनकी गोद भी हरी हो जाती है उनके आगन में भी किलकारी गूंजती है. कहते है कि जब तक स्त्री मां न बन जाए वो अधूरी रहती है और पूर्ण स्त्री का सुख पाने महिलाएं सब कुछ सहने को तैयार रहती है.

इस पुरातन अनोखी परंपरा की शुरूआत कब हुई कोई नहीं जानता. लेकिन जब इसकी खबर आधुनिक दुनिया को मिली तो इसे महिलओ पर अत्याचार कहा गया,दिल्ली से मानवाधिकार की टीम भेजी गई.नियम कानून और कायदो का हवाला देकर इस परंपरा को अमानवीय बताया गया इसे बंद करने की कोशिश हुई जो नाकाम रही आज एमबीबीएस डाक्टर भी मानते हैं कि यहां संतान की मन्नत पूरी होना.साइंस की समझ से भी परे है पर हकीकत भी है.

बाईट_01 श्रद्धालू
बाईट_02 डॉ.डी.आर.ठाकुर,सर्जन
बाईट_03 सुभे सिंह मरकाम,पुजारी अंगारमोती मंदिर

रामेश्वर मरकाम,ईटीवी भारत,धमतरी
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